एक गीत - हरिवंशराय बच्चन /अभ्यास के प्रश्न कक्षा 12 हिन्दी /Ek Geet poem by Harivanshray Bacchan class 12/ NCERT Solutions class 12 Hindi Core Harivansh Rai Bachchan
एक गीत - हरिवंशराय बच्चन
1. दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
हो जाए न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं-
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता हैं!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता हैं!
शब्दार्थ :
ढलता = समाप्त होता। पथ = रास्ता। मजिल = लक्ष्य। पंथी = यात्री।
संदर्भ :
प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित गीत ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!’ से उधृत है। इसके रचनाकार डॉ हरिवंश राय बचचन हैं।
प्रसंग :
यहां पर दिन और राहगीर के माध्यम से जीवन का प्रतीकात्मक चित्रण किया गया है।
व्याख्या :
कवि ने प्रत्यक्ष रूप से तो यात्रा करने वाले व्यक्ति का चित्रण किया है, परंतु यह प्रतीकात्मक रूप् से जीवन रूपी यात्रा का चित्रण भी है। जीवन रूपी दिन बड़ी तेजी से ढलता है। मनुष्य के मन में चिंता है कि कहीं रास्ते में ही रात न हो जाये, अर्थात जीवन का अंत उसी समय न हो जाये, जबकि अभी मंजिल तक पहुंचना बाकी हो। इसी कारण से वह अपनी गति बढ़ा देता है, ताकि अंधकार होने से पहले ही अपने लक्ष्य पर पहुंच जाये। उसका उत्साह और भी बढ़ जाता है।
एक गीत कविता का काव्य सौंदर्य :
1 ‘जल्दी-जल्दी’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
2 कविता में सरल प्रतीकों का प्रयोग हुआ है।
3 कविता की भाषा सरल, सहज और भावानुकूल है।
4 कविता के इस पद में शांत रस है।
विशेष-
कवि ने पथ और राहगीर के माध्यम से जीवन और उसें सत्य को प्रकट किया है।
प्रश्न : (क) ‘हो जाए न पथ में’- यहाँ किस पथ की ओर कवि ने संकेत किया हैं?
उत्तर : (क) ‘हो जाए न पथ में”-के माध्यम से कवि जीवन रूपी पथ की ओर संकेत किया है।
प्रश्न : (ख) पथिक के मन में क्या आशंका हैं?
उत्तर : (ख) पथिक के मन में यह आषंका है कि पथ में ही कहीं रात न हो जाये। अर्थात् लक्ष्य की प्राप्ति से पहले ही कहीं जीवन का अंत न हो जाये।
प्रश्न : (ग) पथिक के तेज चलने का क्या कारण हैं?
उत्तर : (ग) पथिक तेज इसलिए चलता है, क्योंकि शाम होने वाली है। उसे अपना लक्ष्य समीप नजर आता है। रात न हो जाए, इसलिए वह जल्दी चलकर अपनी मंजिल तक पहुँचना चाहता है।
प्रश्न : (घ) कवि दिन के बारे में क्या बताता हैं?
उत्तर : (घ) कवि दिन के बारे में बताता है कि दिन जल्दी-जल्दी ढलता है। दूसरे शब्दों में, समय परिवर्तनशील है। वह किसी की प्रतीक्षा नहीं करता ।
2.बच्चे प्रत्याशा में होंगे
बच्चे प्रत्याशा में
होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे-
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !
शब्दार्थ :
प्रत्याशा = आशा। नीड़ = घोंसला। पर = पंख। चचलता = अस्थिरता।
संदर्भ :
प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित गीत ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!’ से उधृत है। इसके रचनाकार डॉ हरिवंश राय बचचन हैं।
प्रसंग :
यहां पर कवि ने पक्षी और उसके चूजों के माध्यम से जीवन की ही बात को आगे बढ़ाया है।
व्याख्या :
कवि पक्षियों के माध्यम से भी जीवन की अनिश्चितता का चित्रण कर रहा है। मादा पक्षी को संध्या होते ही यह चिंता होने लगती है कि उसके चूजे उसके लौटने की राह देख रहे होंगे। वे व्याकुल होकर घोंसलों से अपनी गर्दन निकालकर पंथ निहार रहे होंगे। तब पक्षियों के पंखों में और भी गति आ जाती है। वे विलंब किये बिना ही अपने चूजों तक पहुंचने के लिये अपनी गति बढ़ा देते हैं।
एक गीत कविता का पद सौंदर्य :
1 भाषा में अत्यंत सरलता है। शब्द चयन उपयुक्त है।
2 पद में शांत रस है।
3 घोंसले का बिब कवि ने प्रस्तुत किया है। कविता में इसे बिंबविधान कहते हैं।
विशेष-
काव्यांश में यह सत्य प्रकट हुआ है कि वात्सल्य भाव सभी प्राणियों में पाया जाता है।
प्रश्न :(क) बच्चे किसका इंतजार कर रहे होंगे तथा क्यों?
उत्तर : (क) बच्चे अपने माता-पिता के आने का इंतजार कर रहे होंगे। क्योंकि उनके पहुँचने पर ही उन्हें भोजन और मां का प्यार मिलेगा।
प्रश्न : (ख) चिड़ियों के घोंसलों में किस दृश्य की कल्पना की गई हैं?
उत्तर : (ख) कवि चिड़ियों के घोंसलों में उस दृश्य की कल्पना करता है, जिसमें अपने बच्चे माता-पिता की प्रतीक्षा में बाहर की ओर झाँकने लगते हैं।
प्रश्न : (ग) चिड़ियों के परों में चंचलता आने का क्या कारण हैं?
उत्तर : (ग) चिड़ियों के परों में चंचलता इसलिए आ जाती है, क्योंकि उन्हें अपने बच्चों से मिलने की आतुरता होती है। वे जल्दी से जल्दी अपने बच्चों को भोजन, स्नेह व सुरक्षा देना चाहती हैं।
प्रश्न : (घ) इस अंश के द्वारा किस मानव-सत्य को दर्शाया गया है?
उत्तर : (घ) इस अंश के द्वारा कवि ने इस मानव-सत्य को दर्शाया है कि माँ के हृदय में अपने बच्चों से मिलने की अधीरता होती है।
3.मुझसे मिलने को कौन विकल?
मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता हैं!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता
है!
शब्दार्थ :
विकल = व्याकुल। हित = लिए, वास्ते। चंचल = क्रियाशील। शिथिल = ढीला। पद = पैर। उर = हृदय। विह्वलता = बेचैनी, दुखद भाव।
संदर्भ :
प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित गीत ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!’ से उधृत है। इसके रचनाकार डॉ हरिवंश राय बचचन हैं।
प्रसंग :
यहां पर कवि ने अपने लिये किसी के प्रतीक्षारत न होने के दुख को प्रकट किया है।
व्याख्या :
बच्चन जी इस काव्यांष में कहते हैं कि उनसे मिलने के लिये कोई व्याकुल हो, ऐसा प्रियजन है ही नहीं, तब वे किसके लिये शीध्रता करें। घर की ओर भागें। बस यही प्रश्न उनके मन को उदास और तन की गति को कमजोर बना देता है। पर दिन का अवसान तो अपने क्रम को नहीं तोड़ता। वह शीध्रता के साथ ढलता ही है।
एक गीत कविता का पद लालित्य :
1
कवि ने सरल विधि से अपने भावों की अभिव्यंजना की है।
2 उनकी भाषा उनकी मनोदशा का परिपूर्ण चित्रण करने में सफल रही है।
विशेष-रचना में एकाकी जीवन बिताने वाले व्यक्ति के मनोविज्ञान की प्रस्तुति हुई है व वास्तविक चित्रण किया गया है।
प्रश्न : (क) कवि के मन में कौन-से प्रश्न उठते हैं?
उत्तर : (क) कवि के मन में प्रश्न उठते हैं, कि उससे मिलने के लिए भला कौन उत्कंठित होकर प्रतीक्षा कर रहा होगा और वह किसके लिए आकुल होकर तेजी से घर पहुचे?
प्रश्न : (ख) कवि की व्याकुलता का क्या कारण हैं?
उत्तर : (ख) कवि के हृदय में व्याकुलता का कारण यह है कि उसकी प्रतीक्षा में आकुल रहने वाला कोई
नहीं है।
प्रश्न : (ग) कवि के कदम शिथिल क्यों हो जाते हैं?
उत्तर : (ग) कवि के कदम षिथिल इसलिये हो जाते हैं, क्योंकि उसकी प्रतीक्षा करने वाला कोई नहीं है।
प्रश्न : (घ) ‘मैं होऊँ किसके हित चचल?’ का भाव स्पष्ट कीजिए
उत्तर : (घ)
‘मैं होऊँ किसके हित चंचल’ का भाव यह है कि कवि अपनी पत्नी के संसार से चले जाने पर एकाकी जीवन बिता रहा है। इसलिये उसके मन में घर जल्दी पहुंचने का कोई उत्साह नहीं है।
एक गीत कविता के अभ्यास के प्रश्न :
प्रश्न : 1 : कविता एक ओर जग-जीवन का भार लिए घूमने की बात करती है और दूसरी ओर मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ – विपरीत से लगते हुए
कथनों का क्या आषय है?
उत्तर : कविता एक ओर ‘जग-जीवन का भार लिए घूमने की बात करती है’, वह इसलिये क्योंकि यह संसार जिसमें कवि आया हुआ हूं, उसका जीवन जीने का और जीवन के साथ व्यवहार करने का अपना एक पारंपरिक ढंग है। कवि उसकी इस षैली को अपने लिये अनुकूल नहीं पाता, इसलिये वह कवि के लिये भार स्वरूप ही है।
‘मैं कभी न जग का ध्यान किया करता
हूँ’, का आषय यह है कि जीवन जीने के बारे में कवि के अपने मौलिक विचार हैं, इसलिये वे संसार की बातों को गंभीरता से नहीं लेते।
प्रश्न : 2 : जहां पर दाना रहते हैं, वहीं नादान भी होते हैं – कवि ने ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर : कवि ने ऐसा इसलिये कहा है क्योंकि संसार में सभी तरह के लोग होते हैं। यदि ज्ञानी हैं तो अज्ञानी और भोले लोग भी होते हैं।
प्रश्न : 3 : मैं और, और जग और, कहाँ का नाता- पंक्ति में और शब्द की विशेषता बताईये?
उत्तर : इस पंक्ति में और षब्द की यह विषेशता है कि वह अनेक अर्थों में प्रयुक्त हुआ है- पहली बार अन्य के लिये, दूसरी बार विभक्ति के तौर पर और तीसरी बार पुनः अन्य के रूप में। इस तरह एक ही षब्द अनेक अर्थ अभिव्यक्त करता है और यमक अलंकार की सर्जना करता है।
प्रश्न : 4 : शीतल वाणी में आग- के होने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर : शीतल वाणी में आग- के होने का अभिप्राय यह है कि कवि की वाणी भले ही शीतल हो, किंतु वह उन शब्दों का उच्चारण करती है, जिनमें आग होती है। कड़ा प्रतिरोध होता है। संसार की विसंगतियों को जला डालने की उसमें क्षमता है।
प्रश्न : 5 : बच्चे किस बात की आशा में नीड़ों से झांक रहे होंगे?
उत्तर : बच्चे इस आशा में नीड़ों से झांक रहे होंगे कि उनके माता-पिता आयेंगे उनके आने पर उन्हें भोजन और मां का प्यार और भोजन मिलेगा।
प्रश्न : 6 : दिन जल्दी-जल्दी ढलता हैं- की आवृत्ति से कविता की किस विषेशता का पता चलता है?
उत्तर : दिन जल्दी-जल्दी ढलता हैं- की आवृत्ति से कविता की इस विषेशता का पता चलता है कि वह समय के अबाध गति से व्यतीत होने के सत्य को प्रकट कर रही है।
दिन के ढलने पर सभी अपने-अपने घरों को लौटने की आतुरता में होते हैं। इसी आतुरता को अभिव्यक्त करने के लिये कवि ने इस पंक्ति को बार-बार दोहराया है।
एक गीत - हरिवंशराय बच्चन /अभ्यास के प्रश्न कक्षा 12 हिन्दी /Ek Geet poem by Harivanshray Bacchan class 12/ NCERT Solutions class 12 Hindi Core Harivansh Rai Bachchan