आज के इस लेख के माध्यम से हम आपको प्रसिद्ध उपन्यासकार हिंदी साहित्य के पितामह मुंशी प्रेमचंद के जीवन परिचय के विषय में बताने वाले हैं। मुंशी प्रेमचंद हिंदी साहित्य की नींव रखने वाले प्रथम ऐसे उपन्यासकार, कहानीकार है, जिन्होंने अपनी रचनाओं में निम्न वर्गीय लोग जैसे कि किसान आदि को महत्वपूर्ण स्थान दिया।
मुंशी प्रेमचंद का बचपन बहुत ही कष्टकारी था। फिर भी मुंशी प्रेमचंद ने अपना साहस नहीं छोड़ा और अपने इसी मेहनत के चलते आज भी श्रेष्ठ उपन्यासकार तथा कहानीकार है।
तो आइए मुंशी प्रेमचंद के बारे में विस्तारपूर्वक सभी जानकारी प्राप्त करते हैं कि उन्होंने किन परिस्थितियों का सामना करके इस उपलब्धि को प्राप्त किया है।
मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय (जन्म, शिक्षा, विवाह, मृत्यु, प्रसिद्ध उपन्यास, कृतियां, भाषा शैली)
- मुंशी प्रेमचंद जीवनी एक नज़र में
- मुंशी प्रेमचंद कौन थे?
- मुंशी प्रेमचंद का जन्म कब और कहां हुआ?
- मुंशी प्रेमचंद के बचपन का नाम और उनकी कहानी
- मुंशी प्रेमचंद जी का विवाह
- मुंशी प्रेमचंद की शिक्षा
- आजीविका चलाने हेतु मुंशी प्रेमचंद द्वारा कार्य
- मुंशी प्रेमचंद की कृतियां
- मुंशी प्रेमचंद की कथा शिल्प
- मुंशी प्रेमचंद की भाषा शैली
- मुंशी प्रेमचंद की साहित्यिक रुचि
- प्रेमचंद के जीवन संबंधी विवाद
- मुंशी के विषय में विवाद
- मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु
- प्रेमचंद के बारे में रोचक तथ्य
- पुरस्कार व सम्मान
- FAQ
- निष्कर्ष
मुंशी प्रेमचंद जीवनी एक नज़र में
नाम | मुंशी प्रेमचंद |
अन्य नाम | श्रेष्ठ उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद, धनपत राय |
पिता का नाम | अजायब राय |
माता का नाम | आनन्दी देवी |
जन्म तारीख | 31 जुलाई 1880 |
जन्म स्थान | लमही गाँव (वाराणसी) |
पत्नी का नाम | शिवरानी देवी |
उम्र | 56 वर्ष |
पता | लमही गाँव, वाराणसी |
स्कूल | – |
कॉलेज | – |
शिक्षा | – |
मृत्यु | 8 अक्टूबर 1936 |
भाषा | उर्दू, हिंदी |
नागरिकता | इंडियन |
धर्म | हिन्दू |
जाति | कायस्थ परिवार (श्रीवास्तव) |
मुंशी प्रेमचंद कौन थे?
मुंशी प्रेमचंद हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ कहानीकार तथा उपन्यासकार है। मुंशी प्रेमचंद का स्थान हिंदी साहित्य में उपन्यासकार के रूप में सबसे ऊपर है। मुंशी प्रेमचंद अपनी रचनाओं को बड़ी ही मेहनत और लगन के साथ लिखा करते थे।
ऐसा भी कहा जाता है कि मुंशी प्रेमचंद जब अपनी रचनाओं को लिखना प्रारंभ करते थे तो वह उस किरदार में स्वयं को मान लेते थे और फिर अपनी रचनाओं की विशेषता प्रकट करते थे। उनके इसी विशेषता के कारण उन्हें हिंदी साहित्य में सर्वश्रेष्ठ उपन्यासकार और कथाकार के रूप में ख्याति प्राप्त है।
मुंशी प्रेमचंद का जन्म कब और कहां हुआ?
प्रेमचंद का जन्म वाराणसी जिले के लमही नामक ग्राम में 31 जुलाई 1880 को हुआ था। प्रेमचंद का बचपन बड़ी कठिनाइयों में व्यतीत हुआ। जीवन की विषम परिस्थितियों में भी उनका अध्ययन क्रम निरंतर चलता रहा।
मुंशी प्रेमचंद के पिता का नाम अजायब राय था और माता का नाम आनन्दी देवी था। मुंशी प्रेमचंद के पिता डाकखाने में एक नौकर के तौर पर काम करते थे।
मुंशी प्रेमचंद के बचपन का नाम और उनकी कहानी
उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद के बचपन का नाम धनपत राय था। जब मुंशी प्रेमचंद की उम्र लगभग 8 वर्ष की थी तभी उनके माता का स्वर्गवास हो गया। अपनी माता के स्वर्गवास हो जाने के पश्चात उनको जीवन में बहुत ही विषम परिस्थितियों से गुजारना पड़ा।
मुंशी प्रेमचंद के पिता अजायब राय ने दूसरा विवाह कर लिया, जिसके कारण प्रेमचंद चाह कर भी माता का प्रेम और स्नेह नहीं प्राप्त कर सके। लोगों का कहना है कि अपने घर की भयंकर गरीबी के कारण उनके पास पहनने के लिए कपड़े भी नहीं थे और ना ही खाने के लिए पर्याप्त भोजन होता था। इन सब परिस्थितियों के बावजूद घर में उनकी सौतेली माता का व्यवहार में उनकी हालत को और खराब कर देता था।
मुंशी प्रेमचंद जी का विवाह
लोगों का कहना है कि जब मुंशी प्रेमचंद महज 15 वर्ष के थे तभी उनके पिता ने उनका विवाह करा दिया था। जिस लड़की से मुंशी प्रेमचंद का विवाह हुआ था, वह मुंशी प्रेमचंद से उम्र में बड़ी और बहुत ही बदसूरत भी थी।
मुंशी प्रेमचंद की पत्नी की सूरत बुरी तो थी, साथ ही उनके पत्नी का व्यवहार भी बहुत बुरा था। पत्नी की कटुता पूर्ण बातें ऐसी लगती थी कि जैसे कोई जले पर नमक छिड़क रहा हो।
उन्होंने अपनी एक रचना में स्वयं लिखा है “उम्र में वह मुझसे ज्यादा थी, तब मैंने उसकी सूरत देखी तो मेरा खून सूख गया।” मुंशी प्रेमचंद ने अपने विवाह को लेकर अपने पिता के ऊपर भी कुछ लिखा है “पिताजी ने जीवन के अंतिम सालों में एक ठोकर खाई और स्वयं तो गिरे ही साथ में मुझे भी डुबो दिया, मेरी शादी बिना सोचे समझे कर डाली।” हालांकि मुंशी प्रेमचंद के पिता को उनके इस करनी का बाद में पश्चाताप भी हुआ।
मुंशी प्रेमचंद के विवाह के ठीक 1 वर्ष बाद उनके पिता की मृत्यु हो गई। पिता की मृत्यु के बाद अचानक पूरे परिवार का बोझ मुंशी प्रेमचंद के सर आ गया। अब मुंशी प्रेमचंद के ऊपर 5 लोगों का खर्चा आन पड़ा। इन पांच लोगों मे उनकी विधवा माता, उनके दो बच्चे और उनकी पत्नी के साथ-साथ स्वयं का भी बोझ था।
प्रेमचंद के आर्थिक विपत्ति का अनुमान इस घटना से लगाया जा सकता है कि उन्हें पैसों की इतनी जरूरत थी कि उन्हें अपना कोट भी बेचना पड़ा, कोट के साथ-साथ उन्हें अपनी पुस्तक बेचनी पड़ी।
वह जब एक बार अपनी पुस्तक को बेचने के लिए बुकसेलर के पास पहुंचे, तभी वहां पर एक स्कूल के हेड मास्टर आन पड़े और उन्होंने मुंशी प्रेमचंद को अपने विद्यालय में अध्यापक पद पर नियुक्त किया।
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मुंशी प्रेमचंद की शिक्षा
मुंशी प्रेमचंद ने बीए तक की शिक्षा प्राप्त की। जीवन की विषम परिस्थितियों में भी उनका अध्ययन क्रम चलता रहा। उन्होंने उर्दू का भी विशेष ज्ञान प्राप्त किया। जैसा कि आपको पहले बताया उनके बचपन का नाम धनपत राय था और मुंशी प्रेमचंद को उर्दू का विशेष ज्ञान था, इस कारण उन्होंने अपनी एक पत्रिका को अपने नाम धनपत राय के उर्दू अर्थ नवाब राय नाम से कहानी लिखते थे।
आजीविका चलाने हेतु मुंशी प्रेमचंद द्वारा कार्य
मुंशी प्रेमचंद ने आज इनका चलाने के लिए एक विद्यालय में अध्यापक पद को सुशोभित किया और अपने इस बात को अपने कर्तव्य और निष्ठा के साथ करने लगे।
अपने इसी कर्तव्य निष्ठा के दम पर वह उस विद्यालय के अध्यापक से सब इंस्पेक्टर बन गए। वह कुछ समय तक काशी विद्यापीठ में भी अध्यापक के पद को सुशोभित किया है।
मुंशी प्रेमचंद की कृतियां
प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य के हर एक विधाओं में अपनी उत्कृष्ट रचना के जरिए हिंदी साहित्य के लेखकों में अपना उत्कृष्ट स्थान बनाया है। प्रेमचंद ने अपनी अधिकांश रचना उर्दू भाषा में लिखी, जिसके बाद में हिंदी में रूपांतरित किया गया। इसके अतिरिक्त अंग्रेजी, जर्मनी, रूसी जैसे अनेक भाषाओं में भी अनुवाद किया गया।
प्रेमचंद ने कुल 300 के करीब कहानियां, 12 से भी अधिक उपन्यास और कुछ नाटक भी लिखे। कुछ साहित्य का इन्होंने अनुवाद कार्य भी किया। कहानी लेखन की शुरुआत इन्होंने 1915 से करी, वही उपन्यास लिखने की शुरुआत 1918 से की थी। कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट भी माना जाता है।
इनकी कहानी रचना में कफन सबसे ज्यादा प्रख्यात माना जाता है और इनके अंतिम कहानी थी, जिसे इन्होंने हिंदी और उर्दू में लिखी थी। इनकी सभी उपन्यासों में गोदान सबसे अधिक चर्चा में रहती है। प्रेमचंद की साहिब रचना का समय 33 वर्षों का रहा और इस 33 वर्षों में इन्होंने साहित्य की ऐसी विरासत आज की पीढ़ी को देकर गए, जो गुणों की दृष्टि से अमूल्य है।
प्रेमचंद के साहित्य का आरंभ 1901 में शुरू हुआ, जो पहली हिंदी कहानी सरस्वती पत्रिका मैं सोत नाम से प्रकाशित हुई और अंतिम कहानी कफन 1936 में प्रकाशित हुई। प्रेमचंद की कहानियों का दौर 20 वर्षों तक चला, जिसमें अनेकों रंग देखने को मिले है। इनकी कहानी में काल्पनिक, पौराणिक, धार्मिक रचनाएं थी।
1908 में प्रेमचंद के पांच कहानियों का संग्रह सोजे वतन प्रकाशित हुआ था, जो एक देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत था। जिस कारण अंग्रेजी सरकार ने प्रेमचंद को कहानी लिखने पर प्रतिबंध लगा दिया।
इससे पहले तक प्रेमचंद धनपत राय नाम से अपने कहानियों का प्रकाशन करते थे। लेकिन अंग्रेजी सरकार के इस घोषणा के बाद उन्होंने अपना नाम बदलकर प्रेमचंद के नाम से आगे कहानियों का प्रकाशन करना शुरू किया। प्रेमचंद नाम से इनकी पहली कहानी बड़े घर की बेटी 1910 में जमाना पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।
उनके कृतियों में जीवन सत्य का आदर्श रूप उभर कर सामने आता है। इसके परिणाम स्वरूप वे सार्वभौमिक कलाकार के रूप में भी प्रतिष्ठित है। मुंशी प्रेमचंद ने कहानी संग्रह, उपन्यास, नाटक, निबंध, अनुवाद इत्यादि रचनाएं की है, जिनमें से कुछ प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं।
कहानी संग्रह
सप्त सरोज, प्रेम पूर्णिमा, लाल फीता, नवनीत, बड़े घर की बेटी, नमक का दरोगा, प्रेम द्वादशी, प्रेम प्रमोद, प्रेम पचीसी, प्रेम प्रसून, प्रेम तीर्थ, प्रेम चतुर्थी, शब्द सुमन, प्रेम पंचमी, प्रेरणा, प्रेम प्रतिज्ञा, पंच प्रसून, समर यात्रा, नवजीवन आदि।
उपन्यास
प्रेमचंद ने एक से बढ़कर एक उपन्यास लिखे, इनकी उपन्यास रचना इनके समय काल में बहुत ज्यादा प्रसिद्ध हुई। यहां तक कि आज भी उनके उपन्यास को लोग बहुत ही चाव से पढ़ते हैं। प्रेमचंद का पहला उपन्यास 8 अक्टूबर 1903 को उर्दू साप्ताहिक ‘’आवाज-ए-खल्क़’’ में ‘अपूर्ण’ नाम से प्रकाशित हुआ था।
इनका दूसरा उपन्यास ‘हमखुर्मा व हमसवाब’ था और 1907 में इस उपन्यास का ‘प्रेमा’ नाम से हिंदी में रूपांतरण होकर प्रकाशित हुआ। प्रेमचंद ने अपने अधिकांश उपन्यास को उर्दू भाषा में लिखा। हालांकि अधिकांश उर्दू उपन्यासों का हिंदी में रूपांतरण किया गया।
1918 में प्रेमचंद ने “सेवासदन” नाम का उपन्यास की रचना की। हालांकि यह उपन्यास हिंदी में लिखी गई थी। उर्दू में लिखी गई इस उपन्यास का नाम ‘बाजारे-हुस्न’ था।यह उपन्यास वेश्यावृत्ति पर आधारित है। इस उपन्यास के जरिए प्रेमचंद ने भारत के नारी की पराधीनता को बताया है।
1921 में अवध के किसान आंदोलन के दौर में प्रेमचंद की आई उपन्यास “प्रेमाश्रम” में किसान जीवन का वर्णन किया गया है। इसे भी प्रेमचंद ने ‘गोशाए-आफियत’ नाम से पहले उर्दू में लिखा था। लेकिन सबसे पहले इसका हिंदी रूपांतरण का प्रकाशन हुआ। इस तरह 1903 से शुरू होकर 1936 तक ‘गोदान’ तक इनका उपन्यास पहुंचकर खत्म हुआ।
साल 1925 में प्रेमचंद की आई उपन्यास रंगभूमि में इन्होंने एक अंधे भिखारी सूरदास को कथा का नायक बनाकर हिंदी कथा साहित्य में क्रांतिकारी बदलाव लाने का प्रयास किया। इनका उपन्यास रचना “गोदान” हिंदी साहित्य के उत्कृष्ट उपन्यास मानी जाती है, जिसका स्थान विश्व साहित्य में भी बहुत मायने रखता है।
इस उपन्यास में इन्होंने एक सामान्य किसान को पूरे उपन्यास का नायक बनाकर भारत के उस समय किसान स्थिति को बहुत ही सुंदर तरीके से वर्णित किया है। मंगलसूत्र प्रेमचंद की अंतिम उपन्यास रचना थी, जो अधूरी थी। प्रेमचंद की कई उपन्यासों का दुनिया की कई भाषाओं में रूपांतरण किया गया। इस तरह प्रेमचंद ने हिंदी उपन्यास को जो ऊंचाई प्रदान की है, वह सच में सराहनीय है।
प्रसिद्ध उपन्यास संग्रह
सेवा सदन, रंगभूमि, कर्मभूमि, गोदान, गबन, कायाकल्प, निर्मला, सेवा सदन, प्रेम आश्रम, मंगलसूत्र आदि। मुंशी प्रेमचंद का अधूरा उपन्यास मंगलसूत्र है।
मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियां
शतरंज के खिलाड़ी, पूस की रात, आत्माराम, रानी सारंधा आदि मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियां हैं।
मुंशी प्रेमचंद की कथा शिल्प
मुंशी प्रेमचंद का विशाल कहानी साहित्य मानव प्रकृति, मानव इतिहास तथा मानवीयता के हृदयस्पर्शी एवं कलापूर्ण चित्र से परिपूर्ण है। उन्होंने सांस्कृतिक उन्नयन, राष्ट्र सेवा, आत्म गौरव आदि के सचिव एवं रोचक चित्रण के साथ-साथ मानव के वास्तविक स्वरूप को दर्शाने में अपूर्व कौशल दर्शाया है।
उनकी कहानियों में दमन, शोषण एवं अन्याय के विरुद्ध आवाज बुलंद करने की सलाह दी गई है तथा सामाजिक विकृतियों पर व्यंग के माध्यम से प्रहार किया गया है। मुंशी प्रेमचंद की कहानी रचना का केंद्र बिंदु मानव है। उनकी कहानियों में लोक जीवन के विभिन्न पक्षों का मार्मिक चित्रण किया गया है।
प्रेमचंद के कथावस्तु का गठन समाज के विभिन्न धरातल को स्पर्श करते हुए यथार्थ जगत की घटनाओं, भावनाओं, चिंतन – मनन एवं जीवन संघर्षों को लेकर चलता है। मुंशी प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में पात्रों का मनोवैज्ञानिक चित्रण किया है।
इसके साथ ही इन्होंने मानव की अनुभूतियों एवं संवेदना को भी महत्व दिया है। मुंशी प्रेमचंद मानव मन के सूक्ष्म तम भाव का आकर्षण चित्र अपनी रचनाओं में लाने में सफल रहे हैं।
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मुंशी प्रेमचंद की भाषा शैली
मुंशी प्रेमचंद ने अपनी भाषा शैली के क्षेत्र में उदार एवं व्यापक दृष्टिकोण अपनाया है। मुहावरों और लोकोक्तियों की लाक्षणिक तथा आकर्षक योजना ने उनकी अभिव्यक्ति को और भी अधिक सशक्त बनाया है।
उनकी कहानियों का वास्तविक सौंदर्य का मुख्य आधार उनके पात्रों की सहायता है, जिसके लिए मुंशी प्रेमचंद ने जन भाषा का स्वाभाविक प्रयोग किया है जैसे कि कल्लू, हरखू इत्यादि जैसे सरल शब्द। उनकी भाषा में व्यवहारिकता एवं साहित्यकता का सजीव चित्रण है। मुंशी प्रेमचंद की भाषा शैली सरल, रोचक, प्रवाह एवं प्रभावपूर्ण है।
मुंशी प्रेमचंद की साहित्यिक रुचि
मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं में आपको गरीबी, आभाव, शोषण तथा उत्पीड़न आदि जैसी दैनिक जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियां मिल जाएंगे। मुंशी प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में इन साहित्य रुचियो को इसलिए स्थान दिया है क्योंकि यह खुद भी इस परिस्थितियों से गुजर चुके हैं।
प्रेमचंद जब मिडिल स्कूल में थे, उन्होंने तभी से उपन्यास को पढ़ना आरंभ कर दिया था। मुंशी प्रेमचंद को बचपन से ही उर्दू आती थी, इसलिए उन्होंने अपने कुछ उपन्यास को उर्दू में लिखा है।
प्रेमचंद के जीवन संबंधी विवाद
प्रेमचंद निसंदेह एक महान रचनाकार है, लेकिन इसके बावजूद भी प्रेमचंद के जीवन पर कई आरोप लगाए गए हैं। प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी द्वारा प्रेमचंद के जीवन पर लिखा गया रचना “प्रेमचंद घर में” उद्धृत किया हैं, जिसके माध्यम से कुछ लोग प्रेमचंद पर आरोप लगाते हुए कहते हैं कि इन्होंने अपनी पहली पत्नी को बिना वजह छोड़ दिया था और दूसरी विवाह के बाद भी इनका संबंध अन्य महिलाओं से रहा था।
कमल किशोर गोयनका द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘प्रेमचंद: अध्ययन की नई दिशाएं’ में इन्होंने प्रेमचंद के जीवन पर कुछ आरोप लगाकर उनके महत्व को कम करने का प्रयास किया है। प्रेमचंद के जीवन से संबंधित चाहे कुछ भी विवाद हो लेकिन अपनी उत्कृष्ट रचनाओं के कारण ही आज भी युवाओं के बीच इनकी रचनाएं काफी ज्यादा प्रसिद्ध है।
यही कारण है कि आज भी इनके विवादों पर किसी का नजर नहीं पड़ता है। लोग इनकी काबिलियत को देखते हैं। इनके द्वारा लिखे गए अनेकों उपन्यास, कहानी और कविताओं की सराहना करते हैं।
मुंशी के विषय में विवाद
प्रेमचंद जिन्हें ‘मुंशी प्रेमचंद’ के नाम से भी जाना जाता है। असल में तो इनका नाम धनपत राय था, लेकिन इनके नाम के आगे मुंशी शब्द किस तरह और कब जुड़ा इसके बारे में सटीक रूप से किसी को भी मालूम नहीं है।
हालांकि कुछ लोग कहते हैं कि प्रेमचंद अपने समय में अध्यापक रह चुके हैं और उस समय अध्यापकों को प्रायः मुंशीजी कहा जाता था। यह भी कारण हो सकता है कि प्रेमचंद को मुंशी प्रेमचंद कहा जाता है। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि मुंशी शब्द कायस्थों के नाम के पहले सम्मान पूर्वक लगाया जाता था और इसीलिए प्रेमचंद के नाम के पहले मुंशी शब्द जुड़ गया।
इस तरह बहुत से लोगों का मानना है कि मुंशी शब्द एक सम्मान सूचक शब्द है, जो प्रेमचंद के प्रशंसकों ने कभी लगा दिया होगा। प्रोफेसर सुखदेव सिंह के अनुसार प्रेमचंद ने कभी भी अपने नाम के आगे मुंशी शब्द का प्रयोग नहीं किया था।
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि प्रेमचंद और कन्हैयालाल मुंशी के सह संपादन में “हंस” नामक पत्रिका इनके समय में निकलता था। यह कारण भी प्रेमचंद के नाम के आगे मुंशी लगाने का हो सकता है।
मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु
जैसा कि आपको बताया मुंशी प्रेमचंद का एक अपूर्ण उपन्यास मंगलसूत्र है। मंगलसूत्र अपूर्ण रहने का कारण है कि जब मुंशी प्रेमचंद मंगलसूत्र की रचना कर रहे थे और उन्होंने लगभग मंगलसूत्र उपन्यास की आधी रचना को पूरा कर लिया था, तभी अचानक उनकी तबीयत में कुछ बदलाव आया और उनकी मृत्यु हो गई। मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु 8 अक्टूबर 1936 को हुई।
प्रेमचंद के बारे में रोचक तथ्य
- प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय था, लेकिन इनकी रचना सोजे वतन जो पांच कहानियों का संग्रह था और यह कहानी देशभक्ति से ओतप्रोत था। इसलिए अंग्रेजी सरकार ने इन पर कहानी लिखने के लिए प्रतिबंध लगा दिया था। जिस कारण इन्होंने अपना नाम बदलकर प्रेमचंद के नाम से अपनी कहानियों को पत्रिका में प्रकाशन करना शुरू किया। उसके बाद से इनकी जितनी भी रचनाएं आई, उसमें प्रेमचंद नाम लिखा होता था।
- 1936 में प्रेमचंद ने लखनऊ में भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के सम्मेलन की अध्यक्षता की थी।
- प्रेमचंद ने अपनी पहली पत्नी को छोड़कर एक विधवा महिला शिवरानी देवी से दोबारा विवाह किया था।
- प्रेमचंद जी को कलम के सिपाही का उपनाम इनके बेटे अमृत राय ने दिया था।
- 1921 में प्रेमचंद महात्मा गांधी के आवाहन पर अपनी नौकरी छोड़ दी थी।
- प्रेमचंद ने मासिक पत्र हंस, जागरण नामक सप्ताहिक पत्र और माधुरी नामक पत्रिका का संपादन अपने समय में किया था।
- प्रेमचंद की दूसरी पत्नी शिवरानी देवी ने भी प्रेमचंद की जीवनी प्रेमचंद घर में नाम से लिखी थी। इस पुस्तक का प्रकाशन साल 1944 में पहली बार किया गया था, लेकिन बाद में साल 2005 में दोबारा इसको संशोधित करके प्रकाशित किया गया था। इसमें उन्होंने प्रेमचंद के व्यक्तित्व के कई हिस्से का उजागर किया है।
पुरस्कार व सम्मान
- प्रेमचंद की 125 वीं सालगिरह पर उत्तर प्रदेश सरकार ने वाराणसी में प्रेमचंद के नाम पर एक स्मारक, शोध एवं अध्ययन संस्थान बनाने की घोषणा की थी।
- प्रेमचंद गोरखपुर के जिस स्कूल में पढ़ाया करते थे, वहां पर साहित्य संस्थान की स्थापना की गई है। जिसके बरामदे में एक भित्तीलेख है, जिसके दाहिने ओर प्रेमचंद का चित्र उकेरा गया है और वहां पर प्रेमचंद के जीवन से संबंधित वस्तुओं का एक संग्रहालय भी है और इनकी एक प्रतिमा भी स्थापित है।
- 31 जुलाई 1980 को प्रेमचंद की स्मृति में भारतीय डाकघर विभाग की ओर से 30 पैसे मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया गया था।
FAQ
कलम का सिपाही किसे कहा जाता है?
कलम का सिपाही लेखक प्रेमचंद को कहा जाता है। क्योंकि प्रेमचंद के लेखन का मुकाबला आज के बड़े-बड़े लेखक भी नहीं कर पाए हैं। ये अपने समय के सबसे बड़े साहित्यकार हुए हैं, इसीलिए इन्हें कलम का सिपाही कहा जाता है।
प्रेमचंद का वास्तविक नाम क्या है?
प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था।
प्रेमचंद को कलम के सिपाही का उपनाम किसने दिया था?
प्रेमचंद को कलम का सिपाही कहकर उनके बेटे ने ही इन्हें सम्मान दिया था। प्रेमचंद के बेटे अमृत राय ने प्रेमचंद की जीवनी कलम के सिपाही के नाम से लिखी थी, जिसका बाद में अंग्रेजी और उर्दू भाषा में भी रूपांतरण किया गया और चीनी, रूसी जैसे अन्य विदेशी भाषाओं में भी इसका रूपांतरण किया गया।
कलम का सिपाही का प्रकाशन वर्ष क्या है?
प्रेमचंद के बेटे अमृतराय द्वारा लिखी गई प्रेमचंद की जीवनी ‘कलम का सिपाही’ का पहला संस्करण 1962 में प्रकाशित हुआ था।
प्रेमचंद को कौन से उपन्यास से ज्यादा ख्याति मिली?
प्रेमचंद को उनके उपन्यास सेवासदन के प्रकाशन के बाद उन्हें अच्छी ख्याति मिली और एक अच्छे उपन्यासकार के रूप में जाने जाने लगे। यह उपन्यास वेश्यावृत्ति पर आधारित उपन्यास है।
प्रेमचंद का कौन सा उपन्यास किसान जीवन पर आधारित है?
प्रेमचंद द्वारा 1922 में रचित इनके उपन्यास प्रेमाश्रम किसान जीवन पर आधारित है।
प्रेमचंद की अंतिम कहानी रचना कौन सी है?
प्रेमचंद की आखिरी कहानी रचना मंगलसूत्र है। मंगलसूत्र को प्रेमचंद की आखिरी उपन्यास मानी जाती है।
प्रेमचंद का जन्म कब हुआ था?
31 जुलाई 1880
प्रेमचंद के पिता कहाँ काम करते थे?
मुंशी प्रेमचंद के पिता डाकखाने में एक नौकर के तौर पर काम करते थे।
निष्कर्ष
आज के इस लेख में आपको बताया कि हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद के बचपन का समय किस प्रकार से व्यतीत हुआ है और उनकी प्रमुख रचनाओं के बारे में भी हमने इस लेख के माध्यम से आपको बताया है।
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