मैं अपने अंग कैसे दान कर सकता हूं? - main apane ang kaise daan kar sakata hoon?

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देहदान, अंगदान के बारे में सब कुछ जो आप जानना चाहते हैं!

तीन साल पहले शहर में एक किशारे की कलाई जोड़ने से पहले सर्जन ने मेडिकल कॉलेज में डेड बॉडी पर प्रैक्टिकल कर देखा था, वे इसके बाद किशोर को पूरा हाथ देने में कामयाब हुए, यह तभी संभव हुआ। जब जैन जैसे किसी महादानवीर ने अपनी देह मेडिकल कॉलेज को दान की। चिकित्सा जगत के लिए मृतदेह अमूल्य है, सिर्फ जनरल पढ़ाई लिखाई ही नहीं, आगे के शोध और जटिल ऑपरेशन में दिग्गज सर्जंस के लिए भी यह देह रोशनी का काम कर कई जिंदगियां बचाती है। पढ़ें भास्कर की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट- ‘क्यों देहदान जरूरी है’, कोटा में अभी क्या स्थिति है, शरीर के कौन से अंग भी दान किए जा सकते हैं और इनसे जुड़ेे अन्य प्रमुख सवालों के बारे में। कोटा.कोटा में फिलहाल देहदान के बारे में विशेष जागृति नहीं है। मेडिकल कॉलेज खुलने के बाद अब तक इसके एनोटॉमी विभाग को केवल तीन बॉडी देहदान के रूप में मिली हैं। इसका सीधा कारण जागरूकता की कमी माना जा सकता है। भास्कर ने देहदान को बढ़ावा देने के लिए जब शहर के निजी अस्पतालों में जाकर देहदान की प्रक्रिया के बारे में जानने की कोशिश की, तो अधिकतर निजी अस्पतालों में न तो देहदान के बैनर, पोस्टर लगे मिले न ही वहां देहदान के बारे में कोई कर्मचारी स्पष्ट बता पाया। यदि सरकारी व निजी अस्पताल मिलकर देहदान को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान चलाएं, तो लाखों का भला हो सकता है। क्योंकि एक बॉडी से मेडिकल कॉलेज के 10 से 12 छात्रों को पढ़ाया जाता है। शहर में ऐसे भी उदाहरण सामने आएं है कि डॉक्टरों ने बॉडी पर प्रैक्टिकल कर जटिल ऑपरेशन को भी सफल कर दिखाया, इससे अब कई रोगियों की जान बचने लगी है। इसलिए रक्तदान, नेत्रदान की तरह ही देहदान को भी शहरवासियों को बढ़ावा देना होगा। 12 देह चाहिए, मिल रही हैं 5 डॉ. प्रतिमा जायसवाल,कोटा.कोटा मेडिकल कॉलेज में फिलहाल 150 मेडिकल स्टूडेंट्स हैं। इनके अध्ययन के लिए प्रतिवर्ष 10 से 12 मानव शरीरों की आवश्यकता होती है, लेकिन फिलहाल कॉलेज में केवल 5 मानव शरीर उपलब्ध हैं। ऐसे में मानव शरीर के अंगों के अध्ययन में स्टूडेंट्स को काफी परेशानी आती है। आने वाले वर्षो में सीटें बढ़कर 250 तक होने की संभावना है। ऐसा होने पर पढ़ाई और भी मुश्किल हो जाएगी। अनक्लेम बॉडीज अस्पताल को देने की प्रक्रिया है, लेकिन कानूनी प्रक्रिया पूरी होते होते यह बॉडीज खराब हो जाती हैं और विद्यार्थियों के काम की नहीं रहती। देहदान के प्रति जागरूकता लाने के लिए सरकार के स्तर पर प्रयास हुए हैं, लेकिन अभी जागरूकता की काफी कमी है। डॉ. जायसवाल का मानना है कि देहदान की कमी का सीधा असर चिकित्सा शिक्षा पर पड़ता है। आदर्श स्थिति में एक मानव शरीर पर 10 से 12 स्टूडेंट ही प्रयोग कर सकते हैं, लेकिन यहां एक शरीर पर करीब 30 छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। देहदान ही बनाता है बेहतर डॉक्टर मेडिकल कॉलेजों में डॉक्टर बनने वाला प्रत्येक छात्र मानव शरीर को अंदर से देखकर ही प्रैक्टिकल सीखते हैं। कोटा मेडिकल कॉलेज में प्रैक्टिकल करने के लिए भी कई सीनियर सर्जन्स आते हैं। मेडिकल ऑपरेशन में जब भी कोई नई तकनीक आती हैं, तो उसे सीखने और प्रैक्टिकल कर देखने के लिए कडैवेरिक वर्कशॉप (मानव शरीर पर प्रयोग) के लिए भी बॉडी का उपयोग किया जाता है। एंडोस्कोपी करने से पहले ईएनटी सर्जन डॉ. एस सान्याल, डॉ. विक्रांत और प्लास्टिक सर्जरी के लिए डॉ. आलोक गर्ग भी अक्सर यहां आते हैं। तो जानवरों की बॉडी पर होते हैं प्रैक्टिकल मानव शरीर न मिलने की स्थिति में कई डॉक्टर जटिल ऑपरेशन करने से पहले जानवरों के मृत शरीर पर भी प्रैक्टिकल करते हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं। जब डॉक्टरों ने मुंबई और दिल्ली जाकर जानवरों के शरीर पर प्रयोग किए, उसके बाद जटिल ऑपरेशनों को पूरा किया। देहदान का इतिहास एक शताब्दी पहले मानव शरीर की अस्पतालों में उपलब्धता इतनी कम थी कि 1800 के आसपास बॉडीज को अस्पतालों में बेचने के लिए एक व्यक्ति ने 15 मर्डर कर दिए थे। उस समय मेडिकल स्टूडेंट्स को पढ़ने के लिए बॉडी नहीं मिल पाती थी। बॉडी डोनेशन को लेकर 1832 अमेरिका में पहली बार एक्ट बना था, उसमें बताया था अनक्लेम बॉडी अस्पताल को स्टूडेंट्स की पढ़ाई के लिए दे दी जाए। अनक्लेम बॉडी को अस्पताल को सौंपने के लिए राजस्थान में एक्ट 1986 में बना था। देहदान व अंगदान के बारे में वो सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं सामान्यत: शरीर के किसी भी हिस्से को डोनेट किया जा सकता है। बशर्ते वे दानदाता के जीवन को प्रभावित न करें तथा वे हिस्से किसी गंभीर बीमारी से प्रभावित न हों। हालांकि शरीर के किडनी, लीवर का कुछ पार्ट और कॉर्निया की ज्यादा मांग होती है। ब्रेन डैड होने पर शरीर के सारे अंग दान किए जा सकते हैं। शरीर के मृत होने पर तीन घंटे में आंख के कॉर्निया का दान हो सकता है। औसतन तीन घंटे के अंदर ही बॉडी डोनेशन किया जा सकता है। ऐसे कर सकते हैं देहदान >यदि कोई देहदान करना चाहता है तो उसे आरकेपुरम स्थित मेडिकल कॉलेज के नए अस्पताल के एनोटॉमी विभागाध्यक्ष के नाम लिखित में आवेदन करना होगा। >एनोटॉमी विभाग की ओर से दो पेज का फार्म निशुल्क दिया जाएगा >फार्म में देहदान करने वाले व्यक्ति का नाम, पता, उत्तराधिकारी का नाम, दो विटनेस जिसमें या तो पत्नी या पड़ोसियों हो सकते हैं। >देहदान करने वाले व्यक्ति को दो पासपोर्ट फोटो देने होंगे, जिसमें से एक फार्म पर लगाया जाएगा दूसरा रजिस्ट्रेशन कार्ड पर लगेगा। >फार्म एनोटॉमी विभाग को देने के बाद विभाग की ओर से तुरंत एक रजिस्ट्रेशन कार्ड दिया जाएगा, जिस पर रजिस्ट्रेशन नंबर व नाम अंकित होगा, उस पर देहदान करने की घोषणा करने वाले व्यक्ति का फोटो भी लगा होगा। देह के अलावा ये अंग भी किए जा सकते हैं दान किडनी, हार्ट, लीवर, लंग्स, पैंक्रियाज, कॉर्निया और स्मॉल बाउल (छोटी आंत) का प्रत्यारोपण किया जा सकता है। ऊतकों मंे हृदय के वॉल्व, हड्डियों और त्वचा को दान किया जा सकता है। क्या मरने के बाद ही अंग दान किए जा सकते हैं? नहीं ऐसा नहीं है। रक्त और बोन मैरो (अस्थि मज्जा) को जीवित व्यक्ति भी दान कर सकता है। इसके साथ ही जिसे प्रत्यारोपण की जरूरत है उसके रक्त संबंधियों को आंशिक रूप से लीवर और किडनी दान करने के लिए काूनन द्वारा अनुमति मिली है। अन्य तरह के अंगों के दान के लिए व्यक्ति को डॉक्टरों द्वारा ‘ब्रेन डेड’ यानी मस्तिष्क मृत घोषित किया होना चाहिए। अंगदान का कानून यह कानूनन होता है। देश में इसके लिए ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन एक्ट (होटा) 1994 लागू होता है। इस कानून के तहत यह ट्रांसप्लांटेशन करने वाले संस्थान के लिए जरूरी है कि वह राज्य सरकार के द्वारा नियुक्त किए गए अधिकारी के यहां रजिस्टर करवाएं। इस कानून में कई सुरक्षात्मक उपाय हैं, जिनसे अंग परिवर्तन के दुरुपयोग को रोका जा सके। दुर्घटना में भी हो सकता है दान हां यदि व्यक्ति को समय पर अस्पताल ले जाया जाता है और उस अस्पताल में प्रत्यारोपण की सुविधा है तो ऐसा किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए उस अस्पताल का स्टेट अथॉरिटी के साथ रजिस्टर्ड होना जरूरी है। कोटा में यह सुविधा कोटा में फिलहाल केवल बॉडी डोनेशन और कॉर्निया डोनेशन की सुविधा ही उपलब्ध है। बाकी अंगदान के लिए कोटा में अभी कोई सुविधा नहीं है, इसकी सूचना दिल्ली के बड़े अस्पतालों को भिजवाई जाती है। बॉडी डोनेशन भी जीते जी ही किया जा सकता है। रीति रिवाज निभाने का भी अवसर मृत्यु के बाद भी सभी धर्मो में अपने रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार करने की परंपरा है। इसे देखते हुए देश के कई मेडिकल कॉलेजों के एनोटॉमी विभाग में देहदान से पहले अंतिम संस्कार की परिजनों की इच्छा भी पूरी की जा रही है। इसके लिए सभी धर्मो के धर्मगुरुओं के साथ करार भी किया हुआ है। ये धर्मगुरु एनोटॉमी विभाग में ही व्यापक पाठ-पूजा, यज्ञ और प्रतीकात्मक रूप से फूल चुनने जैसी परंपराओं का निर्वहन कराते हैं। लखनऊ के छत्रपति साहू जी महाराज का एनोटॉमी विभाग अपने स्थापना दिवस पर हर वर्ष देहदान करने वाले परिवारों को बुलाकर सम्मानित करता है। इलाज में भी छूट लखनऊ के मेडिकल कॉलेज में जिस व्यक्ति का देहदान होता है, उसके करीबी रिश्तेदारों को इलाज में 50 प्रतिशत छूट भी दी जा रही है। साथ ही उपचार में विशेष रूप से प्रशासन भी ध्यान देता है। यह व्यवस्था अभी एक वर्ष पूर्व ही लागू की गई है। ..तो किसी काम की नहीं देह लावारिस स्थिति में मिलने वाले शवों के परिजनों का 48 घंटे तक इंतजार किया जाता है। तब तक बॉडी खराब होने से स्टूडेंट्स के काम की नहीं रहती। वहीं पोस्टमार्टम होने पर शरीर कई जगह से खुल जाता है, ऐसे में शरीर में कोई भी दवा नहीं रुकती। बिना पोस्टमार्टम मृत देह एनोटॉमी विभाग में रसायनों के जरिए वर्षो तक सुरक्षित रखी जा सकती है, लेकिन पोस्टमार्टम के बाद शव एक माह तक भी सुरक्षित नहीं रखा जा सकता। आसान सवाल जवाब से समझें अंग दान की बारीकियां 1. क्या आपको लगता है कि जब अंगों का प्रत्यारोपण किया जा रहा होगा तब वह व्यक्ति मृत होगा। कानून के तहत मस्तिष्क की कोशिकाओं के मृत होने का निर्धारण करने के मापदंड हैं। ब्रेन स्टेम डेथ टेस्ट यानी मस्तिष्क की कोशिकाएं मर चुकी हैं इसका परीक्षण करना जरूरी है। यह परीक्षण चार डॉक्टर एक साथ मिलकर करते हैं। उनमें से कोई भी डॉक्टर ट्रांसप्लांट में शामिल नहीं होना चाहिए और यह परीक्षण कम से कम छह घंटे के अंतराल में दो बार होना चाहिए। ऐसा ब्रेन डेथ राज्य उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थानों में ही घोषित किया जा सकता है। 2. क्या डॉक्टर उस व्यक्ति को मरने देंगे, जिसके बारे में उन्हें पता हो कि उसने अंग दान किए हैं? नहीं, डॉक्टर किसी भी व्यक्ति को बचाने के लिए अपनी ओर से पूरे प्रयास करेंगे, चाहें उस व्यक्ति ने अंग दान किए हों या नहीं। यह उनका पहला कर्तव्य है। यदि उनके प्रयासों के बावजूद कोई व्यक्ति मर जाता है तो ही उसके अंगों/ ऊतकों को दान के लिए लिया जाएगा। वे डॉक्टर अंग प्रत्यारोपण में शामिल नहीं होंगे। प्रत्यारोपण की प्रक्रिया में दूसरे डॉक्टर शामिल होंगे। 3. दान के अंगों को किसे दिया जाएगा? राज्य की प्रतीक्षा सूची में जिसका नाम होगा और यदि वह दान के अंगों को प्राप्त करने के योग्य है, तो उसे अंग प्रत्यारोपित कर दिया जाएगा। यदि ऐसा नहीं होता है तो जो अगला व्यक्ति प्रतीक्षा सूची में होगा उसे अंग दान कर दिए जाएंगे। 4. क्या प्रतीक्षा सूची में अमीरों को प्राथमिकता मिलती है? नहीं, ग्राही का नाम राज्य की प्रतीक्षा सूची में शामिल होना चाहिए। क्लिनिकल क्राइटेरिया जैसे ब्लड ग्रुप, इम्युनोलॉजिकल स्टेटस और मेडिकल अर्जेसी जैसी बातों पर प्रत्यारोपण के लिए विचार किया जाता है। रंग, जाति, नस्ल या अमीर-गरीब के आधार पर कोई भेद-भाव नहीं किया जाता है। 5. क्या दानकर्ता के परिजनों को पता होगा कि अंग किसे दिए गए हैं? अंग का प्रत्यारोपण किसे किया गया है यह दाता के परिजनों को नहीं बताया जाता है। 6. क्या प्राप्त करने वाले को दान करने वाले की जानकारी होगी? नहीं, अंगों को हासिल करने वाले को दान करने वाले के बारे में कोई जानकारी नहीं दी जाती है। 7. क्या किसी अंग विशेष को ही दान किया जा सकता है और बाकी अंगों को यदि न दान करना चाहें तो क्या होगा? हां यदि कोई व्यक्ति चाहता है कि उसका कोई अंग विशेष ही दान किया जाए और बाकी अंगों को न इस्तेमाल किया जाए तो ऑर्गन डोनेशन कार्ड पर उल्लेख कर ऐसा किया जाता सकता है। 8. क्या किसी व्यक्ति विशेष के लिए ही अंग दान किए जा सकते हैं? अंगों को प्राप्त करने वाले का नाम राज्य की प्रतीक्षा सूची में होना चाहिए। यदि कोई शर्त लगाई गई है कि किसी व्यक्ति विशेष को ही अंग दान किए जाए तो ऐसा अंग दान स्वीकार्य नहीं है। 9. क्या अंग दान के बाद दानी के परिवार को कोई खर्च देना होगा? नहीं, जो भी खर्च होगा वह अंग को प्राप्त करने वाले के परिजनों को उठाना होगा। 10. क्या परिजनों को इस निर्णय के बारे में बताना होगा? यदि आप अपने परिजनों से इस बारे में बात कर लेते हैं तो परिवार के लोग अंग दान का समय आने पर तैयार हो जाएंगे और डोनेशन की प्रक्रिया जल्द हो जाएगी। 11. क्या अंग दान करने से अंतिम संस्कार की व्यवस्था में देरी होती है? नहीं, यदि अंग/ ऊतक दान की मंजूरी मिल जाती है तो तत्काल सर्जरी कर दी जाती है। ऐसे में प्रथागत अंतिम संस्कार में कोई देरी नहीं होती है। 12. क्या अंग दान के लिए मुझे कुछ राशि मिलेगी? नहीं, कानून के तहत मानव अंगों का व्यावसायिक डीलिंग नहीं हो सकती। 13. क्या चिकित्सकीय स्थिति में दान कर सकते हैं? दान करने वाले की चिकित्सकीय स्थिति की जांच दान के समय की जाती है। किसी भी एचआईवी पॉजिटिव और कैंसर पीड़ित व्यक्ति के अंगों का दान नहीं किया जा सकता है। 14. क्या अंगों को दान करने में कोई अतिरिक्त खर्च आता है? नहीं, कोई खर्चा नहीं आता। 15. ये कैसे पता चलेगा कि दान किए गए अंग सुरक्षित हैं और बीमारी मुक्त हैं? एचआईवी और हिपेटाइटिस जैसी ट्रांसमिटेड डिजीज के लिए सभी भावी दान दाताओं के ब्लड की जांच की जाती है। दान करने वाले के परिजनों को इस अपेक्षित प्रक्रिया के बारे में बता दिया जाता है। 16. जीवित रहते हुए कौन दान कर सकता है? 18 वर्ष से अधिक आयु का कोई भी व्यक्ति लाइव ऑर्गन डोनर बन सकता है। इससे कम आयु के किसी भी व्यक्ति के अंगों को दान करने की इच्छा की स्थिति में उसके माता-पिता की सहमति की जरूरत होगी। (गंगाराम हॉस्पिटल की वेबसाइट से मिली जानकारी के अनुसार) हां, ऑपरेशन से पहले डेड बॉडी पर प्रैक्टिकल किया था कोटा. एक मृत मानव देह किस प्रकार अनेक जिंदगियों के काम सकता है, इसको लेकर जब भास्कर ने सर्जनों से बात की, तो उन्होंने अपने अनुभव शेयर किए और बताया कि किस प्रकार ऑपरेशन से पहले उन्होंने मृत देह पर प्रैक्टिकल किया, जिसके बाद जटिल से जटिल ऑपरेशन की बारीकियां भी समझ में आ गई। इसके बाद इस प्रकार के ऑपरेशन पहले से आसान हो गए हैं। उन्होंने बताया कि किस प्रकार देहदान मेडिकल शिक्षा में बहुत उपयोगी है। पहले मेडिकल कॉलेज गया: डॉ. आलोक गर्ग, प्लास्टिक सर्जन तीन वर्ष पहले सुल्तानपुर के एक किशोर के कुल्हाड़ी के वार से कलाई हाथ से लगभग अलग हो गई थी। उसे जोड़ना चुनौती था, ऐसे में मैंने मेडिकल कॉलेज के एनोटॉमी विभाग में पहुंचकर पहले कैडेवर (बॉडी) पर डिसेक्शन किया, जिसमें कलाई की अंदरूनी संरचना को देखा। यह पता लगाया गया कि कहां कौनसी शिरा जाकर मिलती है। कितनी शिराएं हैं। डिसेक्शन में हाथ की कलाई को जोड़कर देखा। इसके बाद किशोर की कलाई को सफलता पूर्वक जोड़ दिया। इसी प्रकार कई मर्तबा नाक के जटिल ऑपरेशन के लिए मैं एनोटॉमी विभाग में जाकर डिसेक्शन करके देख चुका हूं, इसके बाद कई ऑपरेशन सफलता से किए हैं। प्रैक्टिस के बाद कर दिया इंप्लांट:डॉ. विक्रांत माथुर, ईएनटी विशेषज्ञ नाक की प्लास्टिक सर्जरी करने से पूर्व लगभग एक माह पूर्व ही मैं मेडिकल कॉलेज कोटा के एनोटॉमी विभाग में गया। वहां मैंने कैडेवर (बॉडी) पर डिसेक्शन करके देखा था। उसके बाद सफल प्लास्टिक सर्जरी की। कोई भी नया ऑपरेशन करना हो, नया शोध करना हो, उसमें कैडेवर बॉडी पर प्रैक्टिकल बहुत ही उपयोगी साबित होती है। कैडेवर पर डिसेक्शन से नई तकनीक को अन्य रोगियों पर भी अपनाया जा सकता है। नाक के दूरबीन से ऑपरेशन के लिए भी मैं पहले प्रैक्टिकल करने एनोटॉमी विभाग में गया था। इसी प्रकार जो बच्चे जन्म से नहीं सुनते उनके कॉकलियर इंप्लांट करने के लिए कैडेवर पर डिसेक्शन करके देखा था। अब मैं इस तरह के सैकड़ों ऑपरेशन कर चुका हूं। गलती होती तो फट जाती धमनियां :डॉ. उदय भौमिक, न्यूरोसर्जन, कोटा मेडिकल कॉलेज किसी भी जटिल ऑपरेशन को करने से पहले या तो किताबों से जानकारी लेते हैं या फिर बॉडीज पर हैंडसॉल वर्कशॉप से। मुझे कोटा में तो मौका नहीं मिला, लेकिन जयपुर के एसएमएस, दिल्ली के एम्स और मुंबई में कैडेवेरिक वर्कशॉप में शामिल हुआ। एक बार रीड की हड्डी का एक जटिल केस मेरे पास आया। टूटी रीड की हड्डी में स्क्रू डालना था। इस ऑपरेशन में यदि एंगुलेशन दशमलव के अंक में भी चूक जाए, तो बड़ी धमनियों में घुस सकता है। मैंने पहले डैड बॉडी पर प्रैक्टिकल किया और फिर ऑपरेशन सफल हो गया। इसके बाद अब तक एमबीएस में जितने भी स्क्रू डालने के ऑपरेशन हुए, वे सफल रहे हैं। पहले कडैवेरिक प्रेक्टिस:प्रोफेसर डॉ. शिव भगवान संभाग के सबसे बड़े एमबीएस अस्पताल में जोड़ प्रत्यारोपण की सुविधा वर्ष 2004 में शुरू होने से पहले मैंने कूल्हे, घुटने व कंधे के जोड़ के ऑपरेशन (प्रत्यारोपण) के लिए कडैवेरिक प्रैक्टिस तीन जगह की। दिल्ली के एम्स में, फिर निजी कंपनी के एजुकेशन सेंटर में मॉडल्स पर तथा कोटा मेडिकल कॉलेज के एनोटॉमी विभाग में भी कडैवेरिक प्रैक्टिस की। इस प्रैक्टिस में ऑपरेशन (प्रत्यारोपण) के तरीके सीखने से एक्यूरेसी बढ़ी। उसके बाद सफल जोड़ प्रत्यारोपण किए जाने लगे। यह बॉडी डोनेशन से ही संभव हुआ।एमबीएस अस्पताल में अब तक लगभग 150 कूल्हे के जोड़ व 30 घुटने के जोड़ का प्रत्यारोपण किया जा चुका है। और जरूरत है ऐसे दानवीरों की यात्रा से लौटे और देहदान की चर्चा नई धानमंडी निवासी राहुल ने बताया कि उनके 55 वर्षीय पिता ज्ञानचंद चोरड़िया धार्मिक यात्रा पर गए थे, उसी दौरान उन्होंने कोई मैग्जीन पढ़ी थी, जिसमें देहदान के लाभ के बारे में बताया गया था। जब वे घर लौटे तो उन्होंने अपनी देहदान के बारे में घर में चर्चा की और फॉर्म भरकर सभी औपचारिकताएं पूरी करना शुरू कर दिया, लेकिन एक मौका ऐसा आया जब परिवार के सभी सदस्य पत्नी उषा देवी, पुत्र राहुल, हर्ष व विनिता ने फॉर्म पर हस्ताक्षर कर दिए और पुत्री वर्षा ने हस्ताक्षर से इंकार कर दिया। ऐसे में सारा मामला अटकता दिखा तो, उन्होंने वर्षा को समझाया कि देहदान कर कई लोगों का जीवन बचाया जा सकता है। डॉक्टर कैडेवर पर डिसेक्शन करके नए शोध करते हैं और हजारों का जीवन बचाते हैं। ऐसे में मरने के बाद भी किसी के काम आ सके, यह सबसे बड़ा धर्म है। इसके बाद वर्षा ने भी हस्ताक्षर कर दिए। 21 मार्च 2010 को पिताजी की हृदयाघात से मौत हो गई और उनकी देह कोटा मेडिकल कॉलेज के एनोटॉमी विभाग को दान कर दी गई। राहुल का कहना है कि देहदान के बाद सामाजिक सम्मान तो काफी मिला लेकिन, सरकार की ओर से आज तक कोई सम्मान नहीं मिला। ऐसा हो, तो जागरूकता बढ़ सकती है। भास्कर पढ़ा और कर लिया निर्णय कंवलजीत सिंह बताते हैं कि उनके पिता प्रीतम सिंह ने भास्कर में खबर पढ़ी और देहदान करने का निर्णय कर लिया। वे कहते थे कि मरने के बाद इंसान की देह तो मिट्टी हो जाती है। यदि यह मिट्टी भी किसी काम आए, तो यह सच्ची समाजसेवा है। देहदान करने से यह शरीर किसी के काम आए और मेडिकल कॉलेज के बच्चे इस देह से कुछ सीखेंगे। वे हम सभी भाई बहनों से कहते थे कि देहदान से कई जिंदगियों का भला हो सकेगा और आप लोगों को भी इस कार्य से शांति मिलेगी। कंवलजीत बताते हैं कि उनके पिता प्रीतम सिंह ने स्वयं की देह तो दान की, साथ ही हमारी माताजी की देहदान के कागजात भी तैयार कर हमको देकर गए। पिता के देहावसान के बाद उनकी अंतिम इच्छा को पूरा कर हम सब परिवार जनों को भी गर्व महसूस हुआ है।

शरीर के अंगों का दान कैसे करें?

आप भी डोनर बनना चाहती हैं तो स्टेप बाय स्टेप पूरी करें प्रक्रिया.
1 डोनर फॉर्म डाउनलोड करें आधिकारिक वेबसाइट से डोनर फॉर्म डाउनलोड करें। ... .
2 ऑर्गन/ बॉडी डोनेशन फॉर्म भरें फॉर्म डाउनलोड करने के बाद “Organ/Body Donation” (अंग/शरीर दान) फॉर्म भरें। ... .
3 पाएं डोनर कार्ड ... .
4 अपंजीकृत दान भी है विकल्प.

कौन से अंग का दान किया जा सकता है?

1- लाइव डोनेशन स्वस्थ और जीवित व्यक्ति द्वारा किया जाता है। लाइव डोनेशन केवल लीवर या किडनी के मामले में किया जाता है क्योंकि लीवर वापस सामान्य आकार में बढ़ सकता है और डोनेट करने वाला व्यक्ति एक किडनी पर जीवित रह सकता है।

मृत्यु के बाद अपने शरीर का दान कैसे करें?

मृत्यु के बाद शरीर के कुछ अंगों को दान किया जा सकता है. इसके लिए बकायदा प्रक्रिया है और यह कानूनी है. अंगदान एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें एक इंसान (मृत और कभी-कभी जीवित भी) से स्वस्थ अंगों और टिशूज लिया जाता है. फिर इन अंगों को जरूरतमंदों के शरीर में ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है.

देहदान कैसे किया जाता है?

देहदान का प्रपत्र निःशुल्क संबंधित मेडिकल कॉलेज की सामान्य शाखा / एनाटॉमी विभाग, कार्यालय से प्राप्त किया जा सकता है। देहदान के प्रपत्रमें साक्षी नजदीकी रक्त सम्बन्धी नही हो तो निकटतम सम्बन्धी की सहमति होना आवश्यक है। मूल प्रपत्र शरीर रचना विभाग (एनाटॉमी विभाग) के कार्यालय में जमा करवाकर देह दान कार्ड प्राप्त करे ।

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