कवयित्री किस ‘घर’ में जाना चाहती है ?
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Prashan Patr Staff asked 1 year ago
कवयित्री किस ‘घर’ में जाना चाहती है ? उसके हृदय में बार-बार हूक क्यों पैदा हो रही है ? कवयित्री का घर जाने की चाह’ से क्या तात्पर्य है? कवयित्री का ‘घर जाने की चाह’ से क्या अभिप्राय है कवयित्री का ‘घर जाने से क्या तात्पर्य है ज्ञानी से कवयित्री का क्या आशय है? कवयित्री ललद्यद कौन से घर जाना चाहती हैं ?
Question Tags: सामान्य ज्ञान
1 Answers
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Prashan Patr Staff answered 1 year ago
कवयित्री परमात्मा के पास जाना चाहती है। उसे लगता है कि यह संसार उसका असली घर नहीं है। उसका असली घर तो वह है जहाँ परमात्मा निवास करते हैं। इसीलिए उसके हृदय में बार-बार यहीं हूक पैदा होती है कि वह परमात्मा की शरण प्राप्त करे। इस जीवन को त्याग दे, पर ऐसा संभव नहीं हो रहा है। वह इसके लिए निरंतर प्रयास कर रही है। अपनी असफलता पर उसका हृदय विचलित हो रहा है।
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Download Article (Size: 145K)Previousप्रश्न 5
बंद दव्ार की साँकल खोलने के लिए ललद्यद ने क्या उपाय सुझाया है?
उत्तर
कवयित्री के अनुसार प्रभु को अपने अन्त: करण में खोजना चाहिए। जिस दिन मनुष्य के हृदय में प्रभु भक्ति जागृत हो गई तो उस दिन अज्ञानता के सारे अंधकार स्वयं ही समाप्त हो जाएँगे। जो दिमाग इन सांसारिक भोगों को भोगने का आदी हो गया है और इसी कारण उसने प्रभु से स्वयं को विमुख कर लिया है, प्रभु को अपने हृदय में पाकर स्वत: ही ये साँकल (जंजीरे) खुल जाएँगी और प्रभु के लिए दव्ार के सारे रास्ते मिल जाएँगे। इसलिए सच्चे मन से प्रभु की साधना करो अपने अन्त: करण व बाह्य इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर हृदय में प्रभु का जाप करो, सुख व दुख को समान भाव से भोगों। यही उपाय कवयित्री ने सुझाए हैं।
प्रश्न 6
ईश्वर प्राप्ति के लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती यह भाव किन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है?
उत्तर
यह भाव निम्न पंक्तियों में से लिया गया हैं-
आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।
सुषम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!
जेब टटोली, कौड़ी न पाई।
माझी को दूँ, क्या उतराई?
लेखिका के अनुसार ईश्वर को पाने के लिए लोग हठ साधना करते हैं पर परिणाम कुछ नहीं निकलता। इसके विपरीत होता यह है कि हम अपना बहुमूल्य समय बर्बाद कर देते हैं और अपने लक्ष्य को भूला देते हैं। जब स्वयं को देखते हैं तो हम पिछड़ जाते हैं। हम तो ईश्वर को सहज भक्ति दव्ारा भी प्राप्त कर सकते हैं। उसके लिए कठिन भक्ति की कोई आवश्यकता नहीं है।
प्रश्न 7
‘ज्ञानी’ से कवयित्री का क्या अभिप्राय है?
उत्तर
यहाँ कवयित्री ने ज्ञानी से अभिप्राय उस ज्ञान को लिया है जो आत्मा व परमात्मा के संबंध को जान सके ना कि उस ज्ञान से जो हम शिक्षा दव्ारा अर्जित करते हैं। कवयित्री के अनुसार भगवान कण-कण में व्याप्त हैं पर हम उसको धर्मों में विभाजित कर मंदिरों व मस्जिदों में ढूँढते हैं। जो अपने अन्त: करण में बसे ईश्वर के स्वरूप को जान सके वही ज्ञानी कहलाता है और वहीं उस परमात्मा को प्राप्त करता है। अभिप्राय यह है कि प्रभु को अपने ही मन में अर्थात् हृदय में खोजना चाहिए और जो लोग उसे खोज लेते हैं वही सच्चा ज्ञानी होता हैं।
यहाँ कवयित्री ने ज्ञानी से अभिप्राय उस ज्ञान को लिया है जो आत्मा व परमात्मा के सम्बन्ध को जान सके ना कि उस ज्ञान से जो हम शिक्षा द्वारा अर्जित करते हैं। कवयित्री के अनुसार भगवान कण-कण में व्याप्त हैं पर हम उसको धर्मों में विभाजित कर मंदिरों व मस्जिदों में ढूँढते हैं। जो अपने अन्त:करण में बसे ईश्वर के स्वरुप को जान सके वही ज्ञानी कहलाता है और वहीं उस परमात्मा को प्राप्त करता है। तात्पर्य यह है कि ईश्वर को अपने ही हृदय में ढूँढना चाहिए और जो उसे ढूँढ लेते हैं वही सच्चे ज्ञानी हैं।
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Gaurav Seth 2 years ago
ज्ञानी से कवयित्री का अभिप्राय है जिसने आत्मा और परमात्मा के सम्बन्ध को जान लिया हो। कवयित्री के अनुसार ईश्वर का निवास तो हर एक कण-कण में है परन्तु मनुष्य इसे धर्म में विभाजित कर मंदिर और मस्जिद में खोजता फिरता है। वास्तव में ज्ञानी तो वह है जो अपने अंतकरण में ईश्वर को पा लेता है।
यहाँ कवयित्री ने ज्ञानी से अभिप्राय उस ज्ञान को लिया है जो आत्मा व परमात्मा के सम्बन्ध को जान सके ना कि उस ज्ञान से जो हम शिक्षा द्वारा अर्जित करते हैं। कवयित्री के अनुसार भगवान कण-कण में व्याप्त हैं पर हम उसको धर्मों में विभाजित कर मंदिरों व मस्जिदों में ढूँढते हैं। जो अपने अन्त:करण में बसे ईश्वर के स्वरुप को जान सके वही ज्ञानी कहलाता है और वहीं उस परमात्मा को प्राप्त करता है। तात्पर्य यह है कि ईश्वर को अपने ही हृदय में ढूँढना चाहिए और जो उसे ढूँढ लेते हैं वही सच्चे ज्ञानी हैं।
कवयित्री कहती है कि मनुष्य को भोग विलास में पड़कर कुछ भी प्राप्त होने वाला नहीं है। प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री मनुष्य को ईश्वर प्राप्ति के लिए मध्यम मार्ग अपनाने को कह रही है।मनुष्य जब सांसारिक भोगों को पूरी तरह से त्याग देता है तब उसके मन में अंहकार की भावना पैदा हो जाती है। अत:भोग-त्याग, सुख-दुःख के मध्य का मार्ग अपनाने की बात यहाँ पर कवयित्री कर रही है। भाव यह की भूखे रहकर तू ईश्वर साधना नहीं कर सकता।