जम्मू-कश्मीर इन दिनों कई तरह के बदलावों से गुजर रहा है। उम्मीद की बहुत-सी किरणें दिखाई पड़ रही हैं। ऐसे में यहां की भाषा नीति पर चर्चा होनी चाहिए। किसी भी समाज के निर्माण में भाषा की अहम भूमिका होती है। आज जो हाल जम्मू-कश्मीर का है, उसमें कहीं न कहीं इसकी भाषा नीति का भी दोष है। इसमें कोई दो राय नहीं कि जम्मू-कश्मीर राज्य की भाषा नीति निहायत ही असंगत और अविवेकपूर्ण रही है।
आज जो भाषा नीति यहां लागू है, उसकी जड़ें वर्ष 1944 के आस पास शेख अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस द्वारा प्रस्तुत ‘नया कश्मीर’ नामक दस्तावेज में दिखाई पड़ती हैं। हालांकि उससे पहले महाराजा के दौर में भी उर्दू यहां की राजभाषा थी। तब यहां की शिक्षा और भाषा नीति देश के अन्य प्रांतों, खासकर पड़ोसी पंजाब की तर्ज पर थी। कायदे से आजादी के बाद कश्मीरी और डोगरी को यहां की राजभाषा होना चाहिए था, लेकिन शेख अब्दुल्ला ने उर्दू को यहां की राजभाषा बनाए रखा। जम्मू-कश्मीर में मुख्यतः कश्मीरी, डोगरी और लदाखी या भोटी भाषाएं प्रचलन में हैं। वैसे इनके अलावा शीना, गोजरी, पंजाबी, पहाड़ी, भद्रवाही और किश्तवाड़ी भाषाएं भी हैं, जिनके बोलने वालों की अच्छी खासी संख्या है।
कश्मीरी भाषा पहले शारदा लिपि में लिखी जाती थी। यह देवनागरी की ही बहन है। लेकिन धीरे-धीरे मुसलमानों ने इसके लिए अरबी लिपि को अपनाना शुरू कर दिया, जिसके चलते शारदा लिपि विलोपन की ओर बढ़ चली। कश्मीरी भाषा भी धार्मिक आधार पर बंट गई। हाल के वर्षों में कश्मीर से बाहर रहने वाले कश्मीरी पंडित देवनागरी में कश्मीरी को लिखने लगे, जबकि घाटी के मुसलमान अरबी लिपि में इसे लिखते हैं।
कैबिनेट मीटिंग के बाद केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने मीडिया को बताया कि कैबिनेट ने संसद में जम्मू-कश्मीर आधिकारिक भाषा विधेयक 2020 को लाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। इसमें उर्दू, कश्मीर, डोगरी, हिंदी और अंग्रेजी राज्य की आधिकारिक भाषा होंगी। सरकार ने यह फैसला जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद राज्य में समानता लाने के
संदेश के साथ किया है। जम्मू-कश्मीर के मामलों पर करीब से नजर रखने वाले कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि इस फैसले से बीजेपी की सरकार ने जम्मू डिविजन के लोगों के बीच एक समानता का भाव पैदा करने और राज्य का कामकाज और आसान बनाने की कोशिश की है। संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है डोगरी भाषा डुग्गरों की भाषा है डोगरी कैबिनेट की बैठक में लिए गए अहम फैसले, कश्मीर के लिए राजभाषा बिल लाने को दी गई मंजूरी
केंद्र शासित प्रदेश के रूप में जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन होने के बाद सरकार ने बुधवार को एक बड़े फैसले को मंजूरी दी है। प्रदेश में नए नियमों के साथ अब कश्मीरी, डोगरी, हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू भाषाओं को राजभाषा का दर्जा दिया गया है। इस फैसले को बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में मंजूरी दे दी गई है। सरकार के मुताबिक, इसे अब अमल में लाने के लिए संसद के सत्र में एक
विधेयक लाया जाएगा। यह सत्र 14 सितंबर से शुरू होने को है। 5 अगस्त 2019 के बाद से ही राज्य में इन भाषाओं को आधिकारिक राजभाषा बनाने की मांग की जा रही थी।
जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक, सामाजिक और विधायी स्थायित्व के लिए इस फैसले को एक बड़े सुधार के रूप में देखा जा रहा है। नए फैसले के साथ जिस डोगरी भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया गया है, वह मूल रूप
से जम्मू डिविजन में बोली जाती है। साल 2001 में जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी तो डोगरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था। हालांकि इसके बावजूद यह भाषा फिलहाल तक उसी राज्य की आधिकारिक भाषा नहीं थी, जहां इसका सबसे अधिक उपयोग होता है।
डोगरी भाषा मूल रूप से डुग्गरों की भाषा कही जाती है। इसका इस्तेमाल जम्मू संभाग के 10 जिलों में किया जाता है। ऐसे में कश्मीरी के साथ डोगरी को राजभाषा बनाने के साथ सरकार ने जम्मू
डिविजन के लोगों को एक समानता का संदेश देने की कोशिश की है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में 50 लाख के आसपास लोग डोगरी भाषा का उपयोग करते हैं। इसके अलावा 2001 की जनगणना के अनुसार, कश्मीरी बोलने वालों की संख्या भी 45 लाख से अधिक है। राज्य के अन्य लोग उर्दू या हिंदी भाषाओं में कामकाज करते हैं।
कामकाज में हिंदी का इस्तेमाल भी
इसके अलावा अब तक जम्मू-कश्मीर की राजभाषा बनने से अछूती रही हिंदी को भी राजभाषा बनाया जाना, अन्य राज्यों के लोगों और
जम्मू-कश्मीर के बीच एकल भाव का जरिया हो सकता है। राजभाषा बनने वाली हिंदी में अब राज्य के सभी प्रपत्रों को जारी किया जाएगा। इसके अलावा सरकार के आदेशों, महत्वपूर्ण फैसलों और किसी नोटिफिकेशन को भी अब इन सभी पांच भाषाओं में जारी किया जाएगा। साथ ही सरकार के तमाम काम भी इन भाषाओं के इस्तेमाल के साथ किए जाएंगे।
जम्मू-कश्मीर रिऑर्गनाइजेशन ऐक्ट की शक्तियों का इस्तेमाल
बता दें कि जम्मू-कश्मीर रिऑर्गनाइजेशन ऐक्ट की धारा 47 के तहत प्रदेश की विधानसभा एक से अधिक भाषाओं को राजभाषा का
दर्जा दे सकती है। इस नियम के आधार पर ही लंबे समय से डोगरा समाज और जम्मू डिविजन के तमाम लोग हिंदी और डोगरी भाषा को राजभाषा बनाने की मांग कर रहे थे। इससे पहले उर्दू और अंग्रेजी ही यहां पर कामकाज की भाषा थी। हालांकि अब प्रदेश में कुल 5 राजभाषाएं हैं, जिन्हें केंद्रीय कैबिनेट से बुधवार को मंजूरी मिली है।
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