रक्षा मनोविज्ञान अनुसंधान संस्थान (डीआईपीआर), रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की एक प्रमुख अनुसंधान प्रयोगशाला है और इसने सामान्य रूप से राष्ट्र के लिए तथा विशेष रूप से भारतीय सेना बल के लिए अपनी समर्पित सेवा प्रदान करते हुए सात दशकों से भी अधिक पूरे कर लिए हैं। संस्थान का इतिहास 1943 के पूर्व-स्वतंत्रता काल के पिछले समय की ओर ले जाता है, जब इसकी स्थापना सशस्त्र सेना बलों में अधिकारियों का चयन करने के लिए देहरादून में एक प्रयोगात्मक बोर्ड के रूप में की गई थी।
स्वतंत्रता के बाद, सशस्त्र सेना बल की एक पुन: संगठित संरचना के आविर्भाव के साथ, अधिकारियों के संवर्ग या कैडर का चयन करने और आगे की कार्यवाही करने के लिए एक समर्पित अनुसंधान सेल या प्रकोष्ठ की आवश्यकता को महसूस किया गया था। अत: 1949 में, प्रयोगात्मक बोर्ड को मनोवैज्ञानिक अनुसंधान विंग (पीआरडब्ल्यू) के रूप में पुन: नामित किया गया, जिसका प्राथमिक उद्देश्य अधिकारियों का चयन करने के लिए एक वैज्ञानिक पद्धति को विकसित करना और इसे निरंतर अनुसंधान कार्यक्रमों के माध्यम से अद्यतन करना रहा। इस समय के दौरान, व्यावहारिक संघर्ष में नई परिचालन संबंधी चुनौतियों के उत्थान के साथ, संस्थान के अधिकारपत्र के विषय-क्षेत्र को विस्तारित किया गया। अत:, 1962 में, मनोवैज्ञानिक अनुसंधान विंग को मनोवैज्ञानिक अनुसंधान निदेशालय (डीपीआर) के रूप में पुननिर्मित किया गया, ताकि मनोबल, वैचारिक प्रतिबद्धता समूह प्रभावशीलता, नेतृत्व व्यवहार, कार्य संतुष्टि, उच्च प्रतिष्ठा प्रभाव, अभिप्रेरणा, प्रतिष्ठा, मानवमितिय, नागरिक-सैन्य संबंध तथा सशस्त्र सेना बलों से संबद्ध अन्य समस्याओं से संबंधित अनुसंधान के नए क्षेत्रों को अपनाया जा सके। इन चुनौतियों को सफलतापूर्वक पूरा करते हुए, मनोविज्ञान अनुसंधान निदेशालय (डीपीआर) 1982 में रक्षा मनोविज्ञान अनुसंधान संस्थान (डीआईपीआर) के रूप में एक पूर्ण-विकसित संस्थान स्वरूप आगे बढ़ा है
हिंदी भाषा विश्व की प्राचीन भाषाओं में से एक है जो विश्व में तीसरी सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा है। भारत की जनगणना 2011 के अनुसार 57% जनसंख्या हिंदी जानती है।
भारत के अलावा हिंदी और उसकी बोलियां विश्व के अन्य देशों में भी बोली पढ़ी व लिखि जाती हैं। मारीशस नेपाल गयाना फिजी और संयुक्त अरब अमीरात में भी हिंदी भाषी लोगों की बड़ी संख्या मौजूद है।
चलिए हम हिंदी भाषा का विकास क्रम की तरफ बढ़ते हैं उससे पहले हम हिंदी भाषा के इतिहास पर एक नजर में डालेंगे।
हिंदी भाषा का इतिहास (Hindi bhasha ka itihas)
हिंदी भारोपीय भाषा परिवार के अंतर्गत आती है। यह हिंदी ईरानी शाखा के आर्यभाषा उप शाखा के अंतर्गत वर्गीकृत है।
ध्वनि के आधार पर विश्व की सभी भाषाओं को दो वर्गों शतम एवं केंटुम (केटुम्भ) में विभाजित किया गया है । जिसमें हिंदी ,शतम शाखा के अंतर्गत आती है ।
भारत में मुख्य रूप से द्रविड़ भाषा परिवार तथा आर्य भाषा परिवार की भाषाएं बोली जाती हैं, जिनमें द्रविड़ भाषा परिवार दक्षिण में तथा आर्य भाषा परिवार उत्तर में प्रचलित है ।
चलिए हम एक नजर भारतीय आर्यभाषा के 3 कालो पर एक नजर डालते हैं।
भारतीय आर्य भाषाओं को 3 कालों में विभाजित किया गया है –
1-प्राचीन भारतीय आर्यभाषा | 1500 ई ० पू०- 500 ई ० पू ० |
2-मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषा | 500 ई ० पू ० – 1000 ई ० |
3-आधुनिक भारतीय आर्यभाषा | 1000 ई से अब तक |
यहां पर हम भारतीय आर्य भाषाओं के बारे में थोड़ा विस्तार से जानेंगे ।
प्राचीन भारतीय आर्यभाषा
इस काल में वैदिक संस्कृत व लौकिक संस्कृत का प्रचलन था। इस कार को भी दो वर्गों में बांटा गया है जो निम्नलिखित है-
वैदिक सस्कृत ( छान्दस् ) – 1500 ई ० पू०-1000 ई ० पू ० – इस काल में ऋग्वेद की रचना हुई थी जो वैदिक संस्कृत में है ।
लौकिक सस्कृत (संस्कृत ) – 1000 ई ० पू०-500 ई ० पू ० – इस काल में पुराण अथर्ववेद उपनिषदों तथा विभिन्न ब्राह्मण ग्रंथों की रचना हुई जो लौकिक संस्कृत में है ।
इसके बाद मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा की शुरुआत होती है ।
मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषा
इस काल में भी 3 भाषाएं थी जो निम्नलिखित है-
प्रथम प्राकृत काल : पालि – 500 ई.पू. – 1 ई.
- भारत की प्रथम देश भाषा , बुद्ध के सारे उपदेश पालि भाषा में ही हैं ।
- इसी मागधी भाषा के नाम से भी जाना जाता है
द्वित्तीय प्राकृत काल : प्राकृत 1 ई . -500 ई .
- भगवान महावीर के सारे उपदेश एवं सभी जैन साहित्य प्राकृत भाषा में हैं ।
- उस समय सामान्य बोलचाल की भाषा थी इसमें व्याकरण का अभाव था
तृतीय प्राकृत काल : (1– अपभ्रंश 500-1000 ई . (2- अवहट्ट 900-1100 ई . —
अपभ्रंश (500-1000 ई .)
- इस भाषा में साहित्य का आरंभ स्वयंभू कवि के द्वारा 8वीं सदी में हुआ ।
- इस काल में प्रमुख रचनाकार – स्वयंभू (पउम चरिउ), धनपाल (भाविस्स्यत कहा), पुष्पदंत (जसहरचरिऊ,महापुराण), सरहपा, कन्हपा इत्यादि हैं।
अपभ्रंश से विकसित हुई आधुनिक भाषाएं निम्नलिखित हैं-
शौरसेनी | पश्चिमी हिंदी, राजस्थानी गुजराती |
अर्धमागधी | पूर्वी हिंदी |
मागधी | बिहारी, उड़िया, बांग्ला, असमिया |
खस | पहाड़ी |
ब्राचड़ | पंजाबी |
महाराष्ट्री | मराठी |
अवहट्ट (900-1100 ई .)
- अवहट्ट अपशब्द का विकृत रूप है इसे अपभ्रंश का परिवर्तित रूप माना जाता है।
- इसका प्रयोग 14वीं शताब्दी तक होता रहा ।
- इस काल के प्रमुख रचनाकार अब्दुर रहमान(सन्देश रासक), दामोदर पंडित(उक्ति व्यक्ति प्रकरण), ज्योतिश्वर ठाकुर( वर्ण रत्नाकर), विद्यापति(कीर्ति लता) इत्यादि हैं ।
आधुनिक भारतीय आर्यभाषा
आधुनिक भारतीय आर्यभाषा में हिंदी को तीन भागों में बांटा गया है-
प्राचीन हिन्दी – (1100 ई०-1400 ई ० )
मध्यकालीन हिन्दी – (1400 ई ० -1850 ई ०)
आधुनिक हिन्दी -(1850 ई ० – अब तक)
इसे विस्तृत रूप से हम हिंदी भाषा के विकास heading के अंतर्गत पढ़ेंगे ।
इस प्रकार हमने हिंदी भाषा के इतिहास को समझा और हम आगे देखेंगे की हिंदी भाषा की उत्पत्ति कैसे हुई तथा उसका विकास के बारे में भी पढ़ेंगे।
हिन्दी भाषा की उत्पत्ति और विकास
हिंदी भाषा की उत्पत्ति मूल रूप से शौरसेनी अपभ्रंश से हुई है ।वैसे तो हिंदी भाषा की आदी जननी संस्कृत मानी जाती है। हिंदी संस्कृत, पाली, प्राकृत भाषा से होती हुई अपभ्रंश / अवहट्ट से गुजरती हुई हिंदी का रूप ले लेती है।
हिंदी भाषा को 5 उपभाषाओं में बाटा गया है जिसके अंतर्गत हिंदी की 17 बोलियां आती हैं ।
हिंदी भाषा का विकास क्रम
हिन्दी भाषा का विकास क्रम – संस्कृत-पालि-प्राकृत-अपभ्रंश-अवहट्ठ-प्राचीन/प्रारम्भिक हिन्दी है।
हिंदी भाषा के विकास (Hindi bhasha ka Vikas) को जानने से पहले हम यह भी देख लेते हैं कि हिंदी शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई है?
हिंदी शब्द की उत्पत्ति
हिंदी शब्द की उत्पत्ति सिंधु शब्द से हुई है सिंधु का तात्पर्य सिंधु नदी से है ।जब ईरानी उत्तर पश्चिम से होते हुए भारत आए तब उन्होंने सिंधु नदी के आसपास रहने वाले लोगों को हिंदू कहा। ईरानी भाषा में ‘स’ को ‘ह’ तथा ‘ध’ को ‘द’ उच्चारित किया जाता था।
इस प्रकार यह सिंधु से हिंदू बना तथा हिन्दू से हिन्द बना फिर कालांतर में हिन्द से हिंदी बना जिसका अर्थ होता है “हिंद का” – हिन्द देश के निवासी । बाद में यह शब्द ‘हिंदी की भाषा’ के अर्थ में उपयोग होने लगा ।
कई लोगों का यह सवाल होता है कि हिंदी शब्द किस भाषा का है। आपको बता दें कि हिंदी शब्द वास्तव में फारसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है हिंद देश के निवासी ।
हिंदी भाषा का विकास (Hindi bhasha ka Vikas)
हिंदी भाषा के विकास को हम 3 वर्गों में विभाजित कर सकते हैं-
- प्राचीन हिन्दी – (1100 ई०-1400 ई ० )
- मध्यकालीन हिन्दी – (1400 ई ० -1850 ई ०)
- आधुनिक हिन्दी -(1850 ई ० – अब तक)
प्राचीन या पुरानी हिन्दी / प्रारंभिक या आरंभिक हिन्दी / आदिकालीन हिन्दी
- प्राचीन हिन्दी से अभिप्राय, अपभ्रंश – अवहट्ट के बाद की भाषा से है।
- यह काल हिन्दी भाषा का शिशु काल था । यह वह काल था जब अपभ्रंश-अवहट्ट का प्रभाव हिन्दी भाषा पर बचा हुआ था और हिन्दी की बोलियों के निश्चित और स्पष्ट रूप विकसित नहीं हो पाए थे।
मध्यकालीन हिंदी
- मध्यकाल में हिन्दी का स्वरूप स्पष्ट हो गया और उसकी प्रमुख बोलियों का विकास होने लगा था ।
- इस अवधि के दौरान, भाषा के तीन रूप उभरे – ब्रजभाषा, अवधी और खड़ी बोली।
- ब्रजभाषा और अवधी का अत्यधिक साहित्यिक विकास हुआ ।
- सूरदास नंददास रसखान मीराबाई आदि लोगों ने ब्रजभाषा को साहित्य विकास में अमूल्य योगदान दिया।
- इनके अलावा कबीर नानक दादू साहिब आदि लोगों ने खड़ी बोली के मिश्रित रूप का प्रयोग साहित्य में करते रहे।
- 18वीं शताब्दी में खड़ी बोली को मुस्लिम शासकों का संरक्षण प्राप्त हुआ और इसके विकास को एक नई दिशा मिली।
आधुनिककालीन हिन्दी
- हिन्दी के आधुनिक काल तक ब्रजभाषा और अवधी हम बोल-चाल तथा साहित्यिक क्षेत्र से दूर हो गई थी।
- 19वीं सदी के मध्य तक भारत में ब्रिटिश सत्ता का सबसे बड़ा विस्तार हो चुका था। जब ब्रजभाषा और अवधी का साहित्यिक रूप आम भाषा से दूर हो गया, तो उनके बदले धीरे-धीरे खारी बोली का प्रयोग शुरू हो गया। ब्रिटिश सरकार ने भी इसका इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था।
- हिन्दी के आधुनिक काल में एक ओर उर्दू और दूसरी ओर ब्रजभाषा के प्रचार के कारण खड़ी बोली को अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ा। 19वीं शताब्दी तक कविता की भाषा ब्रजभाषा थी और गद्य की भाषा खड़ीखारी बोली थी। 20वीं शताब्दी के अंत तक, खड़ी बोली गद्य और कविता दोनों की साहित्यिक भाषा बन गई थी।
- विभिन्न धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों ने इस युग में खड़ी बोली की स्थापना में बहुत मदद की। परिणामस्वरूप, खड़ी बोली साहित्य की प्रमुख भाषा बन गई।
आधुनिककालीन हिंदी में खड़ी बोली को हम पांच वर्गो में विभक्त कर सकते हैं –
- पूर्व-भारतेंदु युग
- भारतेंदु युग
- द्विवेदी युग
- छायावाद युग
- प्रगतिवादी युग
- प्रयोगवादी युग
पूर्व भारतेंदु युग
खड़ी बोली का यह काल सन 1800 से प्रारंभ हुआ। खड़ी बोली गद्य के आरंभिक रचनाकार सदासुख लाल, इंशा अल्लाह खां, लल्लू लालजी, सदल मिश्र के नाम उल्लेखनीय है। किस काल की खड़ी बोली उर्दू से प्रभावित थी ।
भारतेंदु युग
यह काल 1850 से 1900 के बीच का है । इस युग में हिंदी गद्य साहित्य की विविध विधाओं का ऐतिहासिक कार्य हुआ और सही मायने में हिंदी गद्य के बहुमुखी रूप का विकास हुआ । इस युग के प्रमुख कवि भारतेंदु हरिश्चन्द्र, प्रताप नारायण मिश्र, बद्रीनारायण, राधाचरण गोस्वामी, जगमोहन सिंह आदि हैं। इस काल में भी मुख्य रूप से कविताएं ब्रज भाषा में ही लिखी जाती थी ।
द्विवेदी युग
द्विवेदी युग 1900 से 1920 के बीच का काल है। इस काल में 1903 में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती पत्रिका के संपादक का कार्यभार संभाला।वे सरल एवं शुद्ध हिंदी भाषा के प्रयोग के पक्षधर थे।
इस काल में ब्रज भाषा तथा खड़ी बोली का विवाद समाप्त हो गया और खड़ी बोली में सुंदर सुंदर कविताएं लिखी जाने लगे। और ब्रजभाषा अब सीमित होकर बोली रह गई और खड़ी बोली अब भाषा बन गई जिसे हिंदी भाषा माना जाता है ।
इस काल के प्रतिनिधि कवि मैथिलीशरण गुप्त है इनके अलावा श्यामसुंदर दास, पूर्ण सिंह, चंद्रधर शर्मा गुलेरी आदि प्रमुख कवि हैं।
छायावादी युग
छायावादी युग 1918 से 1936 के बीच हड़ताल है जो खड़ी बोली हिंदी के साहित्यिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान रखता है ।
इस काल के प्रमुख कवि प्रसाद,हरिवंश राय बच्चन, पंत, निराला, महादेवी वर्मा, रामकुमार वर्मा आदि है ।
प्रगतिवादी युग
प्रगतिवादी युग 1936 से 1946 के बीच का काल है। कवि गण को न राष्ट्र की चिंता थी और न दीन दुखियों की उन्हें वास्तविक जीवन में निराशा दिखाई देती थी।दलितों, शोषित और अत्याचार पीड़ितों के प्रति सहानुभूति, आर्थिक विषमताओं तथा शोषण का वर्णन करके कवि सामाजिक क्रांति का आवाहन करने लगे ।
इस काल के प्रमुख कवि मुंशी प्रेमचंद्र, सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, नरेंद्र शर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, नागार्जुन आदी है।
प्रयोगवादी युग
प्रगतिवादी युग 1943 से प्रारंभ हुआ ।इस युग के प्रमुख कवि सच्चिदानंद हीरानंद अज्ञेय, गिरिजाकुमार माथुर, रामविलास शर्मा, धर्मवीर भारती आदि है ।
हिंदी काव्य साहित्य का विकास को आप विस्तृत रूप यहां से पढ़ सकते हैं ।हिन्दी में साहित्य रचना का कार्य 1150 या इसके बाद आंरभ हुआ।
hindi bhasha ka udbhav aur vikas से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर [FAQ]
hindi bhasha ki lipi kya hai ?
हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी लिपि है ।
हिंदी कितनी पुरानी भाषा है ?
हिंदी भाषा लगभग 1000 वर्ष पुरानी मानी जाती है।
हिंदी के जनक कौन है?
आधुनिक हिंदी के जनक भारतेंदु हरिश्चंद्र जी को माना जाता है। आधुनिक काल में हिंदी गद्य साहित्य का ऐतिहासिक आरंभ भारतेंदु काल से हुआ है।
हिन्दी शब्द का क्या अर्थ है?
हिंदी शब्द का अर्थ होता है हिंद देश के निवासी। हिंदी फारसी शब्द है।
हिंदी या हिन्दी में क्या सही है?
हालांकि दोनों सही है परंतु ं बिंदु वाला हिंदी मानक हिंदी है और आधा न वाला हिंदी पहले लिखी जाती थी।
इस प्रकार हमने हिंदी भाषा का इतिहास (Hindi bhasha ka itihas) और हिंदी भाषा का विकास (Hindi bhasha ka Vikas) के बारे में पढ़ा तथा हमने यह भी जाना की हिंदी शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई, हिंदी शब्द किस भाषा का है तथा हिंदी भाषा का विकास क्रम क्या है ।
यदि फिर भी आपको कोई सवाल हो या कोई सुझाव हो तो आप नीचे कमेंट करके हमें बता सकते हैं। उम्मीद है कि यह लेख आपको पसंद आया होगा। पिछले अध्याय में हम लोग भाषा एवं लिपि के बारे में पढ़ चुके हैं, आगे के लेख में हम हिंदी व्याकरण के बारे में सीखेंगे ।