हल्दी की सबसे बेहतर किस्म लेकाडोंग की खेती अब पूर्णिया में
पूर्णिया। हल्दी का सेवन हम किसी न किसी रूप में रोजाना करते हैं। चाहे खाद्य पदार्थ के रूप में
पूर्णिया। हल्दी का सेवन हम किसी न किसी रूप में रोजाना करते हैं। चाहे खाद्य पदार्थ के रूप में हो या सौंदर्य प्रसाधन के रूप में हल्दी का काफी उपयोग हम करते हैं लेकिन सबसे बढ़कर हल्दी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली प्रमुख औषधि भी है। हल्दी कई प्रकार के होते हैं, लेकिन उसमें सबसे उत्तम क्वालिटी की हल्दी लेकाडोंग मानी जाती है। इसकी खेती सबसे अधिक आंध्र प्रदेश में होती है, लेकिन अब इसका उत्पादन पूर्णिया में भी शुरू हो गया है।
जिले के प्रगतिशील किसान हिमकर मिश्रा ने अपने फार्म में इसकी खेती शुरू की है। वे कहते हैं कि दो बीघे में इसकी खेती शुरू की थी जो काफी लाभदायक रहा है। दो क्विटल बीज से 10 क्विटल हल्दी का उत्पादन हुआ है। अब धीरे-धीरे वे इसकी खेती बढ़ा रहे हैं। वे फिलहाल 25 एकड़ में हल्दी की खेती कर रहे हैं। उनकी हल्दी की मांग सबसे अधिक औषधि के लिए की जा रही है। कई कैंसर संस्थान में उनकी हल्दी भेजी जाती है।
फसल तैयार होने में लगते हैं छह से सात महीने
किसान हिमकर मिश्रा बताते हैं कि सामान्यतया हल्दी की फसल छह से सात माह में तैयार हो जाती है। सभी प्रकार की भूमि में इसकी खेती हो सकती है लेकिन बलुई दोमट मिट्टी व चिकनी दोमट मिट्टी इसके लिए अधिक उपयुक्त है। खेतों में जलनिकासी की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए अन्यथा इसके पौधे गल जाते हैं। अच्छी पैदावार के लिए भूमि का पीएच 5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। हल्दी की उन्नतशील किस्मों में सुगंधा, रोमा, सुरोमा, कृष्णा, राजेंद्र सोनिया, सुगुना, सुदर्शन, सुवर्णा, प्रभा आदि प्रमुख हैं लेकिन उनमें सबसे बेहतर किस्म लेकाडोंग को माना जाता है जिसमें सबसे अधिक औषधीय गुण पाए जाते हैं।
सबसे अधिक होती है करम्यूमिन की मात्रा
भोला पासवान शास्त्री कृषि कॉलेज के प्राचार्य सह कृषि वैज्ञानिक डॉ. पारसनाथ कहते हैं कि हल्दी में रासायनिक तत्व कर-क्यूमिन पाए जाते हैं, जिसमें कैंसर से लड़ने की क्षमता पाई जाती है। सामान्यतया भारतीय हल्दी में आम तौर पर करम्यूमिन की मात्रा 3-4 प्रतिशत होती है लेकिन लेकाडोंग में यह 8 से 12 फीसद है। चिकित्सक उमेश कुमार बताते हैं कि अक्सर कैंसर मरीजों में सर्जरी के बाद भी दोबारा कैंसर की वापसी हो जाती है, लेकिन अब सर्जरी के बाद करक्यूमिन से बना एक स्कीन पिच लगाया जाता है जो कैंसर की कोशिकाओं को जड़ से समाप्त कर देता है। साथ ही इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता है। डॉ. उमेश कुमार ने बताया कि हल्दी का इस्तेमाल सर्दी-जुकाम के अलावा डायबिटीज, हृदय रोग व त्चचा को खूबसूरत बनाने में भी किया जाता है।
25 एकड़ में की गई है खेती
प्रगतिशील किसान हिमकर मिश्रा कहते हैं कि वे फिलहाल अपरे फॉर्म पर 25 एकड़ में हल्दी की खेती कर रहे हैं जिसमें हल्दी के दूसरे उन्नतशील किस्म भी शामिल हैं। दो बीघा मे लेकाडोंग की खेती की शुरू की थी लेकिन उसकी अधिक मांग को देखते हुए अब उसे अधिक रकबा में लगा रहे हैं। वे बताते हैं कि उनकी हल्दी भोपाल के कैंसर अस्पताल में भेजी जाती हैं जहां उसे कैंसर मरीजों के लिए उपयोग किया जाता है। उन्होंने किसानों से भी अधिक लाभ के लिए हल्दी की खेती करने की अपील की है।
Edited By: Jagran
2019-20 के दौरान, भारत ने 4,84,000 टन मिर्च और मिर्च उत्पादों का निर्यात किया, जिनका मूल्य 6211.70 करोड़ रुपये था.
दुनिया में मिर्च और हल्दी के सबसे बड़े निर्यातक देशो में भारत शामिल है. इऩके निर्यात में पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ोतरी हुई है. 2019-20 के दौरान, भारत ने 4,84,000 टन मिर्च और मिर्च उत्पादों का निर्यात किया, जिनका मूल्य 6211.70 करोड़ रुपये था. जिनकी मात्रा के आधार पर भारत के कुल मसाला निर्यात में 40 फीसदी से अधिक और मूल्य के आधार पर 29 फीसदी हिस्सेदारी है. इसी तरह निर्यात में हल्दी की मात्रा के आधार पर 11 फीसदी और मूल्य के आधार पर 6 फीसदी की हिस्सेदारी है. भारत से 1,36,000 टन हल्दी का निर्यात होता है, जिसका मूल्य 1216.40 करोड़ रुपये है.
आपको बता दें कि कोरोना वायरस लॉकडाउन के दौरान इस इलाके की उगाई गई मिर्च लंदन भेजी गई, दुबई और श्रीलंका से भी ऑर्डर मिला है. इसके अलावा भारत की मिर्च सऊदी अरब और चीन को भी भेजी जाती है.
हल्दी और मिर्च की एक्सपोर्ट डिमांड बढ़ी
हल्दी अपनी प्रतिरक्षा बढ़ाने वाले गुणों की वजह से महामारी के दौर में काफी लोकप्रिय हुई है. इस वजह से उसकी निर्यांत मांग भी बढ़ी है. वित्त वर्ष 2020-21 की पहली छमाही के दौरान मात्रा के आधार पर निर्यात में 42 फीसदी की उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है.
मिर्च और हल्दी के लिए क्रेता-विक्रेता बैठक का आयोजन मसाला बोर्ड द्वारा किया गया. जिसका फोकस आंध्र प्रदेश है. बैठक में 245 संबंधित पक्षों ने भाग लिया है. बोर्ड द्वारा वित्त वर्ष 2020-21 में अब तक 14 क्रेता-विक्रेता बैठक का आयोजन किया गया .
मसाला बोर्ड के चेयरमैन और सचिव डी. साथियान ने क्रेता-विक्रेता बैठक की सफलता के बारे में कहा इसके जरिए सुदूर क्षेत्रों में किसानों को फसल की अच्छी कीमत मिली है, साथ ही किसान और किसान समूहों तक पहुंच भी आसान हुई है.
कितने देशों को करता है एक्सपोर्ट
साथियान के अनुसार पिछले साल 185 देशों को 225 श्रेणी में मसालों का निर्यात किया गया है. उन्होंने मसालों में मूल्य संवर्धन और कारोबारियों को प्रसंस्करण और भंडारण सुविधाओं के लिए मसाला पार्क की उपलब्धता की भी बात कही है.
क्रेता-विक्रेता बैठक का उद्घाटन राज्य सभा सांसद और मसाला बोर्ड के सदस्य जीवीएल नरसिम्हा राव ने किया. इस मौके पर उन्होंने कहा कि पिछले दशक में मिर्च का निर्यात लगभग दोगुना हो गया है.
उन्होंने आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने के लिए सभी क्षेत्रों के एकीकरण करने की जरूरत बताया है. जिससे निर्यात पर, बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद मिलेगी. उन्होंने मसालों में अधिक मूल्य संवर्धन की आवश्यकता पर भी जोर दिया और निर्यातकों से आह्वाहन किया कि मिर्च प्रसंस्करण में निवेश के तरीके और निर्यात में वृद्धि के लिए विचारों के साथ आगे आए.
मसाला बोर्ड और बागवानी विभाग, मिर्च, हल्दी और काली मिर्च जैसे मसालों का उत्पादन करने वाले आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्य में लगातार विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों को लागू कर रहे हैं.
एमएसपी घोषित हो तो काफी फायदेमंद हो सकती है हल्दी
निजामाबाद जिला टर्मरिक फार्मर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष पी. तिरुपति रेड्डी से हमने फोन पर बात की. रेड्डी ने कहा-“अगर केंद्र सरकार हल्दी की एमएसपी घोषित कर दे तो इसकी खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद हो सकती है. हम चाहते हैं कि 15,000 प्रति क्विंटल की दर से इसकी एमएसपी घोषित हो. किसान को अच्छा दाम नहीं मिल रहा और प्रोसेसर सारा मुनाफा कमा रहे हैं. हमसे 50-55 रुपये किलो हल्दी लेकर व्यापारी 80-90 रुपये से अधिक दाम पर बेचता है. यूपीए और एनडीए दोनों के शासनकाल में तेलंगाना के हल्दी किसान तीन बार दिल्ली के जंतर-मंतर पर टमर्रिक बोर्ड बनाने और इसकी एमएसपी घोषित करने की मांग को लेकर आंदोलन कर चुके हैं.”
हल्दी उत्पादन, एक्सपोर्ट में दुनिया का लीडर है भारत
रेड्डी कहते हैं, ” तंबाकू लोगों की सेहत को नुकसान पहुंचाता है, लेकिन यहां टोबैको बोर्ड बन गया है. दूसरी ओर सेहत के लिए अच्छा काम करने वाली हल्दी को बढ़ावा देने के लिए बोर्ड नहीं बना है. यह अजीब बात है.दुनिया की 80 फीसदी हल्दी पैदा करके हम वर्ल्ड लीडर हैं. हल्दी एक्सपोर्ट में भारत की हिस्सेदारी 60 फीसदी से अधिक है. लेकिन किसान को इसका तब तक सही दाम नहीं मिलेगा जब तक कि इसका एमएसपी न घोषित हो जाए. ऐसा होने पर परंपरागत खेती से हटकर किसानों का रुझान हल्दी पैदावार की तरफ ज्यादा बढ़ेगा.”
राज्यपालों की कमेटी की सिफारिश भी ठंडे बस्ते में!
जून 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि क्षेत्र को लाभकारी बनाकर इसकी आर्थिक सेहत सुधारने के लिए राज्यपालों की हाई पावर कमेटी का गठन किया था. इसमें हरियाणा, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश के राज्यपालों सदस्य और यूपी के तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक अध्यक्ष थे. इस कमेटी ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में 21 सिफारिशें की थीं. जिसमें हल्दी को एमएसपी में लाने का सुझाव दिया गया था. लेकिन अब तक सरकार ने इस पर अमल नहीं किया है.
कब होती है फसल
रेड्डी के मुताबिक हल्दी पैदा होने में 7 से 9 महीने तक का वक्त लगता है. यह एक खरीफ मसाला है जो जून से अगस्त महीने के दौरान बोया जाता है. नई फसल फरवरी से अप्रैल तक काटी जाती है. कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए कि हल्दी की खेती लगातार एक ही जमीन पर न हो. क्योंकि यह जमीन से ज्यादा से ज्यादा पोषक तत्वों को खींचती है.
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