गोपियां कृष्ण के प्रेम में किस प्रकार डूबी रहती है - gopiyaan krshn ke prem mein kis prakaar doobee rahatee hai

'गोपी’ शब्द का अर्थ, राधा जी की अष्टसाखियाँ व मंजरियाँ

🔔श्रीकृष्ण गोपियों के साथ 'गोपी' शब्द का प्रयोग प्राचीन साहित्य में पशुपालक जाति की स्त्री के अर्थ में हुआ है। इस जाति के कुलदेवता 'गोपाल कृष्ण' थे। भागवत की प्रेरणा लेकर पुराणों में गोपी-कृष्ण के प्रेमाख्यान को आध्यात्मिक रूप दिया गया है।

🔔इससे पहले महाभारत में यह आध्यात्मिक रूप नहीं मिलता। इसके बाद की रचनाओं- हरिवंशपुराण तथा अन्य पुराणों में गोप-गोपियों को देवता बताया गया है, जो भगवान श्रीकृष्ण के ब्रज में जन्म लेने पर पृथ्वी पर अवतरित हुए थे। धीरे-धीरे कृष्ण भक्त संप्रदायों, विशेषत: गौड़ीय वैष्णव चैतन्य संप्रदाय में, गोपी का चित्रण कृष्ण की शक्ति तथा उनकी लीला में सहयोगी के रूप में होने लगा। काव्य में स्थान कृष्ण-भक्त कवियों ने अपने काव्य में गोपी-कृष्ण की रासलीला को प्रमुख स्थान दिया है।

🔔सूरदास के राधा और कृष्ण प्रकृति और पुरुष के प्रतीक हैं और गोपियाँ राधा की अभिन्न सखियाँ हैं। राधा कृष्ण के सबसे निकट दर्शाई गई हैं, किंतु अन्य गोपियाँ उससे ईर्ष्या नहीं करतीं। वे स्वयं को कृष्ण से अभिन्न मानती हैं। ऋग्वेद में विष्णु के लिए प्रयुक्त 'गोप', 'गोपति' और 'गोपा' शब्द गोप-गोपी-परम्परा के प्राचीनतम लिखित प्रमाण कहे जा सकते हैं।

🔔गोपी शब्द की व्याख्या इस प्रकार की गयी है–’गो’ अर्थात् इन्द्रियां और ‘पी’ का अर्थ है पान करना। ‘गोभि: इन्द्रियै: भक्तिरसं पिबति इति गोपी।’ जो अपनी समस्त इन्द्रियों के द्वारा केवल भक्तिरस का ही पान करे, वही गोपी है।

🔔गोपी का एक अन्य अर्थ है केवल श्रीकृष्ण की सुखेच्छा। जिसका जीवन इस प्रकार का है, वही गोपी है। गोपियों की प्रत्येक इन्द्रियां श्रीकृष्ण को अर्पित हैं। गोपियों के मन, प्राण–सब कुछ श्रीकृष्ण के लिए हैं। उनका जीवन केवल श्रीकृष्ण-सुख के लिए है। सम्पूर्ण कामनाओं से रहित उन गोपियों को श्रीकृष्ण को सुखी देखकर अपार सुख होता है। उनके मन में अपने सुख के लिए कल्पना भी नहीं होती। श्रीकृष्ण को सुखी देखकर ही वे दिन-रात सुख-समुद्र में डूबी रहती हैं।

🔔गोपी श्रीकृष्ण से अपने लिए प्रेम नहीं करती अपितु श्रीकृष्ण की सेवा के लिए, उनके सुख के लिए श्रीकृष्ण से प्रेम करती है।

🔔गोपी की बुद्धि, उसका मन, चित्त, अहंकार और उसकी सारी इन्द्रियां प्रियतम श्यामसुन्दर के सुख के साधन हैं। उनका जागना-सोना, खाना-पीना, चलना-फिरना, श्रृंगार करना, गीत गाना, बातचीत करना–सब श्रीकृष्ण को सुख पहुँचाने के लिए है।

🔔 गोपियों का श्रृंगार करना भी भक्ति है। यदि परमात्मा को प्रसन्न करने के विचार से श्रृंगार किया जाए तो वह भी भक्ति है। मीराबाई सुन्दर श्रृंगार करके गोपालजी के सम्मुख कीर्तन करती थीं। उनका भाव था–’गोपालजी की नजर मुझ पर पड़ने वाली है। इसलिए मैं श्रृंगार करती हूँ।’

🔔भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं अर्जुन से कहा है–‘हे अर्जुन ! गोपियां अपने शरीर की रक्षा उसे मेरी वस्तु मानकर करती हैं। गोपियों को छोड़कर मेरा निगूढ़ प्रेमपात्र और कोई नहीं है।’ यही कारण है कि श्रीकृष्ण जोकि स्वयं आनन्दस्वरूप हैं, आनन्द के अगाध समुद्र हैं, वे भी गोपीप्रेम का अमृत पीकर आनन्द प्राप्त करना चाहते हैं।

राधा की सखियाँ

रूपगोस्वामी के अनुसार नित्यप्रिया सुष्ठुकान्तस्वरूपा, धृतषोडश-श्रृगांरा और द्वाद्वशा भरणाश्रिता हैं। उनके अनन्त गुण हैं। राधा के यूथ की गोपियाँ भी सर्वगुणसम्पन्न हैं।

राधा की ये अष्टसखियाँ पाँच प्रकार की होती हैं

१) - राधा-कृष्ण के साथ अष्टसखियाँ सखी ।

२) - कुसुमिका, विद्या आदि नित्य-सखी ।

३) - कस्तूरिका, मणिमंजरिका आदि प्राण-सखी ।

४) - शशिमुखी, वासन्ती आदि प्रिय-सखी ।

५) - कुरगांक्षी, मदनालसा, मंजुकेशी, माली आदि परम श्रेष्ठ सखी ।

अष्टसखियाँ

राधा की परम श्रेष्ठ सखियाँ आठ मानी गयी हैं, जिनके नाम निम्नलिखित हैं-

१) ललिता

२) विशाखा

३) चम्पकलता

४) चित्रा

५) सुदेवी

६) तुंगविद्या

७) इन्दुलेखा

८) रग्डदेवी सुदेवी

उपरोक्त सखियों में से 'चित्रा', 'सुदेवी', 'तुंगविद्या' और 'इन्दुलेखा' के स्थान पर 'सुमित्रा', 'सुन्दरी', 'तुंगदेवी' और 'इन्दुरेखा' नाम भी मिलते हैं।

मंजरियाँ

रासलीला, कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा राधा की उपरोक्त अष्टसखियाँ सब गोपियों में अग्रगण्य है। इनकी एक-एक सेविका भी हैं, जो 'मंजरी' महलाती हैं।

मंजरियों के नाम निम्नलिखित हैं-

*रूपमंजरी *जीवमंजरी *अनंगमंजरी * रसमंजरी

* विलासमंजरी * रागमंजरी * लीलामंजरी * कस्तूरीमंजरी ।

इन मंजरियों के नाम-रूपादि के विषय में भिन्नता भी मिलती है। ये सखियाँ वस्तुत: राधा से अभिन्न उन्हीं की कायव्यूहरूपा हैं। राधा-कृष्ण-लीला का इन्हीं के द्वारा विस्तार होता है। कभी वे, जैसे खण्डिता दशा में, राधा का पक्ष-समर्थन करके कृष्ण का विरोध करती है। और कभी, जैसे मान की दशा में, कृष्ण का विरोध करती हैं और कभी कृष्ण के प्रति प्रवृत्ति दिखाते हुए राधा की आलोचना करती है। परन्तु उन्हें राधा से ईर्ष्या कभी नहीं होती, वे कृष्ण का संग-सुख कभी नहीं चाहतीं, क्योंकि उन्हें राधा-कृष्ण के प्रेम-मिलन में ही आत्मीय मिलन-सुख की परिपूर्णता का अनुभव हो जाता है। अत: वे राधा-कृष्ण के मिलन की चेष्टा करती रहती हैं।

जय जय श्री राधे!

(कृष्ण कोश व अन्य स्रोतों से साभार)

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प्रश्न अभ्यास 

 1. गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?


उत्तरगोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में यह व्यंग्य निहित है कि उद्धववास्तव में भाग्यवान न होकर अति भाग्यहीन हैं। वे कृष्णरूपी सौन्दर्य तथाप्रेम-रस के सागर के सानिध्य में रहते हुए भी उस असीम आनंद से वंचित हैं।वे प्रेम बंधन में बँधने एवं मन के प्रेम में अनुरक्त होने की सुखद अनुभूतिसे पूर्णतया अपरिचित हैं।

2.

उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?उत्तरगोपियों ने उद्धव के व्यवहार की तुलना निम्नलिखित उदाहरणों से की है -

(1)गोपियों ने उद्धव के व्यवहार की तुलना कमल के पत्ते से की है जो नदी केजल में रहते हुए भी जल की ऊपरी सतह पर ही रहता है। अर्थात् जल का प्रभाव उसपर नहीं पड़ता। श्री कृष्ण का सानिध्य पाकर भी वह श्री कृष्ण  के प्रभावसे मुक्त हैं।
(2)
वह जल के मध्य रखे तेल के गागर (मटके) की भाँति हैं, जिस पर जल की एकबूँद भी टिक नहीं पाती। उद्धव पर श्री कृष्ण का प्रेम अपना प्रभाव नहींछोड़ पाया है, जो ज्ञानियों की तरह व्यवहार कर रहे हैं।

3.

गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?उत्तरगोपियों ने कमल के पत्ते, तेल की मटकी और प्रेम की नदी के उदाहरणों केमाध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं। उनका कहना है की वे कृष्ण के साथ रहतेहुए भी प्रेमरूपी नदी में उतरे ही नहीं, अर्थात साक्षात प्रेमस्वरूपश्रीकृष्ण के पास रहकर भी वे उनके प्रेम से वंचित हैं ।


4.
उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया?उत्तरगोपियाँ कृष्ण के आगमन की आशा में दिन गिनती जा रही थीं। वे अपने तन-मन कीव्यथा को चुपचाप सहती हुई कृष्ण के प्रेम रस में डूबी हुई थीं। कृष्ण कोआना था परन्तु उन्हों ने योग का संदेश देने के लिए उद्धव को भेज दिया। विरहकी अग्नि में जलती हुई गोपियों को जब उद्धव ने कृष्ण को भूल जाने औरयोग-साधना करने का उपदेश देना प्रारम्भ किया, तब गोपियों की विरह वेदना औरभी बढ़ गयी । इस प्रकार उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों कीविरह अग्नि में घी का काम किया। 


5. '
मरजादा न लही' के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है? उत्तर

'

मरजादा न लही' के माध्यम से प्रेम की मर्यादा न रहने की बात की जा रही है।कृष्ण के मथुरा चले जाने पर गोपियाँ उनके वियोग में जल रही थीं। कृष्ण केआने पर ही उनकी विरह-वेदना मिट सकती थी, परन्तु कृष्ण ने स्वयं न आकर उद्धवको यह संदेश देकर भेज दिया की गोपियाँ कृष्ण का प्रेम भूलकर योग-साधना मेंलग जाएँ । प्रेम के बदले प्रेम का प्रतिदान ही प्रेम की मर्यादा है, लेकिनकृष्ण ने गोपियों की प्रेम रस के उत्तर मैं योग की शुष्क धारा भेज दी । इस प्रकार कृष्ण ने प्रेम की मर्यादा नहीं रखी । वापस लौटने का वचन देकर भीवे गोपियों से मिलने नहीं आए ।

6.

कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है ?  

उत्तर


गोपियों ने कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को हारिल पक्षी के उदाहरण केमाध्यम से अभिव्यक्त किया है। वे अपनों को हारिल पक्षी व श्रीकृष्ण कोलकड़ी की भाँति बताया है। जिस प्रकार हारिल पक्षी सदैव अपने पंजे में कोईलकड़ी अथवा तिनका पकड़े रहता है, उसे किसी भी दशा में नहीं छोड़ता। उसी प्रकार गोपियों ने भी मन, कर्म और वचन से कृष्ण को अपने ह्रदय मेंदृढ़तापूर्वक बसा लिया है। वे जागते, सोते स्वप्नावस्था में, दिन-रातकृष्ण-कृष्ण की ही रटलगाती रहती हैं। साथ ही गोपियों ने अपनी तुलना उन चीटियों के साथ की है जो गुड़ (श्रीकृष्ण भक्ति) पर आसक्त होकर उससे चिपटजाती है और फिर स्वयं को छुड़ा न पाने के कारण वहीं प्राण त्याग देती है।

7.

गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है ? उत्तरगोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा ऐसे लोगों को देने की बात कही है जिनकामन चंचल है और इधर-उधर भटकता है। उद्धव अपने योग के संदेशमें मन कीएकाग्रता का उपदेश देतें हैं, परन्तु गोपियों का मन तो कृष्ण के अनन्यप्रेम में पहले से ही एकाग्र है। इस प्रकार योग-साधना का उपदेश उनके लिएनिरर्थक है। योग की आवश्यकता तो उन्हें है जिनका मन स्थिर नहीं हो पाता, इसीलिये गोपियाँ चंचल मन वाले लोगों को योग का उपदेश देने की बात कहती हैं।

8.

प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।उत्तरप्रस्तुत पदों में योग साधना के ज्ञान को निरर्थक बताया गया है। यह ज्ञानगोपियों के अनुसार अव्यवाहरिक और अनुपयुक्त है। उनके अनुसार यह ज्ञान उनकेलिए कड़वी ककड़ी के समान है जिसे निगलना बड़ा ही मुश्किल है। सूरदास जीगोपियों के माध्यम से आगे कहते हैं कि ये एक बीमारी है। वो भी ऐसा रोगजिसके बारे में तो उन्होंने पहले कभी न सुना है और न देखा है। इसलिए उन्हेंइस ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। उन्हें योग का आश्रय तभी लेना पड़ेगा जबउनका चित्त एकाग्र नहीं होगा। परन्तु कृष्णमय होकर यह योग शिक्षा तो उनकेलिए अनुपयोगी है। उनके अनुसार कृष्ण के प्रति एकाग्र भाव से भक्ति करनेवाले को योग की ज़रूरत नहीं होती।


9. 
गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए ? उत्तरगोपियों के अनुसार राजा का धर्म उनकी प्रजा की हर तरह से रक्षा करना तथानीति से राजधर्म का पालन करना होता है। एक राजा तभी अच्छा कहलाता है जब वहअनीती का साथ न देकर नीती का साथ दे।

10.

गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन सा परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं ?उत्तरगोपियों को लगता है कि कृष्ण ने अब राजनीति सिख ली है। उनकी बुद्धि पहले सेभी अधिक चतुर हो गयी है। पहले वे प्रेम का बदला प्रेम से चुकाते थे, परंतुअब प्रेम की मर्यादा भूलकर योग का संदेश देने लगे हैं। कृष्ण पहले दूसरोंके कल्याण के लिए समर्पित रहते थे, परंतु अब अपना भला ही देख रहे हैं।उन्होंने पहले दूसरों के अन्याय से लोगों को मुक्ति दिलाई है, परंतु अबनहीं। श्रीकृष्ण गोपियों से मिलने के बजाय योग के शिक्षा देने के लिए उद्धवको भेज दिए हैं। श्रीकृष्ण के इस कदम से गोपियों के मन और भी आहत हुआ है।कृष्ण में आये इन्ही परिवर्तनों को देखकर गोपियाँ अपनों को श्रीकृष्ण केअनुराग से वापस लेना चाहती है।

11.

गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए?उत्तर

गोपियों के वाक्चातुर्य की विशेषताएँ इस प्रकार है -
(1)
तानों द्वारा (उपालंभ द्वारा)  - गोपियाँ उद्धव को अपने तानों केद्वारा चुप करा देती हैं। उद्धव के पास उनका कोई जवाब नहीं होता। वे कृष्णतक को उपालंभ दे डालती हैं। उदाहरण के लिए -
इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए।
(2)
तर्क क्षमता  - गोपियों ने अपनी बात तर्क पूर्ण ढंग से कही है। वहस्थान-स्थान पर तर्क देकर उद्धव को निरुत्तर कर देती हैं। उदाहरण के लिए -
"
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।"
सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी।
यह तौ 'सूर' तिनहि लै सौंपौ, जिनके मन चकरी।।
(3)
व्यंग्यात्मकता  - गोपियों में व्यंग्य करने की अद्भुत क्षमता है। वहअपने व्यंग्य बाणों द्वारा उद्धव को घायल कर देती हैं। उनके द्वारा उद्धवको भाग्यवान बताना उसका उपहास उड़ाना था।
(4)
तीखे प्रहारों द्वारा  - गोपियों ने तीखे प्रहारों द्वारा उद्धव को प्रताड़ना दी है।

12.

संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइये।उत्तरसूरदास मधुर तथा कोमल भावनाओं का मार्मिक चित्रण करने वाले महाकवि हैं। सूरके 'भ्रमरगीत' में अनुभूति और शिल्प दोनों का ही मणि-कांचन संयोग हुआ है।इसकी मुख्य विशेषताएँ इसप्रकार हैं - भाव-पक्ष - 'भ्रमरगीत' एक भाव-प्रधान गीतिकाव्य है। इसमें उदात्त भावनाओंका मनोवैज्ञानिक चित्रण हुआ है। भ्रमरगीत में गोपियों ने भौंरें को माध्यमबनाकर ज्ञान पर भक्ति की श्रेष्ठता का प्रतिपादन किया है। अपनी वचन-वक्रता, सरलता, मार्मिकता, उपालंभ, व्यगात्म्कथा, तर्कशक्ति आदि के द्वाराउन्होंने उद्धव के ज्ञान योग को तुच्छ सिद्ध कर दिया है। 'भ्रमरगीत' मेंसूरदास ने विरह के समस्त भावों की स्वाभाविक एवं मार्मिक व्यंजना की हैं।कला-पक्ष - 'भ्रमरगीत' की कला-पक्ष अत्यंत सशक्त, प्रभावशाली और रमणीय है।भाषा-शैली - 'भ्रमरगीत' में शुद्ध साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।अलंकार - सूरदास ने 'भ्रमरगीत' में अनुप्रास, उपमा, दृष्टांत, रूपक, व्यतिरेक, विभावना, अतिशयोक्तिआदि अनेक अलंकारों का सुन्दर प्रयोग कियाहै। छंद-विधान - 'भ्रमरगीत' की रचना 'पद' छंद में हुई है। इसके पद स्वयं में स्वतंत्र भी हैं और परस्पर सम्बंधित भी हैं।संगीतात्म्कथा - सूरदास कवि होने के साथ-साथ सुप्रसिद्ध गायक भी थे। यहीकारण है कि 'भ्रमरगीत' में भी संगीतात्म्कथा का गुण सहज ही दृष्टिगत होताहै।

रचना और अभिव्यक्ति 

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14. उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे; गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य में मुखिरत हो उठी?उत्तर 


गोपियों के पास श्री कृष्ण के प्रति सच्चे प्रेम तथा भक्ति की शक्ति थी जिसकारण उन्होंने उद्धव जैसे ज्ञानी तथा नीतिज्ञ को भी अपने वाक्चातुर्य सेपरास्त कर दिया।

15.

गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीतिपढ़ आए हैं? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति मेंनज़र आता है, स्पष्ट कीजिए।उत्तरगोपियों ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि श्री कृष्ण ने सीधी सरल बातें ना करकेरहस्यातमक ढंग से उद्धव के माध्यम से अपनी बात गोपियों तक पहुचाई है।

गोपियों का कथन कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं आजकल की राजनीति में नजर आ रहा है। आज के नेता भी अपने बातों को घुमा फिरा कर कहते हैं जिस तरह कृष्णने उद्धव द्वारा कहना चाहा। वे सीधे-सीधे मुद्दे और काम को स्पष्ट नही करतेबल्कि इतना घुमा देते हैं कि जनता समझ नही पाता। दूसरी तरफ यहाँ गोपियोंने राजनीति शब्द को व्यंग के रूप में कहा है। आज के समय में भी राजनीतिशब्द का अर्थ व्यंग के रूप में लिया जाता है।

भावार्थ

(1)

उधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यों जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी में पाँव न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
'
सूरदास' अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यों पागी।

अर्थ - इन पंक्तियों में गोपियाँ उद्धव से व्यंग्य करती हैंकहती हैं कितुम बहुत ही भाग्यशाली हो जो कृष्ण के पास रहकर भी उनके प्रेम और स्नेह सेवंचित हो। तुम कमल के उस पत्ते के समान हो जो रहता तो जल में है परन्तु जलमें डूबने से बचा रहता है। जिस प्रकार तेल की गगरी को जल में भिगोने परभी उसपर पानी की एक भी बूँद नहीं ठहर पाती,ठीक उसी प्रकार तुम श्री कृष्णरूपी प्रेम की नदी के साथ रहते हुए भी उसमें स्नान करने की बात तो दूरतुम पर तो श्रीकृष्ण प्रेम की एक छींट भी नहीं पड़ी। तुमने कभी प्रीति रूपीनदी में पैर नही डुबोए। तुम बहुत विद्यवान हो इसलिए कृष्ण के प्रेम में नहीरंगे परन्तु हम भोली-भाली गोपिकाएँ हैं इसलिए हम उनके प्रति ठीक उस तरहआकर्षित हैं जैसे चीटियाँ गुड़ के प्रति आकर्षित होती हैं। हमें उनके प्रेममें लीन हैं।

(2)

मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
अवधि असार आस आवन की,तन मन विथा सही।
अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि,विरहिनि विरह दही।
चाहति हुती गुहारि जितहिं तैं, उर तैं धार बही ।
'
सूरदास'अब धीर धरहिं क्यौं,मरजादा न लही।।

अर्थ - इन पंक्तियों में गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि उनकी मन की बात मनमें ही रह गयी। वे कृष्ण से बहुत कुछ कहना चाहती थीं परन्तु अब वे नही कहपाएंगी। वे उद्धव को अपने सन्देश देने का उचित पात्र नही समझती हैं और कहतीहैं कि उन्हें बातें सिर्फ कृष्ण से कहनी हैं, किसी और को कहकर संदेश नहीं भेज सकती। वे कहतीं हैं कि इतने समय से कृष्ण के लौट कर आने की आशा कोहम आधार मान कर तन मन, हर प्रकार से विरह की ये व्यथा सह रहीं थीं ये सोचकरकि वे आएँगे तो हमारे सारे दुख दूर हो जाएँगे। परन्तु श्री कृष्ण ने हमारेलिए ज्ञान-योग का संदेश भेजकर हमें और भी दुखी कर दिया। हम विरह की आग मेऔर भी जलने लगीं हैं। ऐसे समय में कोई अपने रक्षक को पुकारता है परन्तुहमारे जो रक्षक हैं वहीं आज हमारे दुःख का कारण हैं।हे उद्धव, अब हम धीरजक्यूँ धरें, कैसे धरें. जब हमारी आशा का एकमात्र तिनका भी डूब गया। प्रेमकी मर्यादा है कि प्रेम के बदले प्रेम ही दिया जाए पर श्री कृष्ण ने हमारेसाथ छल किया है उन्होने मर्यादा का उल्लंघन किया है।

(3)

हमारैं हरि हारिल की लकरी।

मन क्रम  बचननंद -नंदनउर, यहदृढ़करिपकरी।
जागत सोवत स्वप्नदिवस - निसि, कान्ह- कान्हजक री।
सुनत जोग लागतहैऐसौ, ज्यौं करुईककरी।
सुतौब्याधिहमकौंलैआए, देखीसुनी करी।
यहतौ 'सूर' तिनहिंलैसौपौं, जिनकेमनचकरी ।।

अर्थ - इन पंक्तियों में गोपियाँ कहती हैं कि कृष्ण उनके लिए हारिल की लकड़ीहैं। जिस तरह हारिल पक्षी लकड़ी के टुकड़े को अपने जीवन का सहारा मानता हैउसी प्रकार श्री कृष्ण भी गोपियों के जीने का आधार हैं। उन्होंने  मन कर्मऔर वचन से नन्द बाबा के पुत्र कृष्ण को अपना माना है। गोपियाँ कहती हैंकि जागते हुए, सोते हुए दिन में, रात में, स्वप्न में हमारा रोम-रोम कृष्णनाम जपता रहा है। उन्हें उद्धव का सन्देश कड़वी ककड़ी के समान लगता है। हमेंकृष्ण के प्रेम का रोग लग चुका है अब हम आपके कहने पर योग का रोग नहीं लगासकतीं क्योंकि हमने तो इसके बारे में न कभी सुना, न देखा और न कभी इसकोभोगा ही है। आप जो यह योग सन्देश लायें हैं वो उन्हें जाकर सौपें जिनका मनचंचल हो चूँकि हमारा मन पहले ही कहीं और लग चुका है।

(4)

हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।

समुझीबातकहतमधुकर के, समाचारसबपाए।
इक अति चतुर हुते पहिलैं हीं , अबगुरु ग्रंथपढाए।
बढ़ीबुद्धिजानीजो उनकी , जोग-सँदेसपठाए।
ऊधौ भले लोग आगे के , पर हितडोलत धाए।
अब अपने  मन फेर पाइहैं, चलतजुहुतेचुराए।
तें क्यौं अनीति करैं आपुन ,जे और अनीति छुड़ाए।
राज धरम तौ यहै ' सूर', जो प्रजा न जाहिं सताए।।अर्थ - गोपियाँ कहतीं हैं कि श्री कृष्ण ने राजनीति पढ़ ली है। गोपियाँ बातकरती हुई व्यंग्यपूर्वक कहती हैं कि वे तो पहले से ही बहुत चालाक थे पर अबउन्होंने बड़े-बड़े ग्रन्थ पढ़ लिए हैं जिससे उनकी बुद्धि बढ़ गई है तभी तोहमारे बारे में सब कुछ जानते हुए भीउन्होंने हमारे पास उद्धव से योग कासन्देश भेजा है। उद्धव जी का इसमे कोई दोष नहीं है, ये भले लोग हैं जो दूसरों के कल्याण करनेमें आनन्द का अनुभव करते हैं। गोपियाँ उद्धव सेकहती हैं की आप जाकर कहिएगा कि यहाँ से मथुरा जाते वक्त श्रीकृष्ण हमारा मनभी अपने साथ ले गए थे, उसे वे वापस कर दें। वे अत्याचारियों को दंड देनेका काम करने मथुरा गए हैं परन्तु वे स्वयं अत्याचार करते हैं। आप उनसेकहिएगा कि एक राजा को हमेशा चाहिए की वो प्रजा की हित का ख्याल रखे। उन्हेंकिसी प्रकार का कष्ट नहीं पहुँचने दे, यही राजधर्म है।कवि परिचयसूरदासइनका जन्म सन 1478 में माना जाता है। एक मान्यता के अनुसार इनका जन्म मथुराके निकट रुनकता या रेणुका क्षेत्र में हुआ था जबकि दूसरी मान्यता केअनुसार इनका जन्म स्थान दिल्ली के पास सीही माना जाता है। महाप्रभुवल्लभाचार्य के शिष्य सूरदास अष्टछाप के कवियों में सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं।सुर 'वात्सल्य' और 'श्रृंगार' के श्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। इनकी मृत्यु 1583 में पारसौली में हुई।प्रमुख कार्यग्रन्थ - सूरसागर, साहित्य लहरी और सूर सारावली।कठिन शब्दों के अर्थ

बड़भागी - भाग्यवान
अपरस - अछूता
तगा - धागा
पुरइन पात - कमल का पत्ता
माहँ - में
पाऊँ - पैर
बोरयौ - डुबोया
परागी - मुग्ध होना
अधार - आधार
आवन - आगमन
बिरहिनि - वियोग में जीने वाली।
हुतीं - थीं
जीतहिं तैं - जहाँ से
उत - उधर
मरजादा - मर्यादा
न लही - नहीं रही
जक री - रटती रहती हैं
सु - वह
ब्याधि - रोग
करी - भोगा
तिनहिं - उनको
मन चकरी - जिनका मन स्थिर नही रहता।
मधुकर - भौंरा
हुते - थे
पठाए - भेजा
आगे के - पहले के
पर हित - दूसरों के कल्याण के लिए
डोलत धाए - घूमते-फिरते थे
पाइहैं - पा लेंगी।

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गोपियों ने कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को कैसे व्यक्त किया है?

Answer:गोपियों ने कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को हारिल पक्षी के उदाहरण के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। वे अपनों को हारिल पक्षी व श्रीकृष्ण को लकड़ी की भाँति बताया है। जिस प्रकार हारिल पक्षी सदैव अपने पंजे में कोई लकड़ी अथवा तिनका पकड़े रहता है, उसे किसी भी दशा में नहीं छोड़ता।

गोपियों ने श्रीकृष्ण को किसके समान बताया है और क्यों?

गोपियों ने अपने लिए कृष्ण को हारिल की लकड़ी के समान इसलिए बताया है क्योंकि जिस प्रकार हारिल पक्षी अपने पंजे में दबी लकड़ी को आधार मानकर उड़ता है उसी प्रकार गोपियों ने अपने जीवन का आधार कृष्ण को मान रखा है

गोपियां कृष्ण से नाराज क्यों थी?

गोपियों को लगा कि कृष्ण मथुरा में जाकर बदल गए हैं। वे अब गोपियों से प्रेम नहीं करते। इसलिए वे स्वयं उनसे मिलने नहीं आए। दूसरे, उन्हें लगा कि अब कृष्ण राजा बनकर राजनीतिक चालें चलने लगे हैं।

गोपियों के अनुसार कृष्ण को कौन प्रिय है?

अन्य सब गोपियों की अपेक्षा उनका श्री कृष्ण पर सबसे अधिक प्रेम था। उनका पति इस बात को जानता थे और यद्यपि पहले उसे यह बात बुरी लगी, किन्तु जब उसे इनके पवित्र प्रेम का वास्तविक तत्व मालूम हुआ तो उसका सारा संदेह जाता रहा। जब तक प्रेम का असली तत्व हमारी समझ में न आ जाए, तब तक हम इस पहेली को नहीं सुलझा सकते।

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