एक संघीय राज्य व्यवस्था की मुख्य विशेषताएं क्या है? - ek sangheey raajy vyavastha kee mukhy visheshataen kya hai?

अध्याय : 2. संघवाद

संघीय व्यवस्था की विशेषताएँ

संघीय व्यवस्था की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएँ :
1. दो स्तरीय सरकार : यहाँ सरकार दो या अधिक स्तरों वाली होती है।
2. शक्ति का वितरण : अलग-अलग स्तर की सरकारें एक ही नागरिक समूह पर शासन करती हैं पर कानून बनाने, कर वसूलने और प्रशासन का उनका अपना-अपना अधिकार-क्षेत्रा होता है।
3. संविधानिक स्थिति : विभिन्न स्तरों की सरकारों के अधिकार क्षेत्रा संविधान में स्पष्ट रूप से वर्णित होते हैं इसलिए संविधार सरकार के हर स्तर के अस्तित्व और प्राधिकार की गारंटी और सुरक्षा देता है।
4. समान स्तर : संविधान के मौलिक प्रावधानों को किसी एक स्तर की सरकार अकेले नहीं बदल सकती। ऐसे बदलाव दोनों स्तर की सरकारों की सहमति से ही हो सकते है।
5. स्वतंत्रा न्यायपालिका : अदालतों को संविधान और विभिन्न स्तर की सरकारों के अधिकारों की व्याख्या करने का अधिकार है।
6. वित्तीय स्वायत्तता : वित्तीय स्वायत्तता निश्चित करने के लिए विभिन्न स्तर की सरकारों के लिए राजस्व के अलग-अलग स्त्रोत निर्धारित हैं।
7. दोहरे उद्देश्य : इस प्रकार संघीय शासन व्यवस्था के दोहरे उद्देश्य हैं : देश की एकता की सुरक्षा करना और उसे बढ़ावा देना तथा इसके साथ ही क्षेत्राीय विविधताओं का पूरा सम्मान करना।

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संघवाद सरकार की एक प्रणाली है जिसमें सत्ता केंद्रीय प्राधिकरण और देश की विभिन्न घटक इकाइयों के बीच विभाजित होती है। एक संघ में सरकार के दो स्तर होते हैं:

  • एक है पूरे देश की सरकार जो सामान्य राष्ट्रीय हित के कुछ विषयों के लिए उत्तरदायक है।
  • अन्य प्रांतों या राज्यों के स्तर पर सरकारें हैं जो अपने राज्य के प्रशासन के दिन-प्रतिदिन की अधिकांश देखभाल करती हैं।

इस अर्थ में, संघों की तुलना एकात्मक राज्यों से की जाती है। एकात्मक प्रणाली के अंतर्गत या तो सरकार का केवल एक स्तर होता है या उप-इकाइयाँ केंद्र सरकार के अधीनस्थ होती हैं। केंद्र सरकार प्रांतीय या स्थानीय सरकार को आदेश दे सकती है। लेकिन संघीय व्यवस्था में केंद्र सरकार राज्य सरकार को कुछ करने का आदेश नहीं दे सकती। राज्य सरकार की अपनी शक्तियां होती हैं जिसके लिए वह केंद्र सरकार के प्रति उत्तरदायी नहीं होती है। ये दोनों सरकारें अलग-अलग लोगों के प्रति उत्तरदायी होती हैं।

संघवाद की विशेषताएँ[संपादित करें]

संघवाद की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  1. सरकार के दो या दो से अधिक स्तर होते हैं।
  2. कानून, कराधान और प्रशासन के संबंध में सरकार के विभिन्न स्तरों का अपना क्षेत्राधिकार है।
  3. सरकार के प्रत्येक स्तर के अस्तित्व और अधिकार की संवैधानिक प्रत्याभूति है।
  4. संविधान के मौलिक प्रावधानों में बदलाव के लिए सरकार के दोनों स्तरों की सहमति की आवश्यकता होती है।
  5. संविधान और सरकार के विभिन्न स्तरों की शक्ति की व्याख्या करने के लिए न्यायालय एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस प्रकार, सर्वोच्च न्यायालय एक निर्णायक की भूमिका निभाता है यदि सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच अपनी-अपनी शक्तियों के प्रयोग में विवाद उत्पन्न होता है।
  6. सरकार की वित्तीय स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए सरकार के प्रत्येक स्तर के राजस्व के स्रोतों का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है।
  7. संघीय प्रणाली के दोहरे उद्देश्य हैं, अर्थात देश की एकता की रक्षा करना और उसे बढ़ावा देना और साथ ही यह क्षेत्रीय विविधता को भी समायोजित करता है।
  8. सरकार की एक आदर्श संघीय प्रणाली में एक साथ रहने के लिए आपसी विश्वास और सहमति होनी चाहिए।

भारत : संघात्मक या एकात्मक[संपादित करें]

प्रधानत: भारत के संविधान में संघात्मक संविधान की सभी उपर्युक्त विशेषताएँ विद्यमान हैं। किंतु भारतीय संघात्मक संविधान में कुछ विशिष्ट प्राविधान है जिनका समावेश अन्य संविधानों के कार्यसंचालन से उत्पन्न कठिनाइयों को दृष्टिगत करके किया गया है।

उदाहरणार्थ, सबसे विशिष्ट तथ्य यह है कि भारतीय संविधान संघात्मक होते हुए भी इसका निर्माण स्वतंत्र राष्ट्रों की किसी संविदा द्वारा नहीं हुआ है; बल्कि यह उन राज इकाइयों के मेल (यूनियन) से बना है जो परंतंत्र एकात्मक भारत के अंग के रूप में पहले से ही विद्यमान थे। दूसरी विशेषता यह है कि आपत्काल में भारतीय संविधान में एकात्मक संविधानों के अनुरूप केंद्र को अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए प्रावधान निहित हैं। तृतीय विशेषता यह है कि केवल एक नागरिकता (भारतीय नागरिकता) का ही समावेश किया गया है तथा एक ही संविधान केंद्र तथा राज्य दोनों ही सरकारों के कार्यसंचालन के लिए व्यवस्थाएँ प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त संविधान सभा के मतानुसार भारत एक शिशु गणतंत्र की अवस्था में है, अत: देश के तीव्र एवं सर्वतोमुखी विकास एवं उन्नति के लिए समय समय पर उपयुक्त प्रावधानों की आवश्यकता पड़ सकती है जिसके लिए संविधान संशोधन की तीन विभिन्न प्रक्रियाएँ दी गई हैं। केवल विशेष संघात्मक प्रावधानों के संशोधन के लिए ही राज्यों का मत आवश्यक है, बाकी संशोधन संसद् स्वयं कर सकती है। इस प्रकार संघात्मक संविधानों के विकास में भारतीय संविधान एक नई प्रवृत्ति, केंद्रीकरण, का सूत्रपात करता है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • शक्तियों का पृथक्करण
  • एकात्मक राज्य (unitary state)

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • P.-J. Proudhon, The Principle of Federation, 1863.
  • A Comparative Bibliography: Regulatory Competition on Corporate Law
  • A Rhetoric for Ratification: The Argument of the Federalist and its Impact on Constitutional Interpretation
  • National Archived 2015-11-01 at the Wayback Machine
  • Teaching about Federalism in the United States - From the Education Resources Information Center Clearinghouse for Social Studies/Social Science Education Bloomington, Indiana.
  • An Ottawa, Canada-based international organization for federal countries that share best practices among countries with that system of government
  • Tenth Amendment Center Federalism and States Rights in the U.S.
  • BackStory Radio episode on the origins and current status of Federalism Archived 2009-03-26 at the Wayback Machine
  • Constitutional law scholar Hester Lessard discusses Vancouver's Downtown Eastside and jurisdictional justice McGill University, 2011

संघीय व्यवस्था की मुख्य विशेषताएं क्या है?

संघवाद की विशेषताएँ सरकार के दो या दो से अधिक स्तर होते हैं। कानून, कराधान और प्रशासन के संबंध में सरकार के विभिन्न स्तरों का अपना क्षेत्राधिकार है। सरकार के प्रत्येक स्तर के अस्तित्व और अधिकार की संवैधानिक प्रत्याभूति है। संविधान के मौलिक प्रावधानों में बदलाव के लिए सरकार के दोनों स्तरों की सहमति की आवश्यकता होती है।

भारतीय संविधान की संघीय विशेषताएं क्या है?

किसी भी संघीय ढांचें में संविधान केंद्र तथा संघीय इकाईयों के लिए बराबर रूप से सर्वोच्च होना चाहिए । संविधान देश का सर्वोच्च कानून है तथा केंद्र अथवा राज्यों द्वारा पारित कानून संविधान सम्मत होने चाहिए। इसके अनुसार भारत का संविधान भी सर्वोच्च है और न केंद्र न ही राज्यों के हाथ की कठपुतली है।

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