इस आर्टिकल में हम मात्रिक छंद तथा मात्रिक छंद के प्रकार के बारे में पढेंगे है, इसके अलावां उदाहरण के साथ यह भी पढेंगे कि मात्रिक छंद किसे कहते हैं । इससे पहले इस ब्लॉग पर हिंदी व्याकरण से सम्बंधित अन्य आर्टिकल जैसे संज्ञा, पर्यायवाची शब्द, विलोम शब्द तथा अनेक शब्दों के लिए एक शब्दआदि पब्लिश हो चुके हैं।
मात्रिक छंद किसे कहते हैं?
मात्रिक शब्द-नाम से ही स्पष्ट हो रहा है कि यह मात्रा से सम्बन्धित है-अतः इसे कह सकते हैं कि जिन छंदों की रचना मात्राओं की गणना के आधार पर की जाती है उन्हें मात्रिक छंद कहते हैं।
मात्रिक छंद की परिभाषा-
मात्रा की गणना के आधार पर की गयी पद की रचना को मात्रिक छंद कहते हैं। मात्रिक छंद के सभी चरणों में मात्राओं की संख्या सामान रहती है।
मात्रिक छंद पढने से पहले आपको मात्राओं कि गणना करना आना चाहिए। इसमें मात्राओं को दो भाग (लघु और गुरु) में बाटा गया है-
लघु वर्ण- लघु वर्ण के उच्चारण में एक मात्रा का समय लगता है। अ, इ, उ, ऋ आदि लघु वर्ण
हैं, इसका का चिह्न ‘।’ है।
दीर्घ वर्ण- लघु कि अपेक्षा दीर्घ वर्ण के उच्चारण में दुगुना समय लगता है। आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ आदि गुरु वर्ण हैं, इसका चिह्न (ऽ) है।
मात्रिक छंद के प्रकार
मात्रिक छंद भी 3 प्रकार के होते हैं-
- सम मात्रिक छंद
- अर्धसम मात्रिक छंद
- विषम मात्रिक छंद
सम मात्रिक छन्द किसे कहते हैं?
जिस छंद के सभी चरणों में मात्राओं की संख्या समान होती है उन्हें सम मात्रिक छंद कहते हैं। जैसे-चौपाई, रोला, हरिगीतिका, वीर, अहीर, तोमर, मानव, पीयूषवर्ष, सुमेरु, राधिका, दिक्पाल, रूपमाला, सरसी, सार, गीतिका और ताटंक आदि
अर्द्धसम मात्रिक छंद किसे कहते हैं?
जिस छंद के पहले और तीसरे चरण तथा दुसरे और चौथे चरण में मात्राओं की संख्या समान होती है, वहाँ अर्द्धसम मात्रिक छंद होता है। जैसे-दोहा, सोरठा, बरवै तथा उल्लाला आदि
विषम मात्रिक छंद क्या होता है?
जिस छंद के चरणों में अधिक समानता न हों, वहाँ विषम मात्रिक छंद होता है। जैसे-कुण्डलिया (दोहा + रोला) , छप्पय (रोला + उल्लाला)
कुछ प्रमुख छंद –
हिन्दी व्याकरण में बहुत से छंद होते हैं लेकीन आज हम कुछ प्रमुख छंद के बारे में पढेंगे, जिनसे सम्बंधित प्रश्न परीक्षाओं में आते रहते हैं ।
दोहा छंद
यह एक अर्द्धसम मात्रिक छंद है, इसमें चार चरण होते हैं जिसके पहले और तीसरे चरण में 13 तथा दुसरे और चौथे चरण में 11 मात्राएँ होती हैं| जैसे –
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥
चरण 1- गुरु गोविंद दोउ खड़े, (13)
चरण 2- काके लागूं पाँय। (11)
चरण 3- बलिहारी गुरु
आपने, (13)
चरण 4- गोविंद दियो मिलाय (11)
सोरठा छंद-
यह भी एक अर्द्धसम मात्रिक छंद है, यह दोहा छंद का ठीक उल्टा होता है, इसमें भी चार चरण होते हैं। इसके पहले और तीसरे चरण में 11-11 तथा दुसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। उदहारण-
जो सुमिरत सिधि होय, गन नायक करिबर बदन।
करहु अनुग्रह सोय, बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥
चरण 1- जो सुमिरत सिधि होय (11)
चरण 2- गन नायक
करिबर बदन (13)
चरण 3- करहु अनुग्रह सोय (11)
चरण 4- बुद्धि रासि सुभ गुन सदन (13)
रोला छंद
रोला एक सम मात्रिक छंद है, इसके प्रत्येक चरण में मात्राओं कि संख्या समान रहती है, इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं, जिसमे 11 और 13 मात्राओं पर यति होती है। उदाहरण-
यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥
चरण 1- यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
(24)
चरण 2- पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥ (24)
Conclusion :-
इस आर्टिकल में आपने मात्रिक छंद तथा मात्रिक छंद के प्रकार के बारे में पढ़ा है, इसके अलावां आपने उदहारण के साथ यह भी जाना है कि मात्रिक छंद किसे कहते हैं। हिन्दी व्याकरण से सम्बंधित अन्य आर्टिकल पढ़ते रहने के लिए नीचे दिए दाईं और दिए गए बेल आइकॉन को दबाएँ और allow करें।
इस पेज पर आप मात्रिक छन्द की समस्त जानकारी पढ़ने वाले हैं तो पोस्ट को पूरा जरूर पढ़िए। पिछले पेज पर हमने शब्द और वर्णमाला की जानकारी शेयर की हैं तो उस पोस्ट को भी
पढ़े। चलिए आज हम मात्रिक छन्द की समस्त जानकारी को पढ़ते और समझते हैं। जिन छंदोंमें मात्राओं की संख्या, लघु तथा गुरु स्वर, यति तथा गति के आधार पर पद रचना होती है, उन्हें मात्रिक छन्द कहते हैं। दूसरे शब्दों में- मात्रा की गणना के आधार पर रचित छन्द ‘मात्रिक छन्द’ कहलाता है। मात्रिक छंद के मुख्य तीन प्रकार के होते हैं। यह अर्धसममात्रिक
छंद होता है। यह सोरठा छंद के विपरीत होता है। इसमें पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएं तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। इसके चरण के अंत में एक लघु स्वर का होना जरूरी होता है। जैसे :- 1. “कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर। 2. श्रीगुरू चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि ! 3. रात-दिवस, पूनम-अमा, सुख-दुःख,
छाया-धूप। यह अर्धसममात्रिक छंद होता है। यह दोहा छंद के विपरीत होता है। इसमें पहले और तीसरे चरण में 11-11 मात्राएं तथा दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। यह दोहा का उल्टा होता है। विषम चरणों के अंत में एक गुरु स्वर और एक लघु मात्रा का होना जरूरी होता है। जैसे :- 1. “कहै जु पावै कौन , विद्या धन उद्दम बिना। 2.
जो सुमिरत सिधि होय, गननायक करिबर बदन। यह एक मात्रिक छंद होता है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 11 और 13 के क्रम से 24 मात्राएँ होती हैं। इसके अंत में दो गुरु और दो लघु वर्ण होते हैं।मात्रिक छन्द किसे कहते हैं
मात्रिक
छंद के प्रकार
1. सम मात्रिक छंद
2. अर्द्धसम मात्रिक छंद
3. विषम मात्रिक छंद
प्रमुख मात्रिक छंद
1. दोहा छंद
समय पाय तरुवर फरै, केतक सींचो नीर ।।”
बरनउं रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि !!
यह जीवन बहुरूपिया, बदले कितने रूप॥2. सोरठा छंद
ज्यों पंखे की पौन, बिना डुलाए ना मिलें।”
करहु अनुग्रह सोय, बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥3. रोला छंद
जैसे :-
1. “नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्य चन्द्र युग-मुकुट मेखला
रत्नाकर है।
नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारे मंडन है।
बंदी जन खग-वृन्द, शेष फन सिंहासन है।”
2. यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥
4. गीतिका छंद
यह मात्रिक छंद होता है। इसके चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 14 और 12 के क्रम से 26 मात्राएँ होती हैं। अंत में लघु और गुरु स्वर होता है।
जैसे :-
1.
“हे प्रभो आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये।
लीजिए हमको शरण में, हम सदाचारी बने।
ब्रह्मचारी, धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बनें”
5. हरिगीतिका छंद
यह मात्रिक छंद होता है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 16 और 12 के क्रम से 28 मात्राएँ होती हैं। इसके अंत में लघु तथा गुरु स्वर का प्रयोग अधिक प्रसिद्ध है।
जैसे :-
1. “मेरे इस जीवन की है तू, सरस साधना कविता।
मेरे तरु की तू कुसुमित , प्रिय कल्पना लतिका।
मधुमय मेरे जीवन की प्रिय,है तू कल कामिनी।
मेरे कुंज कुटीर द्वार की, कोमल चरण-गामिनी।”
6. उल्लाला छंद
यह मात्रिक छंद होता है। इसके प्रत्येक चरण में 15 और 13 के क्रम से 28 मात्राएँ होती है।
जैसे :-
1.
“करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेश की।
हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण-मूर्ति सर्वेश की।”
7. चौपाई छंद
यह मात्रिक छंद होता है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। चरण के अंत में गुरु या लघु स्वर नहीं होता है लेकिन दो गुरु और दो लघु स्वर हो सकते हैं।
जैसे :-
1. “इहि विधि राम सबहिं
समुझावा
गुरु पद पदुम हरषि सिर नावा।”
2. बंदउँ गुरु पद पदुम परागा ।
सुरुचि सुबास सरस अनुराग॥
अमिय मूरिमय चूरन चारू।
समन सकल भव रुज परिवारू॥
8. विषम छंद
इसमें पहले और तीसरे चरण में 12 तथा दूसरे और चौथे चरण में 7 मात्राएँ होती हैं। सम चरणों के अंत में जगण और तगण के आने से मिठास बढती है। यति को प्रत्येक चरण के अंत में रखा जाता है।
जैसे :-
1. “चम्पक हरवा अंग मिलि अधिक सुहाय।
जानि परै सिय हियरे, जब कुम्हिलाय।।”
9. छप्पय छंद
इस छंद में 6 चरण होते हैं। पहले चार चरण रोला छंद के होते हैं और अंत के दो चरण उल्लाला छंद के होते हैं। प्रथम चार चरणों में 24 मात्राएँ और बाद के दो चरणों में 26-26 या 28-28 मात्राएँ होती हैं।
जैसे :-
1. “नीलाम्बर
परिधान हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्य-चन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है।
नदिया प्रेम-प्रवाह, फूल -तो मंडन है।
बंदी जन खग-वृन्द, शेषफन सिंहासन है।
करते अभिषेक पयोद है, बलिहारी इस वेश की।
हे मातृभूमि! तू सत्य ही,सगुण मूर्ति सर्वेश की।।”
10. कुंडलियाँ छंद
कुंडलियाँ विषम मात्रिक छंद होता है। इसमें 6 चरण होते हैं। शुरू के 2 चरण दोहा और बाद के 4 चरण उल्लाला छंद के होते हैं। इस तरह प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं।
जैसे :-
1. “घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध।
बाहर का बक हंस है, हंस घरेलू गिद्ध
हंस घरेलू गिद्ध , उसे पूछे ना कोई।
जो बाहर का होई, समादर ब्याता सोई।
चित्तवृति यह दूर, कभी न किसी की होगी।
बाहर ही धक्के खायेगा , घर का जोगी।।”
2. कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम।
खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥
उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि
बिछावै॥
कह ‘गिरिधर कविराय’, मिलत है थोरे दमरी।
सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥
3. रत्नाकर सबके लिए, होता एक समान।
बुद्धिमान मोती चुने, सीप चुने नादान॥
सीप चुने नादान,अज्ञ मूंगे पर मरता।
जिसकी जैसी चाह,इकट्ठा वैसा करता।
‘ठकुरेला’ कविराय, सभी खुश इच्छित पाकर।
हैं मनुष्य के भेद, एक सा है रत्नाकर॥
11. दिगपाल छंद
इसके प्रत्येक चरण में 12-12 के विराम से 24 मात्राएँ होती हैं।
जैसे :-
हिमाद्रि
तुंग-श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती।
स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती।
अमर्त्य वीर पुत्र तुम, दृढ प्रतिज्ञ सो चलो।
प्रशस्त पुण्य-पंथ है, बढ़े चलो-बढ़े चलो।।”
12. आल्हा या वीर छंद
इसमें 16 -15 की यति से 31 मात्राएँ होती हैं।
13. सार छंद
इसे ललित पद भी कहा जाता हैं। सार छंद में 28 मात्राएँ होती हैं। इसमें 16-12 पर यति होती है और बाद में दो गुरु स्वर होते हैं।
14. ताटंक छंद
इसके प्रत्येक चरण में 16,14 की यति से 30 मात्राएँ होती हैं।
15. रूपमाला छंद
इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। अंत में गुरु तथा लघु स्वर होना चाहिए।
16. त्रिभंगी छंद
यह छंद 32 मात्राओं का होता है। 10वें, 8वें, 8वें, और 6वें पर यति होती है और अंत में गुरु स्वर होता है।
जरूर पढ़िए :
- संधि
- समास
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