बड़ी आंत का ऑपरेशन कैसे किया जाता है? - badee aant ka opareshan kaise kiya jaata hai?

गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, उदयपुर की गैस्ट्रोलॉजी टीम द्वारा बांसवाड़ा के रहने वाले 30 वर्षीय रोगी राजेश बंजारा की अल्सरेटिव कोलाइटिस बीमारी की सफल सर्जरी की गयी| ये सर्जरी प्रायः सिर्फ बड़े शहरोँ के कुछ ही सेंटर्स में उपलब्ध है| इस अत्यंत जटिल सफल इलाज करने वाली टीम में गैस्ट्रोलॉजिस्ट डॉ. पंकज गुप्ता, डॉ. धवल व्यास, गैस्ट्रोलॉजी सर्जन डॉ. कमल किशोर विश्नोई, आईसीयू से डॉ. संजय पालीवाल एवं टीम, एनेस्थीसिया से डॉ. चारू शर्मा, ओटी इंचार्ज हेमंत गर्ग, वार्ड इंचार्ज मंजू आदि का बखूबी योगदान रहा जिससे यह ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया।

गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, उदयपुर की गैस्ट्रोलॉजी टीम द्वारा बांसवाड़ा के रहने
अल्सरेटिव कोलाइटिस बड़ी आंत की एक आजीवन बीमारी है | इसमें बड़ी आंत की अंदरूनी परत में सूजन और जलन हो जाती है जिससे कई छोटे-छोटे छाले बनने लगते है | उन छालों और सूजन के कारण पेट-संबंधी परेशानियाँ होने लगती है जोकि पाचन तंत्र पर बुरा असर डालती है और सही समय पर इलाज न कराने पर खतरे का कारण भी बन सकती है| इस बीमारी में शरीर का प्रतिरक्षी तंत्र (immune system) असाधारण रूप से काम करने लगता है | बाहरी कीटाणुओं की बजाय वह बड़ी आंत के ऊपर ही आक्रमण करने लगता है जिससे बड़ी आंत में सूजन और जलन हो जाती है | यह बीमारी भारत में एक लाख लोगों में से 44 लोगों में पायी गयी है|
अल्सरेटिव कोलाइटिस के लक्षण अक्सर अचानक से प्रकट होने के बजाए समय के साथ-साथ दिखाई देते है | ये लक्षण बीमारी की गंभीरता के अनुसार बदल सकते है |इस बीमारी के कुछ लक्षण है – दस्त जिसमें खून और पस/मवाद ,पेट में दर्द और मरोड़ का एहसास मल में खून पाया जाना (blood in stool), मलाशय में दर्द (rectal pain) तुरंत मलोत्सर्ग करने की इच्छा (sudden urge to defecate),मलोत्सर्ग करने की इच्छा के बावजूद न कर पाना (inability to defecate despite urgency)वज़न का घटना, थकावट होना या बुखार आना, मुँह में छाले होना, बच्चों के बढ़ने में दिक्कतें आना (growth delays), बीमारी के 10 साल से अधिक होने पर बड़ी आंत में कैंसर की संभावना इत्यादि शामिल हैं|
ध्यान देने वाली बात यह है कि अल्सरेटिव कोलाइटिस के लक्षण आते जाते रहते है | एक बार लक्षणों से जूझने के बाद लम्बे समय का अंतराल आजाता है (remission period) जिसमें मरीज़ को कोई भी लक्षण नहीं होता | यह अंतराल कुछ महीनों का या सालों का भी हो सकता है परन्तु ये लक्षण वापस ज़रूर आते हैं| ऐसे में कई बार रोगी को भ्रम हो जाता है की वो ठीक है परन्तु ये सही नही है|

क्या था मसला?
रोगी ने बताया कि पिछले 15 वर्षों से वो इस गंभीर बीमारी से गुज़र रहा था एवं 3 वर्षों से रोगी गैस्ट्रोलोजिस्ट डॉ. पंकज गुप्ता से इलाज के लिए आ रहा है परन्तु बांसवाडा से आने जाने एवं इलाज के लिए पैसों का इंतजाम नही था|ऐसे में गीतांजली हॉस्पिटल में आयुष्मान भारत-महात्मा गांधी राजस्थान स्वास्थ्य बीमा योजना के अंतर्गत रोगी की सर्जरी की गयी| डॉ. पंकज ने बताया की रोगी को जब दवाइयों से फर्क नही पड़ा और आंत के फटने का भी डर था तथा रोगी की बीमारी को लम्बा समय हो चुका था एवं ऐसे में मलाशय और कोलोरेक्टल (मलनाली) कैंसर होने की संभावना बड़ जाती है | तथा कई बार दवाइयों के साइड इफ़ेक्ट भी देखे गए हैं जिसमे शुगर, हाई बी.पी, गुलोकोमा (कम दिखना) जैसी समस्याएँ आती हैं| उन्होंने ये भी बताया कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है, मेडिकल सहायता से इसके लक्षणों को कम किया जा सकता है और जीवन-शैली को बदला जा सकता है|
डॉ. कमल ने बताया की रोगी की जे-पाउच सर्जरी के साथ प्रोक्टोकोलेक्टॉमी सर्जरी (बड़ी आंत को हटाने की सबसे जटिल सर्जरी) की गयी जिसे आईपीएए भी कहा जाता है| इस सर्जरी में एक जे-पाउच का निर्माण किया गया तथा कोलन और मलाशय को हटाया गया और छोटी आंत का उपयोग किया जिसे इलियम के नाम से जाना जाता है, इस आंतरिक थैली की बनावट आमतौर पर जे (J) आकर की तरह होती है।

इसके अंतर्गत दो चरणों में सर्जरी की गयी:

1) पहले चरण में रोगी के पेट में से बड़ी आंत को सर्जरी के माध्यम से बाहर निकाल दिया गया एवं, गुदा और गुदा स्फिंकर मांसपेशियों को बरकरार रखा गया। इलियम (छोटी आंत का तीसरा भाग) को जे के आकार की थैली बनायी गयी एवं गुदा मार्ग (एनल केनल) के शीर्ष से जोड़ा गया।

2) दूसरे चरण में रोगी को सर्जरी करके एक महीने के लिए इलियोस्टॉमी पर रखा गया जिससे की जे पाउच को जल्दी हील किया जा सके| (इलोस्टोमी में रोगी के पेट में चीरा लगाकर पेट के ‎निचले दाहिने तरफ एक स्टोमा बनाया गया ताकि अपशिष्ट को एकत्रित ‎किया जा सके) इस स्टोमा को एक माह पश्चात हटाया जायेगा जिससे रोगी सामान्य लोगों की तरह मल निर्वाह कर पायेगा|

इस तरह से रोगी की सफलतापूर्वक सर्जरी की गयी एवं एक सप्ताह बाद छुट्टी प्रदान की गयी| आज रोगी एवं उसका परिवार बहुत खुश हैं| रोगी ने गीतांजली हॉस्पिटल में आयुष्मान भारत-महात्मा गांधी राजस्थान स्वास्थ्य बीमा योजना के अंतर्गत निःशुल्क उपचार होने पर आभार प्रकट किया|

गीतांजली हॉस्पिटल के सीईओ प्रतीम तम्बोली ने कहा कि गीतांजली हॉस्पिटल में गैस्ट्रोलॉजी से संबंधित सभी एडवांस तकनीकें एंडोस्कोपी यूनिट में उपलब्घ हैं तथा गीतांजली हॉस्पिटल पिछले 13 वर्षों से सतत रूप से हर प्रकार की उत्कृष्ट एवं विश्वस्तरीय चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध करा रहा है एवं जरूरतमंदों को स्वास्थ्य सेवाएं देता आया है |

हाल ही में मात्र 1 वर्षीय मंदसौर निवासी रोगी सौरभ कुमार (परिवर्तित नाम) को खाना ना खा पाने व फूले हुए पेट की परेशानी के चलते गीतांजली हॉस्पिटल में भर्ती किया गया। रोगी की माँ ने बताया कि बच्चा कुछ भी खा नही पा रहा था, कुछ भी खाते ही उल्टी कर देता था, व हर समय रोता रहता था। गीतांजली हॉस्पिटल में रोगी की सामान्य जांचे एक्स- रे, सोनोग्राफी के बाद बड़ी आंत में संकरापन पाया गया, रोगी का पीडियाट्रिक सर्जन टीम द्वारा सफल ऑपरेशन किया गया। इसमें व अन्य जटिल ऑपरेशन में पीडियाट्रिक सर्जन डॉ. अतुल मिश्रा के अलावा एच.ओ.डी. डॉ. देवेन्द्र सरीन, नवजात शिशु स्पेशलिस्ट डॉ. धीरज दिवाकर, कामना व ओ.टी. स्टाफ, एन.आई.सी.यू. इंचार्ज अनिल व टीम के अनवरत प्रयासों से रोगियों का सफलतापूर्वक इलाज कर उन्हें स्वस्थ जीवन प्रदान किया गया।

   
   
     

डॉ. अतुल ने बताया कि आंत में संकरापन होने की स्तिथि नवजातों के समय से पहले पैदा होने के कारण हो जाती है व एन.ई.सी.( नेक्रोटाइसिंग एंट्रोकोलाइटिस) नामक स्थिति के कारण होती है। यह बीमारी (संकरापन) सामान्यतया बहुत ही कम देखने को मिलती है, जो कि इस रोगी में पाई गयी। रोगी ऑपरेशन होने के पश्चात् अब स्वस्थ है, खाना खा पी रहा है और हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी गयी है।

क्या होती नेक्रोटाइजिंग एंट्रोकोलाइटिस (एन.ई.सी) बीमारी:
नेक्रोटाइजिंग एंट्रोकोलाइटिस (एन.ई.सी) एक विनाशकारी बीमारी है जो ज्यादातर समय से पहले पैदा हुए शिशुओं की आंत को प्रभावित करती है। आंत की दीवार पर बैक्टीरिया द्वारा हमला किया जाता है, जो स्थानीय संक्रमण और सूजन का कारण बनता है जो अंततः आंत की दीवार को नष्ट कर सकता है। जिससे कि आंत में छेद हो सकता है या कभी कभार संकरापन आ सकता है। यदि इस बीमारी का समय रहते इलाज ना किया जाये तो बच्चे की जान जाने का खतरा बढ़ जाता है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि गीतांजली हॉस्पिटल में नवजात शिशु इकाई (एन.आई.सी.यू), शिशु गहन चिकित्सा इकाई (पी.आई.सी.यू) वार्ड में सभी अत्याधुनिक सुविधाओं से लेस है। गीतांजली मेडिसिटी पिछले 13 वर्षों से सतत् रूप से मल्टी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के रूप में परिपक्व होकर चंहुमुखी उत्कृष्ट चिकित्सा सेंटर बन चुका है। यहाँ एक ही छत के नीचे जटिल से जटिल ऑपरेशन एवं प्रक्रियाएं निरंतर रूप से कुशल डॉक्टर्स द्वारा की जा रही हैं।

पेट की आंत का ऑपरेशन कैसे होता है?

पहले यह ऑपरेशन चीरा लगाकर करना पड़ता था लेकिन दूरबीन पद्धति से सर्जरी टीम ने आहार नली को छोटे-छोटे छेद कर कैंसर सहित छाती व पेट से निकाला गया। इसके बाद पेट की आंत से नई आहारनली बनाई गई। डॉ. अरविंद घनघोरिया ने बताया कि पहली बार प्रदेश में दूरबीन पद्धति से यह ऑपरेशन किया गया।

बड़ी आंत की जांच कैसे की जाती है?

इसकी जांच क्लोनोस्कोपी से की जा सकती है। इसमें शौच के रास्ते से बड़ी आंत में दूरबीन को दाखिल कर बीमारी की पहचान की जाती है। हैरानी की बात यह है कि आईबीडी के लक्षण बवासीर, आंतों की टीबी से मिलते-जुलते होते हैं। इससे पहचान और इलाज कठिन होता है।

आंतों में कैंसर कैसे होता है?

अधिकांश कोलोरेक्टल कैंसर छोटे पॉलीप्स से शुरू होते हैं। ये पॉलिप्स कोशिकाओं का एक समूह होते हैं। समय के साथ, इनमें से कुछ पॉलीप्स कैंसर में विकसित हो जाते हैं। यह कैंसर पहले बड़ी आंत की दीवार में, फिर आसपास के लिंफ नोड्स में और फिर पूरे शरीर में फैलता है।

ऑपरेशन कैसे किया जाता है?

ऑपरेशन के वक्त आप एनेस्थीसिया के प्रभाव में होते हैं और सो रहे होते हैं। लेकिन सर्जरी खत्म होते ही आप जाग जाते हैं। सर्जरी के बाद ऑपरेशन वाली जगह पर दर्द होता है। यह दर्द सर्जरी की परिमाण और चीरों की लंबाई पर निर्भर करता है।

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