बोन चाइना नहीं अब वेजिटेरियन कप में पीएं चाय
खास क्राकरी के बने हुए सफेद पतले तथा कुशल कलाकारी से बने बोन फ्री कप का क्रेज बढ़ा रहा है।
जागरण संवाददाता : खास क्राकरी के बने हुए सफेद, पतले तथा कुशल कलाकारी से बने बोन फ्री कप का चलन शहर में तेजी से बढ़ रहा है। इस उत्पाद के खास होने की वजह इसका हड्डी रहित होना है। इसके शाकाहारी होने की वजह से लोगों को यह काफी पसंद आ रहा है। लोग बोन चाइना के उत्पाद छोड़ इसे अपना रहे हैं।
प्लास्टिको वर्ल्ड के थोक विक्रेता राजकुमार जैन कहते हैं कि लोग आजकल जागरूक हो रहे हैं। इसलिए बोन फ्री क्रॉकरी का चलन बढ़ रहा है। वह कहते हैं कि बोन चाइना कप में हड्डी का प्रयोग होता है। इसमें पचास फीसद मात्रा हड्डी से बने पाउडर की होती है। बोन फ्री कप एक खास तरह की पोर्सलीन से बनता है, जिसमें हड्डियों का प्रयोग नहीं किया जाता है। कुछ समय से बाजार में बोन फ्री कप आ रहे हैं। बाजार में इसे शाकाहारी कप भी कहा जाता है।
आनंद स्टील के विक्रेता कहते हैं कि बोन चाइना कप को लोग आम तौर पर चीनी मिंट्टी के कप कहते हैं। लोगों को मालूम नहीं होता कि ऐसे कप जानवर की हड्डियों से बने हुए होते हैं। जिन्हें मालूम भी होता है वे इसकी खूबसूरती देख इन्हें खरीद लेते हैं। लेकिन अब बोन फ्री कप आ चुके हैं, जो बिल्कुल बोन चाइना की तरह ही दिखते हैं। चूंकि इसकी कीमत भी लगभग बराबर ही है, इसलिए लोग इसे खरीदना पसंद कर रहे हैं। वह कहते हैं कि आने वाले समय में इसकी बिक्री में और तेजी आने की उम्मीद है।
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क्या है बोन चाइना
बोन चाइना के उत्पाद बनाने के लिए हड्डियों को उबाल कर धूप में सुखाया जाता है, जिसके बाद उसे लगभग 1000 डिग्री तापमान पर गर्म कर उसका पाउडर बनाकर उसमें पानी तथा अन्य रासायनिक पदार्थ मिलाकर कप, प्लेट तथा अन्य क्रॉकरी बनाए जाते हैं। इसमें हड्डी पाउडर पचास फीसद, चीनी मिंट्टी 25 फीसद तथा बाकी के 25 फीसद में चाइना स्टोन तथा रासायनिक पदार्थ होता है।
बोन चाइना की शुरुआत इंग्लैंड से हुई है। दरअसल, इंग्लैंड में चीन से आयात हुए चीनी मिट्टी के बर्तन बनाकर बेचे जाते थे। लेकिन चीन से मिट्टी को इंग्लैड ले जाने में बहुत अधिक खर्च करना पड़ता था। इसका विकल्प तलाशते हुए इंग्लैंड के थॉमस फ्रे ने 1748 में हड्डियों को राख बनाकर उससे बर्तन बनाए जो चीनी मिट्टी जैसे मुलायम भी थे और सुंदर भी। इसके बाद इंग्लैंड में खूब सारी कंपनियों ने कत्लखानों से हड्डिया लाकर उनसे प्लेट बनानी शुरू कर दीं। कई सालों तक यह तकनीक सिर्फ इंग्लैंड के पास थी लेकिन उसके बाद यह जापान, चीन और पूरी दुनिया में फैल गया। भारत में राजस्थान बोन चाइना के बर्तनों का गढ़ बन चुका है। जहां सालाना लगभग 6000 टन हड्डियों से बनाए बर्तन बनते हैं। कीमत
छह कप का सेट- 115-400 रुपये
कप-सौसर सेट- 300-600 रुपये
मिल्क मग- 50-100 रुपये
डिनर सेट - 1500- 2500 रुपये
Edited By: Jagran
ऐसे बर्तन आज कल हर घर में देखे जा सकते है, इस तरह की खास क्राकरी जो सफेद, पतली और अच्छी कलाकारी से बनाई जाती है, बोन चाइना कहलाती है। इस पर लिखे शब्द बोन का वास्तव में सम्बंध बोन (हड्डी) से ही है। इसका मतलब यह है कि आप किसी गाय या बैल की हड्डियों की सहायता से खा-पी रही है। बोन चाइना एक खास तरीके का पॉर्सिलेन है जिसे ब्रिटेन में विकसित किया गया और इस उत्पाद का बनाने में बैल की हड्डी का प्रयोग मुख्य तौर पर किया जाता है। इसके प्रयोग से सफेदी और पारदर्शिता मिलती है।
बोन चाइना इसलिए महंगा होती है क्योंकि इसके उत्पादन के लिए सैकड़ों टन हड्डियों की जरुरत होती है, जिन्हें कसाईखानों से जुटाया जाता है। इसके बाद इन्हें उबाला जाता है, साफ किया जाता है और खुले में जलाकर इसकी राख प्राप्त की जाती है। बिना इस राख के चाइना कभी भी बोन चाइना नहीं कहलाता है। जानवरों की हड्डी से चिपका हुआ मांस और चिपचिपापन अलग कर दिया जाता है। इस चरण में प्राप्त चिपचिपे गोंद को अन्य इस्तेमाल के लिए सुरक्षित रख लिया जाता है। शेष बची हुई हड्डी को १००० सेल्सियस तापमान पर गर्म किया जाता है, जिससे इसमें उपस्थित सारा कार्बनिक पदार्थ जल जाता है। इसके बाद इसमें पानी और अन्य आवश्यक पदार्थ मिलाकर कप, प्लेट और अन्य क्राकरी बना ली जाती है और गर्म किया जाता है। इन तरह बोन चाइना अस्तित्व में आता है। ५० प्रतिशत हड्डियों की राख २६ प्रतिशत चीनी मिट्टी और बाकी चाइना स्टोन। खास बात यह है कि बोन चाइना जितना ज्यादा महंगा होगा, उसमें हड्डियों की राख की मात्रा भी उतनी ही अधिक होगी।
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या शाकाहारी लोगों को बोन चाइना का इस्तेमाल करना चाहिए? या फिर सिर्फ शाकाहारी ही क्यों, क्या किसी को भी बोन चाइना का इस्तेमाल करना चाहिये। लोग इस मामले में कुछ तर्क देते है। जानवरों को उनकी हड्डियों के लिए नहीं मारा जाता, हड्डियां तो उनको मारने के बाद प्राप्त हुआ एक उप-उत्पाद है। लेकिन भारत के मामले में यह कुछ अलग है। भारत में भैंस और गाय को उनके मांस के लिए नहीं मारा जाता क्योंकि उनकी मांस खाने वालों की संख्या काफी कम है। उन्हें दरअसल उनकी चमड़ी और हड्डियों के मारा जाता है।
भारत में दुनिया की सबसे बड़ी चमड़ी मंडी है और यहां ज्यादातर गाय के चमड़े का ही प्रयोग किया जाता है। हम जानवरों को उनकी हड्डियों के लिए भी मारते है। देखा जाए तो वर्क बनाने का पूरा उद्योग ही गाय को सिर्फ उसकी आंत के लिए मौत के घाट उतार देता है। आप जनवरों को नहीं मारते, लेकिन आप या आपका परिवार बोन चाइना खरीदने के साथ ही उन हत्याओं का साझीदार हो जाता है, क्योंकि बिना मांग के उत्पादन अपने आप ही खत्म हो जायेगा।
चाइना सैट की परम्परा बहुत पुरानी है और जानवर लम्बे समय से मौत के घाट उतारे जा रहे हैं। यह सच है, लेकिन आप इस बुरे काम को रोक सकते हैं। इसके लिए सिर्फ आपको यह काम करना है कि आप बोन चाइना की मांग करना बंद कर दें।
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वन्देमातरम ! —