बालक के विकास को प्रभावित करने वाले कारकbalak ke vikas ko prabhavit karne wale karak;बालक का विकास किसी भी राष्ट्र के लिए निवेश है। यदि उसका विकास समुचित ढंग से नही होता तो इससे बालक तो प्रभावित होता ही हैं, राष्ट्र भी कमजोर पड़ता जाता है। विकास के उद्देश्य की व्याख्या करते हुए स्वामी विवेकानंद ने कहा हैं," नैतिक बनो, वीर बनो, संपूर्ण ह्रदय वाले नैतिक तथा विकट परिस्थितियों से जुझने वाले मनुष्य बनो। धर्म तत्वों से उलझकर मानसिक कठिनाइयों मत पड़ो। कायर ही पाप करते हैं। वीर कभी पाप नही करते, मन से भी नहीं" अतः विकास की प्रक्रिया का उद्देश्य बालक को वीर, संकल्प-शक्तिवान, दृढ़-प्रतिज्ञ बनाना है। इसकी तैयारी बालक को नही अपितु उनकी माँ की करनी पड़ती है। बालक के विकास को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-- Show 1. बुद्धि बुद्धि का बालक के विकास पर अधिक एवं महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। यदि बालक बुद्धिमान है तो उसमे नवीन क्रियाओं को सीखने में तत्परता दिखाई देती हैं और उसमे परिपक्वता शीघ्र आती है। इसके विपरीत मंद बुद्धि बालकों का शारीरिक विकास भले ही हो जाये, लेकिन उसकी सामाजिक सांवेगिक, नैतिक, मानसिक विकास गति बहुत धीमी रहती हैं। टर्मन ने बालक के पहली बार चलने तथा काम करने की अवस्था का अध्ययन किया। 13वें मास में चलने वाले प्रखर, बुद्धि, 14वें मास में चलने वाले सामान्य, 22वें मास में चलने वाले मन्दबुद्धि और 23वें मास में चलने वाले मूढ़ बालक पाये गये। इसी प्रकार बोलने के अध्ययन में क्रमशः 11, 16, 34, 51 मास में बोलने वाले बालक इसी क्रम में प्रखर बुद्धि, सामान्य, मंद एवं मूढ़ पाये गये। 2. यौन यौन का बालक के विकास मे महत्वपूर्ण योग होता है। इसका प्रभाव बालक के शारिरिक तथा मानसिक विकास पर पड़ता है। जन्म के समय लड़के, लड़कियों से आकार में बड़े होते हैं किन्तु लड़कियों की अभिवृद्धि तीव्र गति से होती है। यौन-परिपक्वता लड़कियों में शीघ्र आती है एवं वे अपना पूर्ण आकार लड़को की अपेक्षा जल्दी ग्रहण कर लेती है। लड़कों का मानसिक विकास लड़कियों की अपेक्षा देर से होता है। 3. ग्रन्थियों का स्त्राव ग्रन्थियों के अध्ययन ने विकास के क्षेत्र में नवीन परिणाम प्रस्तुत किये हैं। बालक के विकास पर ग्रन्थियों के अन्तःस्त्राव का प्रभाव पड़ता है। यह प्रभाव जन्मपूर्व तथा जन्म-पश्चात दोनों दशाओं मे होता है। उदाहरणार्थ, गले में थायराइड ग्रन्थि के पास पैरा-थायराइड ग्रन्थियों द्वारा रक्त में कैल्शियम का परिभ्रमण होता हैं। इसके दोष से मांसपेशियों में अत्यधिक संवेदनशीलता आती है। मानसिक तथा शारीरिक वृद्धि के लिए थायराॅक्सिन जो कि थायरॉइड ग्रन्थियों से निकलता हैं, आवश्यक होता है। इसकी कमी से बालक मूढ़ हो जाता है। इसी प्रकार छाती में स्थित थायमस ग्रन्थि तथा मस्तिष्क के आधार पर स्थित पीनियल ग्रन्थियों से होने वाले स्त्राव यौन विकास करते हैं। इसमें दोष आने से बालक में यौन परिपक्वता शीघ्र आ जाती हैं। 4. पोषण बालक के विकास पर पोषण का पूरा-पूरा प्रभाव पड़ता है। बालक के लिए वह आहार ही पर्याप्त नही है अपितु उस आहार मे निहित संतुलित पोषण तत्वों का होना भी अनिवार्य है। विटामिन, प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, लवण, चीनी आदि ऐसे तत्व हैं जो शरीर तथा मस्तिष्क दोनो के सन्तुलित विकास में योग देते है। पोषण तत्वों के अभाव में बालक का विकास सन्तुलित ढंग से नही होता हैं। 5. शुद्ध वायु एवं प्रकाश जीवन के आरम्भिक दिनों में बालक को शुद्ध वायु तथा प्रकाश की नितान्त आवश्यकता होती है। वायु तथा प्रकाश बालक के विकास के लिए अनिवार्य तत्व हैं। इनके अभाव से शरीर अक्षम हो जाता है। 6. रोग एवं चोट बालक के सिर में चोट लगने से उसका मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है। यदि माता गर्भकाल में धूम्रपान तथा औषधि के रूप में टाॅक्सिन का सेवन करती रही है तो भी उसका प्रभाव गर्भ में स्थित बालक पर पड़ता है। बालक यदि रोगी हो तो उसके भावी विकास पर दूषित प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। 7. प्रजाति प्रजाति तत्वों का प्रभाव बालक के विकास पर देखा गया है। यद्यपि हरलाॅक ने इस मत की पुष्टि नही की किन्तु जुँग प्रजातीय प्रभाव को बालक के विकास मे महत्वपूर्ण मानते हैं। भू-मध्यसागरीय तट पर रहने वाले बालकों का शारीरिक विकास शेष योरोप के बालकों की अपेक्षा शीघ्र होता है। नीग्रो बच्चे, श्वेत बच्चों की अपेक्षा 80% परिपक्वता शीघ्र प्राप्त करते हैं। 8. संस्कृति डेनिस ने बालकों के विकास पर संस्कृति के प्रभाव का अध्ययन किया। उसने अमेरिका के रेड इण्डियन बच्चों तथा शेष सामान्य अमेरिकी बच्चों का अध्ययन किया। उसने यह परिणाम निकाला कि सांस्कृतिक भिन्नता होता हुए भी रैड इण्डियन बच्चों की सामाजिक तथा गत्यात्मक अनुक्रियायें समान रही। शर्म, भय आदि का विकास समान आयु स्तर पर हुआ। उसने 40 श्वेत बच्चों के इतिहास का अध्ययन करके तुलना भी की। डेनिस का निष्कर्ष यह था," शैशव काल की विशेषतायें सार्वभौम हैं एवं संस्कृति उनमें भिन्नता उत्पन्न करती है।" 8. परिवार में स्थान बालक का विकास इस बात पर भी निर्भर करता है कि परिवार में उसकी क्या स्थिति हैं? प्रायः देखा गया है कि पहला बालक अथवा अन्तिम बालक विशेष लाड़ प्यार से पाला जाता है। सीखने की जहाँ तक बात है, छोटे बच्चे अपने बड़े भाई-बहनों की अपेक्षा जल्दी सीखते हैं। लेखक की बड़ी लड़की ने साइकिल चलाना आठ दिन मे सीखा और जब साइकिल घर में आ गई तो छोटी लड़की ने एक ही दिन में साइकिल चलाना सीख लिया। इस प्रकार हम देखते हैं कि विकास तथा अभिद्धि को प्रभावित करने में इन सभी प्रतिकारकों का थोड़ा बहुत योग रहता है और कोई भी व्यक्ति इससे अछूता नही रह सकता। यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी बालक के सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक क्या क्या है?सामाजिक विकास. स्वास्थ्य. बाल स्वास्थ्य. बाल्यावस्था: सामाजिक, सांवेगिक एवं व्यक्तित्व विकास. पूर्व बाल्यावस्था. सामाजिक विकास. बालक के सामाजिक विकास में सबसे महत्वपूर्ण कारक कौन सा है?परिवार: बच्चे के समाजीकरण के लिए परिवार सबसे महत्वपूर्ण प्राथमिक एजेंसी है।
बालक के विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं?बाल विकास को प्रभावित करने वाले कारक या बाल विकास पर पड़ने वाले.... वंशानुक्रम. वातावरण. बुद्धि. पौष्टिक आहार. स्वास्थ्य. खेलकूद एवं व्यायाम. भयंकर चोट व रोग. सामाजिक कारक कौन कौन से हैं?सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारण/कारक. (1) प्राकृतिक या भौगोलिक कारक – ... . (2) जैविकीय कारक – ... . (3) जनसंख्यात्मक कारक – ... . (4) आर्थिक कारक – ... . (5) प्रौद्योगिक कारक – ... . (6) सांस्कृतिक कारक – ... . (7) मनोवैज्ञानिक कारक – ... . (8) औद्योगीकरण एवं नगरीकरण –. |