भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत कब हुई थी - bhaarat chhodo aandolan kee shuruaat kab huee thee

08 अगस्त 1942 के दिन महात्मा गांधी ने “भारत छोड़ो आंदोलन” की शुरुआत की थी. जो देखते ही देखते पूरे देश में फैल गया. हर गांव से लेकर हर शहर तक बड़ी बड़ी रैलियां निकलने लगीं. आज इस आंदोलन की शुरुआत को 80 साल पूरे हो गए. इसने ब्रिटिश हुकूमत को हिलाकर रख दिया था. इसका तत्‍कालीन ब्रिटिश सरकार पर बहुत ज्‍यादा असर हुआ. उसने गांधीजी समेत सभी बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया लेकिन इसके बाद भी इस आंदोलन को खत्म करने में पूरी ब्रिटिश सरकार को एक साल से ज्‍यादा का समय लग गया.

यह भारत की आजादी में सबसे महत्‍वपूर्ण आंदोलन था. दूसरे विश्‍व युद्ध में उलझे इंग्‍लैंड को भारत में ऐसे आंदोलन की उम्‍मीद नहीं थी. सरकारी आंकड़ों के अनुसार इसमें तकरीबन 900 से ज्‍यादा लोग मारे गए जबकि 60 हजार से ज्‍यादा गिरफ्तार किए गए.

इस आंदोलन से जुड़ी 10 खास बातें जो इस पूरे मूवमेंट के बारे में बताती हैं.

भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत कब हुई थी - bhaarat chhodo aandolan kee shuruaat kab huee thee
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान पूरे देश में बड़ी बड़ी रैलियां निकलती थीं. लोगों ने कालेज और नौकरियां छोड़ दीं. देश पूरी तरह से अंग्रेज शासन के खिलाफ हो गया. (फाइल फोटो)

1. महात्मा गांधी ने मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान या अगस्त क्रांति मैदान में अपना ऐतिहासिक भाषण दिया था. उनके साथ तत्कालीन कांग्रेस के कई बड़े नेता मौजूद थे.

2. मुंबई में हुई रैली के दौरान ही महात्मा गांधी ने अपने भाषण में ‘करो या मरो’ का नारा दिया था.

3. इस रैली के बाद ब्रिटिश सरकार ने कई बड़े नेता जैसे महात्मा गांधी, अब्दुल कलाम आजाद, जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल को गिरफ्तार कर लिया गया था.

4. आंदोलन छेड़ने के बाद ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस पर जमकर कहर ढहाया. नेताओं को बिना ट्रायल गिरफ्तार किया गया और देशभर में कांग्रेस के ऑफिसों पर छापे पड़े. उनके फंड सीज़ कर दिए गए.

5. आंदोलन का पहला भाग काफी शांतिपूर्ण रहा. लोगों ने शांति के साथ प्रदर्शन कर अपना विरोध जताया. ऐसा प्रदर्शन महात्मा गांधी के रिहा होने तक चला.

6. आंदोलन का दूसरा हिस्सा अचानक से हिंसक हो गया. ब्रिटिश सरकार के छापेमारी से प्रदर्शनकारी हिसंक हो गए. उन्होंने पोस्ट ऑफिस, सरकारी बिल्डिंग और रेलवे स्टेशनों को निशाना बनाना शुरू किया.

7. इस आंदोलन के दौरान वायसराय काउंसिल ऑफ मुस्लिम्स, कम्युनिस्ट पार्टी और अमेरिकी समर्थकों ने ब्रिटिश सरकार का साथ दिया.

8. सभी प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी के बाद AICC (ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी) के सेशन को अरुणा आसफ अली ने चलाया. पुलिस और सरकार की कई चेतावनियों के बाद भी मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी जमा हुए.

9. अरुणा आसफ अली ने इस भारी भीड़ के सामने पहली बार भारत का झंडा फहराया. जो आंदोलन के लिए एक प्रतीक साबित हुआ.

10. आंदोलन के आखिरी फेज़ यानि सितंबर 1942 में प्रदर्शनकारियों ने मिलकर मध्य प्रदेश और मुंबई में सरकारी स्थानों पर जमकर बमबाजी की.

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क्रिप्स मिशन के वापस लौटने के उपरांत, गांधीजी ने एक प्रस्ताव तैयार किया जिसमें अंग्रेजों से तुरन्त भारत छोड़ने तथा जापानी आक्रमण होने पर भारतीयों से अहिंसक असहयोग का आह्वान किया गया था। कांग्रेस कार्यसमिति ने वर्धा की अपनी बैठक (14 जुलाई 1942) में संघर्ष के गांधीवादी प्रस्ताव को अपनी स्वीकृति दे दी।

भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत कब हुई थी - bhaarat chhodo aandolan kee shuruaat kab huee thee

अगस्त 1942 में संपूर्ण भारत में गांधी द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई। ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध 1857 ई. के पश्चात् देश की आजादी के लिये चलाए जाने वाले सभी आंदोलनों में 1942 ई. का भारत छोड़ो आंदोलन सबसे विशाल और सबसे तीव्र आंदोलन था। इस आंदोलन ने जहाँ एक ओर ब्रिटिश सरकार की नींव पूरी तरह हिला दी वहीं दूसरी ओर जनसामान्य को भी यह बता दिया कि अब स्वतंत्रता दूर नहीं है।

14 जुलाई, 1942 को वर्धा में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई, जिसमें भारत छोड़ो आंदोलन पर एक प्रस्ताव पारित हुआ। इससे पूर्व गांधीजी ने भारत छोड़ो प्रस्ताव के विरोधियों को चुनौती देते हुए कहा था कि “यदि संघर्ष का उनका प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया जाता तो मैं देश की बालू से ही कांग्रेस से बड़ा आंदोलन खड़ा कर दूंगा।"


भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत एवं विस्तार

  • 8 अगस्त, 1942 को बंबई के ऐतिहासिक ग्वालिया टैंक मैदान में अखिल भारतीय कांग्रेस की वार्षिक बैठक हुई जिसकी अध्यक्षता मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने की। इस बैठक में वर्धा में प्रस्तावित भारत छोड़ो प्रस्ताव को कुछ संशोधनों के साथ स्वीकार कर लिया गया। इसी सम्मेलन में गांधीजी ने अपने भाषण में कहा, "मैं आपको एक मंत्र देता हूँ- 'करो या मरो' (Do or Die)"। जिसका अर्थ था भारत की जनता भारत को आजाद कराए या उसकी कोशिश में अपनी जान दे दे।
  • इसकी प्रतिक्रिया में ब्रिटिश सरकार द्वारा 9 अगस्त, 1942 की सुबह ऑपरेशन ज़ीरो ऑवर के तहत कॉन्ग्रेस के सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया और कांग्रेस को अवैधानिक संस्था घोषित कर इसकी संपत्ति को जब्त कर लिया गया।
  • गांधीजी और सरोजिनी नायडू को गिरफ्तार कर आगा खाँ पैलेस में रखा गया। जवाहरलाल नेहरू, गोविंद वल्लभ पंत, आचार्य कृपलानी, डॉ. सैयद महमूद, डॉ. प्रफुल्लचंद्र घोष, डॉ. पट्टाभि सीतारमैया को अहमदनगर में कैद कर लिया गया।
  • राजेंद्र प्रसाद को पटना में नज़रबंद किया गया और जय प्रकाश नारायण को गिरफ्तार कर हज़ारीबाग जेल में रखा गया जहाँ दीवार को फाँदकर वे फरार हो गए तथा अन्य आंदोलनकारियों को संगठित कर आज़ाद दस्ता का गठन किया।
  • ब्रिटिश सरकार की कार्यवाहियों की प्रतिक्रिया में पूरे देश में व्यापक तौर पर हिंसा एवं विरोध प्रदर्शन हुए। सार्वजनिक संपत्ति, यथा- रेल, डाक एवं तार को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुँचाया गया।
  • आंदोलन के दौरान देश के कई इलाकों में ब्रिटिश शासन समाप्त हो गया और समानांतर सरकार स्थापित हुई।
  • बलिया में चित्तू पांडेय के नेतृत्व में पहली समानांतर सरकार का गठन हुआ।
  • वाई.पी. चह्वाण, नाना पाटिल के नेतृत्व में सर्वाधिक दीर्घजीवी समानांतर सरकार का गठन सतारा में हुआ जो 1945 ई. तक कार्यरत रही।
  • बंगाल के मिदनापुर जिले के तामलुक में दिसंबर 1942 में जातीय सरकार का गठन हुआ जो सितंबर 1944 तक चली।
  • भारत छोड़ो आंदोलन अपने पूर्ववर्ती सविनय अवज्ञा, असहयोग, व्यक्तिगत सत्याग्रह आदि की तुलना में अधिक स्वतःस्फूर्त एवं उग्र था।
  • आंदोलन के दौरान कई नेताओं ने भूमिगत रहकर इस आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया। उनमें जय प्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया, अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी, बीजू पटनायक आदि प्रमुख थे।
  • बंबई में उषा मेहता, राममनोहर लोहिया, बी.एस. खादर इत्यादि नेताओं ने कई महीनों तक कॉन्ग्रेस रेडियो का प्रसारण किया।


भारत छोड़ो आंदोलन के कारण

भारत छोड़ो आंदोलन औपनिवेशिक शासन के शोषण के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया थी जिसे द्वितीय विश्वयुद्धजनित परिस्थितियों ने और अधिक तीव्र कर दिया।

युद्ध के दौरान जापान द्वारा ब्रिटेन की लगातार पराजय के कारण भारतीयों के ऊपर जापानियों का नियंत्रण होने का खतरा बन आया।

अगस्त प्रस्ताव और क्रिप्स मिशन की असफलता ने यह तय कर दिया था कि अंग्रेज़ युद्ध के दौरान या बाद कोई भी रियायत देने को तैयार नहीं हैं।

युद्ध के समय आर्थिक दशाएँ पहले से अधिक प्रतिकूल हो गईं, खाद्यान्न संकट एवं महँगाई ने जन-असंतोष में काफी वृद्धि कर दिया।

1930 ई. के सविनय अवज्ञा आंदोलन के बाद कोई व्यापक आंदोलन नहीं चला, अतः जनता के पास संघर्ष के लिये पर्याप्त ऊर्जा व उत्साह था।

  1. ब्रिटिश सरकार की दोषपूर्ण नीति- सितम्बर, 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया। भारत के वायसराय लार्ड लिनलिथगो ने भारतीय नेताओं से सलाह लिए बिना ही भारत की ओर से जर्मनी के विरूद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। भारतीय नेताओं ने वायसराय के इस कार्य का घोर विरोध किया। कांग्रेसी नेताओं ने घोषित किया कि जब तक भारत को पूर्ण स्वतंत्रता का आश्वासन नहीं दिया जाता, तब तक कांग्रेस भारतीय जनता को ब्रिटिश सरकार से पूर्ण सहयोग करने की सलाह नहीं दे सकती। परंतु जब सरकार ने इस विषय में कोई निर्णय नहीं लिया तो ब्रिटिश सरकार के रवैये के विरूद्ध 8 प्रांतों में कांग्रेसी मंत्रिमंडलों ने अपना त्यागपत्र दे दिया।
  2. अगस्त प्रस्तावों से निराशा- 8 अगस्त, 1940 को भारत के वायसराय लार्ड लिनलिथगो ने कांग्रेस से परामर्श किए बिना कछ प्रस्ताव किए जिन्हें अगस्त प्रस्ताव कहा जाता है। परंतु इन प्रस्तावों से महात्मा गाँधी संतुष्ट नहीं थे। गाँधीजी की यह माँग थी कि भारत में तत्काल अस्थायी राष्ट्रीय सरकार स्थापित कर दी जाए परंतु अगस्त प्रस्तावों में इसका उल्लेख नहीं किया गया था। अतः महात्मा गाँधी ने अगस्त प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया और व्यक्तिगत सत्याग्रह की अनुमति दे दी। लगभग 25 हजार व्यक्तियों को जेलों में बंद कर दिया गया। इस प्रकार गाँधीजी तथा सरकार के बीच मनमुटाव बढ़ता गया।
  3. क्रिप्स-मिशन की असफलता- 30 मार्च, 1942 ई. को सर स्टेफोर्ड क्रिप्स ने यह संकेत दिया कि यदि यह बातचीत असफल हो गई तो वह आगे और कोई बातचीत नहीं करेंगे। चूँकि क्रिप्स योजना अपर्याप्त थी, अत: भारत के सभी दलों ने इसे अस्वीकार कर दिया। क्रिप्स ने अपनी असफलता की जिम्मेदारी कांग्रेस पर डाली। भारतीयों को यह विश्वास हो गया कि यह योजना अमरीका और चीन के दबाव के कारण उत्पन्न हुई थी और चर्चिल का भारतीयों को वास्तविक शक्ति देने का कोई इरादा नहीं है। मौलाना आजाद ने लिखा था, “क्रिप्स और भारतीय नेताओं में जो लम्बी बातचीत चली थी, वह संसार को यह सिद्ध करने के लिए थी कि कांग्रेस भारत की सच्ची प्रतिनिधि संस्था नहीं है और भारतवासियों की फूट ही वास्तविक कारण है, जिससे अंग्रेज इनको कोई वास्तविक शक्ति देने में असमर्थ हैं।" इन सब बातों से जहाँ क्रिप्स का भारत में अपयश फैला, वहाँ लोगों में निराशा भी फैल गई।
  4. जापानियों को नाराज करने की भावना- कांग्रेस जापानियों को नाराज करने को तैयार नहीं थी। जापानी आक्रमण का भय भी दिन-दना रात चौगुना बढ़ता जा रहा था और कांग्रेस ने समझ लिया कि उसे अंग्रेजों का साथ देकर जापानियों को नाराज नहीं करना चाहिए।
  5. बर्मा के शरणार्थियों की करूण कहानी- बर्मा से जो भारतीय शरणार्थी भारत आ रहे थे, उन्होंने श्री अणे को, जो वायसराय की कार्यकारिणी के सदस्य थे और बाहर रहने वाले भारतीयों की देखभाल करने वाले विभाग के मुखिया थे, अपने दु:ख की जो करूण कहानी सुनाई वह बड़ी दु:खपूर्ण थी। पंडित हृदयनाथ कुंजरू ने, जो अणे के साथ ही थे, एक वक्तव्य में कहा कि भारतीय शरणार्थियों से ऐसा अपमानजनक व्यवहार किया गया, जैसे वे किसी घटिया जाति से सम्बन्धित हों। भारतीय शरणार्थियों के साथ किए गए भेदभावपूर्ण व्यवहार से गाँधीजी को प्रबल आघात पहुँचा।
  6. पूर्वी बंगाल में भय और आतंक का वातावरण- पूर्वी बंगाल में भय और आतंक का राज्य था। अंग्रेजों ने वहाँ सैनिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बहुत-सी भूमि पर अधिकार कर लिया था। इसके अतिरिक्त उन्होंने वहाँ देशी नावों को जो हजारों परिवारों की जीविका का साधन थीं, नष्ट कर दिया। इससे लोगों के दु:खों में अपार वृद्धि हुई और अंग्रेजों के खिलाफ घृणा की भावना तीव्र हो उठी।
  7. अत्यधिक मूल्य वृद्धि- उस समय वस्तुओं के भाव बहुत अधिक बढ़ गए थे। लोगों का कागजी मुद्रा पर से विश्वास उठता चला जा रहा था। इस महँगाई के कारण मध्यम वर्ग में सरकार के खिलाफ बहुत ही तीव्र अविश्वास की भावना थी और वह अंग्रेजों से लोहा लेने को तैयार था।
  8. अंग्रेजों की सामर्थ्य पर शंका- महात्मा गाँधी का विचार था कि अंग्रेज भारत की रक्षा करने में असमर्थ हैं। अंग्रेजों की सिंगापुर, मलाया और बर्मा की हार ने महात्मा गाँधी के विश्वास को दृढ़ बना दिया। गाँधीजी की मान्यता थी कि यदि अंग्रेज भारत में रहेंगे तो भारत पर जापान के आक्रमण की आशंका बनी रहेगी। अत: उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन प्रारम्भ करने का निश्चय कर लिया। उन्होंने 'हरिजन' पत्रिका में लिखा "अंग्रेजों, भारत को जापान के लिए मत छोड़ो, बल्कि भारत को भारतीयों के लिए व्यवस्थित रूप से छोड़ जाओ।"


भारत छोड़ो प्रस्ताव

अखिल भारतीय कांग्रेस समिति ने बम्बई में 8 अगस्त 1942 को 14 जुलाई, 1942 के कांग्रेस कार्यकारिणी द्वारा पारित प्रस्ताव का अनुसमर्थन कर दिया। यही प्रस्ताव 'भारत छोड़ो प्रस्ताव' के नाम से जाना जाता है।


इसकी मुख्य बातें निम्न थीं-

  • भारत में ब्रिटिश शासन का तत्काल अंत और भारत की स्वतंत्रता की तत्काल स्वीकृति।
  • 'स्वतंत्रता की लालिमा' ही भारत में ब्रिटिश विरोधी भावना को सद्भावना में परिवर्तित कर सकती है।
  • भारत की स्वतंत्रता संयुक्त राष्ट्रों की सफलता तथा विश्व सुरक्षा के लिए भी आवश्यक है।
  • भारत की स्वतंत्रता साम्प्रदायिक समस्या के हल के लिए भी आवश्यक है।
  • स्वतंत्रता के पश्चात् अस्थायी सरकार मित्र राष्ट्रों को सहयोग करेगी।
  • अस्थायी सरकार की स्थापना देश के सभी प्रमुख दलों और समूहों के सहयोग से होगी।
  • एक संविधान सभा का निर्माण होगा जो सबको स्वीकृत संविधान का निर्माण करेगी।
  • यदि ब्रिटिश शासन ने स्वतंत्रता की माँग को स्वीकार नहीं किया तो गाँधीजी के नेतृत्व में विशाल पैमाने पर अहिंसक आंदोलन शुरू किए जाएंगे।

  1. कांग्रेस नेताओं की गिरफ्तारी- यद्यपि गाँधीजी ने सार्वजनिक रूप से यह घोषणा कर दी थी कि आंदोलन शुरू करने से पूर्व वे वायसराय को पत्र लिखेंगे और उसके उत्तर का इंतजार करेंगे, परंतु सरकार ने इस बार उन्हें बातचीत या समझौते का अवसर ही नहीं दिया और 9 अगस्त, 1942 को गाँधीजी, उनकी पत्नी, कांग्रेस कार्यकारिणी समिति के सदस्यों और बम्बई के 40 प्रमुख नागरिकों को हिरासत में ले लिया।
  2. सरकारी दमन- राष्ट्रीय नेताओं की गिरफ्तारी से जनता संतुलन खो बैठी। सरकार ने दमन का जो चक्र आरंभ किया उससे भारत नरक-सा बन गया। आंदोलन के दौरान सेना और पुलिस को लगभग 538 बार गोलियाँ चलानी पड़ीं, लगभग 950 व्यक्ति मरे और 1360 व्यक्ति घायल हुए। इस आंदोलन में 60 हजार व्यक्तियों को बंदी बनाया गया और 6 बार तो ऊपर से मशीनगनों से गोली वर्षा की गई। गैर-सरकारी सत्रों के अनुसार लगभग 7000 व्यक्ति मारे गए। कछ लोगों के अनसार 10 हजार से 40 हजार तक लोग मारे गए। कांग्रेस को गैर-कानूनी संस्था घोषित कर दिया गया और इसके दफ्तर तथा कार्यालयों पर पुलिस का कब्जा हो गया। कांग्रेस के सहस्त्रों कार्यकर्ताओं को भी गिरफ्तार कर लिया गया। सरकार ने आंदोलन को दबाने के लिए बहुत अत्याचार किए। इस दमनचक्र ने खुले विद्रोह को तो पूरी तरह दबा दिया, परंतु गत (गुप्त) आंदोलन कई महीनों तक चलता रहा और जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया तथा अरूणा आसफ अ नेताओं ने उनका मार्गदर्शन किया।


भारत छोड़ो आन्दोलन आंदोलन का स्वरूप

जब जनता ने नेताओं की गिरफ्तारी आदि के समाचार सुने और पढे तो उनके क्षोभ का कोई ठिकाना नहीं रहा और वह अंग्रेजों से बदला लेने की सोचने लगी। कांग्रेसी नेताओं ने जनता के लिए कोई अनुदेश या निर्देश नहीं छोड़े थे। महात्माजी ने तो केवल करो या मरो का नारा दिया था। इसलिए जनता के पास कोई निश्चित कार्यक्रम नहीं था। ऐसी दशा में शेष अखिल भारतीय नेताओं ने कांग्रेस समिति की तरफ से एक पुस्तिका प्रकाशित की जिसमें 12 सूत्री कार्यक्रम दिया हुआ था। इस 12 सूत्री कार्यक्रम में सम्पूर्ण देश में शांतिपूर्ण हड़तालें, सार्वजनिक सभाएँ, नमक बनाना, लगान न देना आदि कार्यक्रम सम्मिलित थे। सरकार ने शीघ्र ही इस पुस्तिका को जब्त कर लिया और अनेक कठोर कदम उठाये। इस आंदोलन का स्वरूप बिल्कुल अहिंसात्मक था। हिंसा को कोई स्थान नहीं था। जनता से कहा गया था कि पुलिस थानों, तहसीलों तथा जिले के मुख्य कार्यालयों को अहिंसक कार्यों द्वारा अकर्मण्य बना दिया जाए, परंतु जब प्रमुख नेताओं को बंदी बना लिया गया तो जनता का धैर्य डिग गया। उन्हें स्पष्ट रूप से मालूम हो गया कि वे अहिंसक क्रांति से कुछ प्राप्त नहीं कर सकते हैं और क्रांति के बिना अंग्रेजों के हौसले पस्त नहीं किए जा सकते। इसलिए आंदोलन का संचालन ऐसे व्यक्तियों के हाथों में चला गया जो जीवन के विनाश और निर्माण में भेद नहीं कर सके। अतः आंदोलन अहिंसात्मक मार्ग पर बढ़ता-बढ़ता क्रांतिकारी उद्देश्य के चरम बिंदु पर जा पहुँचा और आंदोलन में हिंसा का समावेश हो गया।


भारत छोड़ो आन्दोलन के उद्देश्य

  1. भारत से विदेशी सत्ता का अन्त करना।
  2. भारतीयों को किसी भी प्रकार के संकट के लिए जागरूक तथा सशक्त बनाना।
  3. विदेश सत्ता को समाप्त कर देश में साम्प्रदायिक एकता स्थापित करना।
  4. स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त सभी देशों में शोषित लोगों के लिए नैतिक तथा धार्मिक नेतृत्व स्थापित करना।
  5. एशिया के सभी औपनिवेशिक देशों की स्वतंत्रता प्राप्ति में सहायता प्रदान करना।
  6. अन्तर्राष्ट्रीय संघ की स्थापना करना।

उपर्युक्त उद्देश्यों से स्पष्ट होता है कि महात्मा गांधी और कांग्रेस का उद्देश्य मूलतः भारत की पूर्ण स्वतंत्रता की प्राप्ति था जिसके लिए वे कोई भी कदम उठाने के लिए तैयार थे। अहिंसा के सन्दर्भ में गांधी जी ने अब अपने विचार बदल लिए थे। युद्ध में दो में से जो कमजोर हो वहा हिंसा का प्रयोग करे तो वह युद्ध भी अहिंसात्मक होगा, अर्थात् शक्तिशाली के विरूद्ध हिंसा का प्रयोग भी अहिंसा होगा। इसलिए इसी अन्तराल में उन्होंने एक भाषण में कहा था, “यह आन्दोलन जन आन्दोलन होगा इसमें सब साधनों (हिंसात्मक या अहिंसात्मक) का प्रयोग किया जा सकता है।" इसी में गांधी जी ने कहा, “यह आन्दोलन कांग्रेस की अन्तिम कोशिश होगी जिसमें या तो हम भारतीय स्वतंत्रता प्राप्त करेंगे या मर मिटेंगे। प्रत्येक मनुष्य इस आन्दोलन के उपरान्त अपने को स्वतन्त्र समझेगा।"


भारत छोड़ो आंदोलन के चार चरण

प्रथम चरण- आंदोलन की पहली अवस्था गाँधीजी की 9 अगस्त, 1942 ई. की गिरफ्तारी से लेकर 3-4 दिन तक रही। इस काल में श्रमिक हड़तालों का विशेष प्रभाव था। पुलिस का दमन-चक्र चला जिससे लोगों में अत्यधिक असंतोष भड़का और वे हिंसा पर उतर आए।

  • द्वितीय चरण- इस काल में जनता ने सरकारी भवनों का विध्वंस किया और रेलवे, डाकखानों तथा पुलिस थानों पर विशेष आक्रमण किए। अनेक स्थानों पर तो अराजकता की स्थिति भी उत्पन्न हो गई और अस्थायी सरकारों का निर्माण हो गया। आंदोलन को दबाने के लिए सरकार ने काफी अत्याचार किए।
  • तृतीय चरण- इस काल में व्यक्तियों ने विभिन्न स्थानों पर सशस्त्र हमले किए। ऐसी घटनाएँ मुख्य रूप से बंगाल और बिहार में घटीं। इस प्रकार का आंदोलन सन् 1943 की फरवरी तक चलता रहा। बम्बई, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा कुछ अन्य स्थानों पर जनता द्वारा बम फेंके गए।
  • चतुर्थ चरण- चौथी अवस्था में आंदोलन बहुत धीमी गति से 9 मई, 1944 ई. तक चला जबकि गाँधीजी छोड़ दिए गए थे। इस काल में आंदोलनकारियों ने तिलक दिवस और स्वतंत्रता दिवस भी मनाए। श्री जयप्रकाश नारायण और अरूणा आसफ अली ने बहुत ही सराहनीय कार्य किया। वास्तव में देखा जाए तो वे ही आंदोलन के कर्णधार थे। मुस्लिम लीग ने इसमें भाग नहीं लिया और राजाओं तथा रायबहादुरों का भी यही रवैया रहा।


भारत छोड़ो आंदोलन

इस आंदोलन के फलस्वरूप विश्व लोकमत में नाटकीय परिवर्तन हुआ। आंदोलन का अमरीकी जनता पर काफी प्रभाव पड़ा। स्वयं ब्रिटेन का लोकमत भी चाहने लगा कि इंग्लैंड भारत को छोड़ दे। चीन की जनता पर भी विशेष प्रभाव पड़ा। चीन के मार्शल च्यांग कॉई शेक ने 25 जुलाई, 1942 ई. को अमरीकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट को "अंग्रेजों के लिए यही सबसे बडी नीति है कि भारत को पूर्ण स्वतंत्रता दे दे।" च्यांग कॉई शेक द्वारा भारत की वकालत करने पर चर्चिल बौखला उठा और उसने धमकी दी, यदि चीन भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता रहा, तो अंग्रेज चीन के साथ अपनी संधि तोड़ देंगे।


आंदोलन विरोधी दृष्टिकोण- लीग की दृष्टि से यह खतरनाक आंदोलन था। मुस्लिम लीग के सर्वेसर्वा श्री जिन्ना ने इस आंदोलन की निंदा की और मुसलमानों को इसमें भाग न लेने का परामर्श दिया। हिंदू महासभा ने इस आंदोलन को निरर्थक बताया और कहा कि देश को पूर्ण स्वतंत्रता की माँग करनी चाहिए। उदारवादी नेता सर तेजबहादुर सप्र ने इस आंदोलन को अकल्पित तथा असामयिक बताया। डॉ. अम्बेडकर ने भी इस आंदोलन का विरोध किया। अकाली दल और साम्यवादी दल भी इस आंदोलन के विरूद्ध थे। इससे यह स्पष्ट होता है कि कांग्रेस को छोड़कर कोई भी दल सन् 1942 ई. में अंग्रेजों को अप्रसन्न करने के पक्ष में नहीं था।


भारत छोड़ो आंदोलन का महत्त्व और परिणाम

सन् 1942 ई. का आंदोलन स्वाधीनता प्राप्ति की दिशा में महान् कदम था। यह आंदोलन कोई साधारण नहीं था, अपितु स्वतंत्रता प्राप्ति में महान् आंदोलन था। इससे यह स्पष्ट होता है कि यह व्यापक जन-असंतोष था जो गुलामी की जंजीरों को तोड़ना चाहता था।

भारत में राजनीतिक जागति- इस आंदोलन का तात्कालिक उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्ति था और इसमें यह आंदोलन असफल सिद्ध हुआ। परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि आंदोलन पूर्णतः निष्फल रहा। इस आंदोलन का महान् उद्देश्य था-जनता में जागृति उत्पन्न करना और विदेशी ब्रिटिश शासन के विरूद्ध मुकाबला करने की भावना उत्पन्न करना। आंदोलन इस उद्देश्य को प्राप्त करने में बहुत सफल रहा। इस आंदोलन ने लोगों में नवीन चेतना का अभ्युदय एवं अत्याचारों से लोहा लेने की भावना का विकास किया। सरदार पटेल के अनुसार, “भारत में ब्रिटिश राज्य के इतिहास में ऐसा विप्लव कभी नहीं हुआ था जैसा कि 1942 ई. में हुआ। लोगों ने जो प्रतिक्रिया की है हमें उस पर गर्व है।"

क्रांतिकारी गतिविधियों को प्रोत्साहन- 1942 के आंदोलन ने उग्रवादियों एवं क्रांतिकारियों की गतिविधियों को तीव्र कर दिया। सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज का गठन किया और आजाद हिंद फौज के सैनिकों ने अंग्रेजी सेनाओं से डटकर लोहा लिया और उन्हें अनेक स्थानों पर पराजित किया। आजाद हिंद फौज के सैनिकों की वीरता, साहस और बलिदान ने देश में एक अद्भुत जोश की भावना उत्पन्न कर दी और देशवासी भारत की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए प्रेरित हुए। इस आंदोलन से उत्पन्न चेतना के परिणामस्वरूप ही 1946 में जलसेना का विद्रोह हुआ जिसने भारत में ब्रिटिश शासन पर और भयंकर चोट की।

साम्यवादी तथा मुस्लिम लीग का विश्वासघात- इस आंदोलन ने साम्यवादी दल और मुस्लिम लीग का वास्तविक रूप प्रकट कर दिया। इन दोनों दलों के राष्ट्र-विरोधी कार्यों से भारतवासियों में तीव्र असंतोष उत्पन्न हुआ।

विदेशों में भारतीयों के प्रति सहानुभूति- इस आंदोलन के कारण अमेरिका तथा चीन में भारतीयों के प्रति सहानुभूति उत्पन्न हुई। चीन के राष्ट्रपति च्यांगकाई शेक तथा अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने भारत को पूर्ण स्वतंत्रता दिए जाने का समर्थन किया।


इस प्रकार हम देखते हैं कि आंदोलन अदम्य राष्ट्रीयता और क्रान्ति का प्रतिफल तथा अंग्रेजों के विरूद्ध घोर घृणा का परिणाम था। इस आंदोलन का स्वरूप शुरू में अहिंसात्मक था, परंतु परिवर्तित परिस्थितियों में यह क्रांतिकारी पथ पर अग्रसर होता गया। इस आंदोलन में सर्वसाधारण ने बढ़कर भाग लिया और सरकार ने भी इसे कुचलने में कमी नहीं रखी, फिर भी सरकार जनभावनाओं का दमन करने में पूर्ण सफल नहीं हो सकी। इस आंदोलन में केवल कांग्रेस ने ही महत्वपूर्ण भाग अदा किया था। अन्य दल दर्शक मात्र बने रहे। फिर भी यह आंदोलन, जिसकी जड़ें जनमानस में गहराई से आरोपित हो गई थीं, काफी सफल रहा। इस आंदोलन ने देश में राष्ट्रीयता की अलख जगा दी जो अंग्रेजों को भारत से निकाल देने के बाद ही शांत हो सकी। इस आंदोलन का सबसे बड़ा परिणाम यह हुआ कि “मुस्लिम लीग और अंग्रेजों में गन्धर्व विवाह हो गया।"

अंग्रेज शासकों के विरूद्ध भारतीयों की घृणा से इस विद्रोह को प्रेरणा तथा प्रोत्साहन मिलता रहा। इसका उद्देश्य भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराना था और इसके लिए हिंसा तथा प्रशासनिक मशीनरी की तोड़-फोड़ को साधन रूप से अपनाया गया। यह जनता में उत्पन्न नये उत्साह तथा गरिमा का सूचक था।' इस आन्दोलन के प्रमुख संचालक जय प्रकाश नारायण ने इसके विषय में लिखा- “भारत छोड़ो आन्दोलन फ्रान्स व रूस की क्रान्ति से कम नहीं था। इससे भारत की स्थिति में पूर्णतया परिवर्तन आ गया। इसने नये भारत को जन्म दिया तथा राजनीतिक जीवन को एक नवीन दिशा दी। वास्तव में इससे भारतीय राष्ट्रवाद के भविष्य पर बहुत गहरा असर पड़ा।"

भारत छोड़ो आंदोलन का दूसरा नाम क्या है?

Solution : भारत छोड़ो आंदोलन को 'अगस्त क्रांति' के नाम से भी जाना जाता है। इस आंदोलन का लक्ष्य भारत से ब्रिटिश साम्राज्‍य को समाप्त करना था

भारत छोड़ो आंदोलन किसका नारा है?

भारत छोड़ो भाषण 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन छेड़ते समय महात्मा गांधी द्वारा दिया गया भाषण है। इसी भाषण में उन्होंने भारतीयों से दृढ़ निश्चय के लिए आह्वान करते हुए 'करो या मरो' का नारा दिया।

भारत छोड़ो आंदोलन के कारण क्या थे?

भारत छोड़ो आंदोलन शुरू होने का मुख्य कारण था देश को बगैर सहमति के विश्‍व युद्ध में झोंकना. अंग्रेज यूनाइटेड किंगडम (यूके) की ओर से लड़ने के लिए भारतीयों को भी घसीट रहे थे. उस दौरान, द्वितीय विश्व युद्ध में पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश के लोगों सहित 87,000 से अधिक भारतीय सैनिक शहीद हुए थे.

8 अगस्त 1942 क्यों प्रसिद्ध है?

8 अगस्त, 1942 को महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन को समाप्त करने का आह्वान किया और मुंबई में अखिल भारतीय काॅन्ग्रेस कमेटी के सत्र में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया। गांधीजी ने ग्वालिया टैंक मैदान में अपने भाषण में "करो या मरो" का आह्वान किया, जिसे अब अगस्त क्रांति मैदान के नाम से जाना जाता है।

1942 में कौन सा आंदोलन हुआ?

भारत छोड़ो आन्दोलन का स्वरुप जयप्रकाश नारायण 9 नवम्बर, 1942 को अपने 5 साथियों (रामानंदन मिश्र, सूरज नारायण सिंह, योगेंद्र शुक्ल, गुलाबी सोनार और शालीग्राम सिंह) के साथ हजारीबाग सेण्ट्रल जेल से फरार हो गए और एक केन्द्रीय संग्राम समिति का गठन किया।