बच्चे के दांत और नाल में हैं चमत्कार, लोभ में आकर न करें यह उपाय
आपके घर में प्रथम संतान यदि पुत्र जन्मा हो तो यह उपाय करें। ऐसे बच्चे का पहला दांत जो टूट कर धरती पर न गिरा हो, संभाल कर रख लें। किसी भी वीरवार को जिस दिन पुष्य नक्षत्र हो, उस दांत को धोकर किसी चांदी की डिबिया में बंद कर लें। यदि किसी के लिए चांदी...
आपके घर में प्रथम संतान यदि पुत्र जन्मा हो तो यह उपाय करें। ऐसे बच्चे का पहला दांत जो टूट कर धरती पर न गिरा हो, संभाल कर रख लें। किसी भी वीरवार को जिस दिन पुष्य नक्षत्र हो, उस दांत को धोकर किसी चांदी की डिबिया में बंद कर लें। यदि किसी के लिए चांदी की डिबिया खरीदना कठिन हो तो उस पर चांदी की पतली-सी पत्तर ही चढ़वा लें। इस दांत को सदा अपने बटुए अथवा जेब में रखें। इस दांत में धन वृद्धि करवाने का विलक्षण गुण होता है। माह में एक दिन, जिस नक्षत्र में बच्चे का जन्म हुआ हो, इस दांत को सूर्य देव के दर्शन करवाकर गंगा जल से धोकर तथा धूप-दीप दिखला कर पुन: बटुए अथवा जेब में रख लिया करें। यह उपाय उस दशा में ही फलीभूत होता है जबकि आपके पहले लड़के का दांत टूट कर धरती पर न गिर पाया हो।
घर में जन्मे पहले पुत्र रत्न से अनेकों धनदायक उपाय किए जाते हैं। यहां उन उपायों का ही वर्णन किया जा रहा है जिनसे लेश मात्र भी किसी के अहित की संभावना न हो।
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पहले पुत्र के दांत की तरह उसकी नाल भी बहुत प्रभावशाली फल देती है। बच्चे के पैदा होने के समय उसकी नाल मां के शरीर से काट कर अलग की जाती है। बच्चे की छठी के दिन उसका उतरा हुआ कोई भी एक वस्त्र लेकर यह नाल उस कपड़े में लपेट कर घर में कहीं भी सुरक्षित स्थान पर रख दें। जब भी घर से आप किसी अति आवश्यक कार्य के लिए निकलें तो नाल वाली पोटली भी धूप-दीप दिखा कर अपने साथ ले जाएं।
जो सज्जन अपने इष्ट सिद्धि हेतु यह पोटली साथ ले जाएं उस दिन विशेष कर वह किसी भी अनुचित कार्य, तामसिक खान-पान तथा अधिक व्यर्थ बोलने से सर्वथा बचें। कहीं भी वीरान स्थान, नदी, श्मशान, किसी वृक्ष के नीचे अथवा पवित्र स्थान पर लघु अथवा दीर्घशंका हेतु न जाएं।
घर लौटने पर यह पोटली पुन: यथा स्थान पर रख दें। इसका प्रयोग जीवन के किसी महत्वपूर्ण विषय में ही करें। लोभ वश इसका अथवा किसी अन्य उपाय का उपयोग करना आपके स्वयं के ही पक्ष में नहीं होगा।
नई दिल्लीः बच्चे के जन्म से न सिर्फ उसके मां-बाप को खुशी होती है बल्कि परिवार और आस-पड़ोस के लोगों की भी उससे तमाम उम्मीदें जुड़ी होती हैं. लिहाजा इसीलिए जब भी जिस घर में बच्चे की किलकारी गूंजती है तो जमकर खुशियां मनाई जाती हैं. भारत में बच्चे का जन्म होने के बाद जश्न मनाया जाता है लेकिन कई देशों में बच्चों के पैदा होने पर खुशियों से ज्यादा गमगीन माहौल रहता है. क्योंकि ऐसे भी देश हैं जहां की पुरानी प्रथाओं के कारण मां और बच्चे को अलग कर दिया जाता है. आज हम आपको तमाम देशों के ऐसी ही अजाबोगरीब परंपराओं से रूबरू करा रहे हैं.
डिलीवरी होते ही अलग हो जाते है मां और बच्चा
चीन में जब भी किसी महिला के गर्भ से बच्चे का जन्म होता है तो उसे अपनी मां 30 दिन तक नहीं मिलने दिया जाता है. चीन के कई इलाकों में सालों से चली आ रही ये परंपरा आज भी निभाई जाती है. यहां पर डिलीवरी के बाद बच्चे को 30 दिन तक मां से अलग रखा जाता है. इस देश में बच्चे को जन्म देने वाली मां को 30 दिन तक नहाने की भी मनाही होती है. इतना ही नहीं यहां पर मां को 30 दिन तक कच्चे फल भी खाने के लिए मना किया जाता है. इस रस्म का इतिहास करीब 2000 साल पुराना है.
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जापान में लाख के डिब्बे में रखी जाती गर्भनाल
यहां जब भी किसी की कोख से बच्चे का जन्म होता है तो उसकी नाल संभालकर (Umbilical Cord) रखी जाती है. देश में सालों से लोग इस अनोखी परंपरा का पालन करते आ रहे हैं. जापान के लोग बच्चे की गर्भनाल को लाख से बने डिब्बों में हमेशा के लिए संभालकर रखते हैं.
पेड़ के नीचे दफनाई जाती है बच्चे की नाल
नाइजीरिया और घाना जैसे देश में पैदा हुए बच्चे की गर्भनाल (Umbilical Cord) को अशुभ माना जाता है. जबकि इससे इतर अक्रीकी देशों (African Countries) में गर्भनाल को बच्चे का जुड़वा भाई या बहन माना जाता है. इसी वजह से यहां जब गर्भनाल को दफनाने और फिर लोग शोक मनाने का रिवाज है. यहां पर बच्चे की गर्भनाल जमीन के बजाए पेड़ के नीचे दफनाने की परंपरा है.
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3 माह तक जमीं से नहीं होता बच्चे का स्पर्श
इंडोनेशिया के द्वीप बाली में भी बच्चे के जन्म होने पर एक बहुत अजीबोगरीब रस्म निभाने की प्रथा है. यहां पर बच्चे को पैदा होने के 3 महीने तक जमीन को स्पर्श भी नहीं दिया जाता और किसी के संपर्क में आने दिया जाता है. 3 माह तक मां और बच्चा बेड पर ही अपना अधिकतम समय बिताते हैं.