अनुनासिक चिह्न के प्रयोग वाला सही शब्द कौन सा है? - anunaasik chihn ke prayog vaala sahee shabd kaun sa hai?

स्वनविज्ञान में नासिक्य व्यंजन (nasal consonant) ऐसा व्यंजन होता है जिसे नरम तालू को नीचे लाकर उत्पन्न किया जाए और जिसमें मुँह से वायु निकलने पर अवरोध हो लेकिन नासिकाओं से निकलने की छूट हो। न, म और ण ऐसे तीन व्यंजन हैं। नासिक्य व्यंजन लगभग हर मानव भाषा में पाए जाते हैं।[1]

अन्य भाषाओं की तरह हिन्दी में भी स्वर और व्यंजन दो प्रकार की ध्वनियाँ हैं। व्यंजनों के भी मुख्य दो भेद हैं- मौखिक और नासिक्य। इसी तरह स्वरों के भी मुख्य दो भेद हैं- मौखिक और अनुनासिक। ‘मौखिक’ उन स्वरों को कहते हैं, जिनके उच्चारण के समय अन्दर से आने वाली हवा मुख के रास्ते बाहर निकलती है और ‘अनुनासिक’ के उच्चारण के समय हवा मुख और नाक दोनों रास्तों से बाहर निकलती है। अनुनासिक हिन्दी के अपने स्वर हैं। हिंदी की पूर्ववर्ती भाषाओं- संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश में अनुनासिक स्वर नहीं हैं। इसलिए इन भाषाओं की वर्णमाला में अनुनासिक स्वरों को लिखने की कोई व्यवस्था नहीं है। संस्कृत में अनुनासिक स्वर नहीं हैं; इसीलिए देवनागरी की वर्णमाला में अनुनासिक स्वरों को लिखने के लिए अलग से वर्ण नहीं हैं। इसीलिए हिन्दी में मौखिक स्वर वर्णों के ऊपर चंद्रबिंदु (ँ) लगा कर अनुनासिक स्वर लिखे जाते हैं। यानी चन्द्रबिन्दु (ँ) अनुनासिक स्वरों की पहचान है। हिंदी में बिंदी (ं) के दो रूप हैं- एक है चंद्रबिंदु का लघुरूप और दूसरा है अनुस्वार। जो स्वर वर्ण और उनकी मात्राएं शिरोरेखा के नीचे लिखी जाती हैं, उनके अनुनासिक रूप को लिखने के लिए उनके ऊपर चंद्रबिंदु (ँ) लगाया जाता है और जो स्वर वर्ण और उनकी मात्राएं शिरोरेखा के नीचे और नीचे-ऊपर यानी दोनों ओर लिखी जाती हैं, उनके अनुनासिक रूप को लिखने के लिए उनके ऊपर एक बिन्दी लगाई जाती है। इस बिंदी को चंद्रबिंदु का लघुरूप कहते हैं। ऐसा सिर्फ मुद्रण को सुगम बनाने के लिए किया जाता है। हंसना, आंख, ऊंट जैसे शब्दों को चंद्रबिंदु लगा कर लिखा और छापा जाता है (हँसना, आँख, ऊँट लिखना चाहिए), ; पर ‘नहीं’, ‘में’, ‘मैं’, ‘सरसों’, ‘परसों’ जैसे शब्दों में प्रयुक्त बिंदी चंद्रबिंदु का लघुरूप है।

अनुस्वार का प्रयोग संयुक्त व्यंजन के प्रथम सदस्य के रूप में आने वाले नासिक्य व्यंजनों (ङ्, ञ्, ण्, न्, म्) के स्थान पर किया जाता है। पर हिंदी में अनुस्वार (ं) के संबंध में एक बड़ी भ्रांति है। हिंदी के बहुत से व्याकरण लेखक और भाषा-चिंतक अनुस्वार (ं) को एक नासिक्य ध्वनि मानते हैं। यह निहायत गलत और भ्रान्त धारणा है। वास्तविकता यह है कि ‘अनुस्वार’ संयुक्त व्यंजन के प्रथम सदस्य के रूप में आने वाले नासिक्य व्यंजनों को लिखने और छापने की सिर्फ एक वैकल्पिक व्यवस्था है। पहले जो शब्द गङ्गा, चञ्चल, पण्डित, सन्त, कम्प के रूप में लिखे जाते थे, बाद में वे गंगा, चंचल, पंडित, संत, कंप के रूप में लिखे जाने लगे। इनके उच्चारण में कोई भेद नहीं है। केवल उनको लिखने में भेद है। वह भी मुद्रण की सुविधा के लिए- यांत्रिक कारण से; व्याकरणिक कारण से नहीं।

‘में’, ‘मैं’, ‘बातें’, ‘बातों’ में प्रयुक्त बिंदी को लोग भ्रमवश अनुस्वार समझ लेते हैं। वास्तविकता यह है कि इन शब्दों में प्रयुक्त बिन्दी चंद्रबिंदु का लघुरूप है (अतः अनुनासिक है); जबकि गंगा, चंचल, पंडित, संत, कंप जैसे शब्दों में प्रयुक्त बिंदी अनुस्वार है क्योंकि इन शब्दों में बिंदी ङ्, ञ्, ण्, न्, म् के स्थान पर प्रयुक्त हुई है।

अनुस्वार[संपादित करें]

गंगा, चंचल, पंडित, संत, कंप जैसे शब्दों में प्रयुक्त बिन्दी अनुस्वार है क्योंकि इन शब्दों में बिंदी ङ्,ञ्, ण्, न्, म् के स्थान पर प्रयुक्त हुई है (गंगा = गङ्गा , चंचल = चञ्चल, पंडित = पण्डित, संत = सन्त, कंप = कम्प)।

अनुनासिक स्वर[संपादित करें]

जिन स्वरों के उच्चारण में मुख के साथ-साथ नासिका (नाक) की भी सहायता लेनी पड़ती है,अर्थात् जिन स्वरों का उच्चारण मुख और नासिका दोनों से किया जाता है वे अनुनासिक कहलाते हैं। हँसना, आँख, ऊँट, मैं, हैं, सरसों, परसों आदि में चन्द्रबिन्दु या केवल बिन्दु आया है वह अनुनासिक है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • व्यंजन वर्ण
  • अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Ladefoged, Peter; Maddieson, Ian (1996). The Sounds of the World's Languages. Oxford: Blackwell. ISBN 0-631-19814-8.

अनुस्वार के उच्चारण में ‘अं’ की ध्वनि मुख से निकलती है। हिंदी में लिखते समय इसका प्रयोग शिरोरेखा के ऊपर बिंदु लगाकर किया जाता है। इसका प्रयोग ‘अ’ जैसे किसी स्वर की सहायता से ही संभव हो सकता है; जैसे – संभव।
इसका वर्ण-विच्छेद करने पर ‘स् + अं(अ + म्) + भ् + अ + व् + अ’ वर्ण मिलते हैं। इस शब्द में अनुस्वार ‘अं’ का उच्चारण (अ + म्) जैसा हुआ है, पर अलग-अलग शब्दों में इसका रूप बदल जाता है; जैसे
संचरण = स् + अं(अ + न्) + च् + अ + र् + अ + ण् + अ
संभव = स् + अं(अ + म्) + भ् + अ + व् + अ ।
संघर्ष = स् + अं(अ + ङ्) + घ् + अ + र् + ष् + अ
संचयन = स् + अं(अ + न्) + च् + अ + य् + अ + न् + अ

अनुस्वार प्रयोग के कुछ नियम
अनुस्वार के प्रयोग के निम्नलिखित नियम हैं-

(i) पंचमाक्षर का नियम – जब किसी वर्ण से पहले अपने ही वर्ग का पाँचवाँ वर्ग (पंचमाक्षर) आए तो उसके स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग होता है; जैसे –
गङ्गा = गंगा,
ठण्डा = ठंडा,
सम्बन्ध = संबंध,
अन्त = अंत आदि।

(ii) य, र, ल, व (अंतस्थ व्यंजनों) और श, ष, स, ह (ऊष्म व्यंजनों) से पूर्व यदि पंचमाक्षर आए, तो अनुस्वार का ही प्रयोग किया जाता है; जैसे –
सन्सार = संसार,
सरक्षक = संरक्षक,
सन्शय = संशय आदि।

ध्यान दें – हिंदी को सरल बनाने के उद्देश्य से भिन्न-भिन्न नासिक्य ध्वनियों (ङ, ञ, ण, न और म) की जगह बिंदु का प्रयोग किया जाए। संस्कृत में इनका वही रूप बना रहेगा।

संस्कृत में – अङ्क, चञ्चल, ठण्डक, चन्दन, कम्बल।

हिंदी में – अंक, चंचल, ठंडक, चंदन, कंबल।

अनुस्वार का प्रयोग कब न करें-
निम्नलिखित स्थितियों में अनुस्वार का प्रयोग नहीं करना चाहिए-

(i)

(ii) यदि अनुस्वार के पश्चात् कोई पंचमाक्षर (ङ, ञ, ण, न, म) आता है, तो अनुस्वार का प्रयोग मूलरूप में किया जाता है। अनुस्वार का बिंदु रूप अस्वीकृत होता है; जैसे –


सम्+हार = संहार
सम्+सार = संसार
सम्+चय = संचय
सम्+देह = संदेह
सम्+ चार = संचार
सम्+भावना = संभावना
सम्+कल्प = संकल्प
सम्+जीवनी = संजीवनी

अनुनासिक


ध्यान दें- अनुनासिक की जगह अनुस्वार और अनुस्वार की जगह अनुनासिक के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में अंतर आ जाता है,जैसे –
हँस (हँसने की क्रिया)
हंस (एक पक्षी)।

हैं = ह + एँ
मैं = म् + एँ
में = म् + एँ
कहीं = क् + अ + ह् + ईं
गोंद = ग् + ओं + द् + अ
भौंकना = भ् + औं + क् + अ + न् + आ
पोंगल = प् + औं + ग् + अ + ल् + अ
जोंक = ज् + औं + क् + अ
शिरोरेखा के ऊपर मात्रा न होने पर इसे चंद्रबिंदु के रूप में ही लिखा जाता है; जैसे-आँगन, आँख, कुँआरा, चूंट आदि।

यह भी जानें-
अर्धचंद्राकार और अनुनासिक में अंतर-

हिंदी भाषा में अंग्रेज़ी के बहुत-से शब्द प्रयोग होते हैं। इनको बोलते समय इनकी ध्वनि ‘आ’ और ‘ओ’ के बीच की निकलती है। इसे दर्शाने के लिए अर्धचंद्राकार लगाया जाता है; जैसे-डॉक्टर, ऑफिस, कॉलेज आदि। इन शब्दों की ध्वनियाँ क्रमशः ‘डा और डो’, ‘आ और ओ’, ‘का और को’ के मध्य की हैं। इनके उच्चारण के समय मुँह आधा खुला रहता है। आगत भी कहा जाता है। ध्यान रहे कि अर्धचंद्राकार का प्रयोग अंग्रेजी शब्दों के लिए होता है जबकि अनुनासिक हिंदी की ध्वनि है।

उदाहरण

पाठ्यपुस्तक के पाठों पर आधारित शब्दों में अनुस्वार/अनुनासिक का प्रयोग

दुख का अधिकार

एवरेस्ट-मेरी शिखर यात्रा

तुम कब जाओगे, अतिथि

वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्रशेखर वेंकट रामन्

कीचड़ का काव्य

धर्म की आड़

शुक्रतारे के समान

अभ्यास प्रश्न

प्रश्नः 1.
नीचे दिए गए शब्दों में उचित स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग करते हुए शब्दों का मानक रूप लिखिए –
नालँदा, अँतर, संक्षिप्त, अंबर, चंद्रमा, संघर्ष, निताँत, भाँति, यन्त्र, सँस्कार, अँक, सम्बन्ध, गङ्गा, दीनबन्धु, अन्दर, मन्त्रालय,
खण्डित, छन्द, हिन्दुस्तान, अँगली, तँगी, तन्त्र, तम्बाकू, पँखुड़ी, कम्पन, दंगल, पँकज, दैत्य, बन्डल, धन्धा, पन्चायत, बँजारा।
उत्तर:
नालंदा, अंतर, संक्षिप्त, अंबर, चंद्रमा, संघर्ष, नितांत, भ्रांति, यंत्र, संस्कार, अंक, संबंध, गंगा, दीनबंधु, अंदर, मंत्रालय, खंडित,
छंद, हिंदुस्तान, जंगली, तंगी, तंत्र, तंबाकू, पंखुड़ी, कंपन, दंगल, पंकज, दंत्य, बंडल, धंधा, पंचायत, बंजारा।

प्रश्नः 2.
नीचे दिए गए शब्दों में उचित स्थान पर अनुनासिक का प्रयोग करके शब्दों को पुनः लिखिए-
बंटवारा, संकरा, आंख, हंसमुख, अंगड़ाई, आंचल, सांस, कहां, ऊंट, आंवला, ऊंघना, आंधी, कांटा, गांव, चांदनी, आंसू, ऊंचाई, छंटनी, जांच, टांग, डांट, पहुंचना।
उत्तर:
बँटवारा, सँकरा, आँख, हँसमुख, अंगड़ाई, आँचल, साँस, कहाँ, ऊँट, आँवला, ऊँघना, आँधी, काँटा, गाँव, चाँदनी, आँसू, ऊँचाई, छंटनी, जाँच, टाँग, डाँट, पहुँचना।

प्रश्नः 3.
निम्नलिखित शब्दों में से उस शब्द को चुनिए जिनमें अनुस्वार का प्रयोग होता है-

  1. सगति दाव
  2. पडित महगाई
  3. पजाब, पाव
  4. सास सभावना
  5. आच सुदर
  6. पाचवा निमत्रण
  7. सूघना ससार
  8. सभव धुआ
  9. सावला आनद

उत्तर:

  1. संगति
  2. पंडित
  3. पंजाब
  4. संभावना
  5. सुंदर
  6. निमंत्रण
  7. संसार
  8. संभव
  9. आनंद
  10. संत

प्रश्नः 4.
उचित स्थान पर लगे अनुस्वार वाले शब्द छाँटिए

  1. व्यंजन, कंचन, मंदिर
  2. सयोगं हसं संगम
  3. परतुं प्रंबध व्यंजन
  4. प्रतिबध तुंग मडंली
  5. गांव नोंक नंदन
  6. चंपक कबंल गदंगी
  7. सन्यासी अंधकार आंतक
  8. गोंद अंत्यत आनंद

उत्तर:

  1. कंचन
  2. संगम
  3. व्यंजन
  4. तुंग
  5. नदन
  6. चंपक
  7. अंधकार
  8. आनंद

प्रश्नः 5.
उचित स्थान पर अनुनासिक का प्रयोगकर पुनः लिखिए

  1. यहा
  2. कुआ
  3. भाषाए
  4. काच
  5. साप
  6. हसी
  7. पाच
  8. जाएगे

उत्तर:

  1. यहाँ
  2. कुआँ
  3. भाषाएँ
  4. काँच
  5. साँप
  6. हँसी
  7. पाँच
  8. जाएँगे

प्रश्नः 6.
उचित स्थान पर लगे अनुनासिक वाले शब्द छाँटिए

  1. काँखा आँगन नँदन
  2. मक प्रसँग अँधेरा
  3. चूंघट व्यँजन हँगामा
  4. अभिनंदन छंटनी उमँग
  5. पँडित सुंदर सूंघना
  6. दाँत सायँ जंजीर
  7. चाँदनी आँख खुंखार

उत्तर:

  1. आँगन
  2. अँधेरा
  3. घूघट
  4. छंटनी
  5. सूंघनी
  6. दाँत
  7. खूखार

विभिन्न परीक्षाओं में पूछे गए प्रश्न

प्रश्नः 1.
उस शब्द को चुनिए जिसमें अनुस्वार का प्रयोग होता है-

  1. डाट दाव ढग
  2. यात्रिक पाच गाव
  3. गाठ चदन महगाई
  4. माग साराश लाघना
  5. सास सभव पाव
  6. सूघना वसत रीतिया

उत्तर:

  1. ढंग
  2. यांत्रिक
  3. चंदन
  4. सारांश
  5. संभव
  6. वसंत

प्रश्नः 2.
निम्नलिखित शब्दों में से उचित स्थान पर लगे अनुस्वार वाले शब्द छाँटिए-

  1. संभव, कंचन कंगन
  2. हंस, आनंद, अलकनंदा
  3. दांत, अंधेरा, अंधकार
  4. पंजाब, सिंध, मंडल
  5. अकं, कहीं, दंड
  6. प्रारंभ, कांटा, संगमरमर
  7. संबंध अत्यंत प्रपंच
  8. हंसी हंसी संसार
  9. अनँय गगा अंतर्धान
  10. अलंकार, संस्कार चंचल

उत्तर:

  1. कंचन
  2. अलकनंदा
  3. अंधकार
  4. मंडल
  5. दंड
  6. संगमरमर
  7. संबंध
  8. संसार
  9. अंतर्ध्यान
  10. अलंकार

प्रश्नः 3.
नीचे दिए गए शब्दों में उचित अनुस्वार लगाकर पुनः लिखिए-

  1. सतरी ……………
  2. रग ……………..
  3. मगल ……………..
  4. चपक ……………..
  5. गाधारी ……………..
  6. प्रबध ……………..
  7. कबल ……………..
  8. कपन ……………..
  9. सगति ……………..
  10. वश ……………..

उत्तर:

  1. संतरी
  2. रंग
  3. मंगल
  4. चंपक
  5. गांधारी
  6. प्रबंध
  7. कंबल
  8. कंपन
  9. संगति
  10.  वंश

प्रश्नः 4.
निम्नलिखित शब्दों में उचित अनुनासिक का प्रयोगकर पुनः लिखिए-

  1. साझ ……………..
  2. स्थितिया ……………..
  3. बासुरी ……………..
  4. याऊ ……………..
  5. धुंधला ……………..
  6. पाच ……………..
  7. छूट ……………..
  8. आवला ……………..
  9. फादना ……………..
  10. गाव ……………..

उत्तर:

  1. साँझ
  2. स्थितियाँ
  3. बाँसुरी
  4. याऊँ
  5. धुंधला
  6. पाँच
  7. छुंट
  8. आँवला
  9. फाँदना
  10. गाँव

प्रश्नः 5.
निम्नलिखित शब्दों में उचित स्थान पर लगे अनुनासिक शब्द छाँटिए-

  1. अंधकार, चिड़िया, ब्रह्मांड
  2. आँच, महँगाई, खुशियाँ
  3. बँद, हँसी, मुँह
  4. चंद्रशेखर, ऊँचाई, व्यंजन
  5. पाँचवा, सँगम, बाँसुरी
  6. चंचल, भयँकर, कारवाँ
  7. साँसारिक, कठिनाइयाँ, सूंघना
  8. वसँजय, जहाँ, आँगन
  9. स्वयँ, दाँत, ढूँढ़ना
  10.  चंपक, संयुक्त, अँधेरा
  11. सँभव, हँसना, सिँह
  12. कुंआ, कँपन, आँख
  13. बूंद, आँगन, दिनांक
  14. आँख, चिड़ियाँ, पँखा
  15. अंतिम, घूघट, काँटा

उत्तर:

  1. चिड़ियाँ
  2. खुशियाँ
  3. मुँह
  4. ऊँचाई
  5. बाँसुरी
  6. कारवाँ
  7. सूंघना
  8. आँगन
  9. दाँत
  10. अँधेरा
  11. हँसना
  12. आँख
  13. आँगन
  14. चिड़ियाँ
  15. काँटा

NCERT Solutions for Class 9 Hindi

अनुनासिक का चिन्ह कौन सा है?

जिस प्रकार anunasik की परिभाषा में बताया गया है कि जिन स्वरों का उच्चारण मुख और नासिका दोनों से किया जाता है, वे अनुनासिक कहलाते हैं और इन्हीं स्वरों को लिखते समय इनके ऊपर anunasik के चिह्न चन्द्रबिन्दु (ँ) का प्रयोग किया जाता है। यह ध्वनि (अनुनासिक) वास्तव में स्वरों का गुण होती है।

अनुनासिक के उचित प्रयोग वाला शब्द कौन सा है?

अनुनासिक का प्रयोग यह ध्वनि (अनुनासिक) वास्तव में स्वरों का गुण होती है। अ, आ, उ, ऊ, तथा ऋ स्वर वाले शब्दों में अनुनासिक लगता है। कुआँ, चाँद, अँधेरा आदि।

अनुस्वार का पहचान चिह्न क्या है?

अनुस्वार का शाब्दिक अर्थ है – अनु + स्वर अर्थात स्वर के बाद आने वाला। दूसरे शब्दों में – अनुस्वार स्वर के बाद आने वाला व्यञ्जन है। इसकी ध्वनि नाक से निकलती है। हिंदी भाषा की लिपि में अनुस्वार का चिह्न बिंदु (.)

अनुस्वार वाले शब्द कौन कौन से हैं?

अनुस्वार के चिह्न के इस्तेमाल के बाद आने वाला वर्ण 'क' वर्ग, 'च' वर्ग, 'ट' वर्ग, 'त' वर्ग और 'प' वर्ग में से जिस वर्ग से जुड़े हुए होते हैं अनुस्वार उसी वर्ग के पंचम-वर्ण के लिए उपयोग होता है। यदि पंचमाक्षर के बाद किसी अन्य वर्ग का अक्षर आता है तो अनुस्वार के रूप में पंचमाक्षर नहीं बदलेगा। जैसेकि – चिन्मय, वाड्.

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