3 कवयित्री का घर जाने की चाह से क्या तात्पर्य है ?`? - 3 kavayitree ka ghar jaane kee chaah se kya taatpary hai ?`?

भाव स्पष्ट कीजिए-
खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अंहकारी।

कवयित्री कहती है कि मनुष्य को भोग विलास में पड़कर कुछ भी प्राप्त होने वाला नहीं है। प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री मनुष्य को ईश्वर प्राप्ति के लिए मध्यम मार्ग अपनाने को कह रही है।मनुष्य जब सांसारिक भोगों को पूरी तरह से त्याग देता है तब उसके मन में अंहकार की भावना पैदा हो जाती है। अत:भोग-त्याग, सुख-दुःख के मध्य का मार्ग अपनाने की बात यहाँ पर कवयित्री कर रही है। भाव यह की भूखे रहकर तू ईश्वर साधना नहीं  कर सकता।

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कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं?

कवयित्री के कच्चेपन के कारण उसके मुक्ति के सारे प्रयास विफल हो रहे हैं अर्थात् वह इस संसारिकता तथा मोह के बंधनों से मुक्त नहीं हो पा रही है ऐसे में वह प्रभु भक्ति सच्चे मन से नहीं कर पा रहीं है। उसमें अभी पूर्ण रुप से प्रौढ़ता नहीं आई है। अत: उसे लगता है उसके द्वारा की जा रही सारी साधना व्यर्थ हुई जा रही है इसलिए उसके द्वारा मुक्ति के प्रयास भी विफल होते जा रहे हैं।

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भाव स्पष्ट कीजिए -
जेब टटोली कौड़ी न पाई।

भाव यह है कवयित्री इस संसार में आकर सांसारिकता में उलझकर रह गयी और जब अंत समय आया और जेब टटोली तो कुछ भी हासिल न हुआ। लेखिका ने प्रभु के पास पहुँचने के लिए कठिन साधना चुनी परंतु उससे इस राह से ईश्वर नही मिला। अब उसे चिंता सता रही है कि भवसागर पार करानेवाले मांझी अर्थात् ईश्वर को उतराई के रूप में क्या देगी।

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कवयित्री का 'घर जाने की चाह' से क्या तात्पर्य है?

कवयित्री का घर जाने की चाह से तात्पर्य है प्रभु से मिलना। कवयित्री इस भवसागर को पार करके अपने परमात्मा की शरण में जाना चाहती है क्योंकि जहाँ प्रभु हैं वहीं उसका वास्तविक घर है।

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'रस्सी' यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है?  

रस्सी यहाँ पर मानव के नाशवान शरीर के लिए प्रयुक्त हुई है और यह रस्सी कब टूट जाए कहा नहीं जा सकता है। यह कच्चे धागे की भाँति है जो कभी भी साथ छोड़ सकता है ।

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कवित्री का घर जाने की चाह से क्या तात्पर्य है?

कवयित्री का 'घर जाने की चाह' से क्या तात्पर्य है? उत्तर: 'घर जाने की चाह'का तात्पर्य है-इस भवसागर से मुक्ति पाकर अपने प्रभु की शरण में जाना। वह परमात्मा की शरण को ही अपना वास्तविक घर मानती है।

कवयित्री के मन में क्या चाह है?

उत्तर:- कवयित्री का घर जाने की चाह से तात्पर्य है प्रभु से मिलना। कवयित्री इस भवसागर को पार करके अपने परमात्मा की शरण में जाना चाहती है।

भवसागर से कवयित्री का क्या तात्पर्य है?

Answer: कवयित्री परमात्मा को साहब मानती है, जो भवसागर से पार करने में समर्थ हैं। वह साहब को पहचानने का यह उपाय बताती है कि मनुष्य को आत्मज्ञानी होना चाहिए। वह अपने विषय में जानकर ही साहब को पहचान सकता है।

कवयित्री के दुख का कारण क्या है?

कवयित्री के दुख का कारण क्या है? (a) ईश्वर के पास होते हुए भी उसे न मिल पाना। (b) ईश्वरीय मिलन में बाधा। (c) जीवनभर की तपस्या का व्यर्थ हो जाना।

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